बीकानेर , ( ओम दैया ) | शब्दरंग साहित्य एवं कला संस्थान की तरफ से आज शिव-निवास में दो पुस्तकों का लोकार्पण किया गया | आनंद्कौर व्यास के राजस्थानी उपन्यास “मून रा चितराम” का हिन्दी अनुवाद “मौन के द्रश्य” अनुवादिका श्रीमती प्रमिला गंगल और कवि-कथाकार राजाराम स्वर्णकार की जीवनी परक आलेखों पर लिखी पुस्तक “जिन क़दमों ने रचे रास्ते” का लोकार्पण किया गया | अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए वरिष्ठ पत्रकार लूणकरण छाजेड ने कहा कि सर्वपल्ली राधाकृष्ण की किताब “लिविंग इन परपज” और राजाराम जी की जीना क़दमों ने रचे रास्ते का उद्धेश्य एक ही है | जीवनियाँ लिखना बड़ा जटिल कार्य होता है | अवधि, ब्रज, राजस्थानी और हिन्दी में बराबर अधिकार रखने वाली ओजस्वी कवयित्री ने राजस्थानी उपन्यास का हिन्दी में अनुवाद कर गौरवमयी कार्य किया इसके लिए इन्हें साधुवाद देता हूं | मुख्य अतिथि संसकृतिकर्मी राजेन्द्र जोशी ने अनुवाद पुस्तक पर बोलते हुए कहा प्रमिलाजी अवधी से आती हैं, ब्रज में पली और राजस्थान में बढ़ी हैं अत: ब्रज, हिन्दी और राजस्थानी में समान अधिकार रखते हुए सृजन कर रही हैं | अनुवाद करना कोई सरल काम नहीं होता | विशिष्ट अतिथि डॉ.अजय जोशी ने कहा कि प्रमिला गंगलजी ने राजस्थानी उपन्यास का हिन्दी पाठकों हेतु बहुत सटीक भाषा में अनुवाद किया है | जिन क़दमों ने रचे रास्ते पर अपनी बात रखते हुए उसके रचनाकर्म का साक्षी बताते हुए कहा कि प्रतिभाओं का चयन भुत अच्छे तरीके से किया गया है जिंनमें युवावस्था से प्रौढावस्था तक की विभूतियाँ शामिल है | यह पुस्तक आने वाले समय में इतिहास बनेगी |
कार्यक्रम का शुभारम्भ प्रमिला गंगल की लिखी वंदना-विश्व वन्दिता भारत भू को कोटि-कोटि वंदन, लक्ष्मी की इस वीर भूमि को, यशोधरा की धीर भूमि को कोटि-कोटि वंदन | युवा गायक गौरीशंकर सोनी ने सुनाकर किया | स्वागत उद्बोधन प्रेमनारायण व्यास ने दिया |
लेखिका इन्द्रा व्यास ने उपन्यास के पात्रों का जिक्र करते हुए अनुवादिका को बधाई दी और कहा कि इन्होंने बेजोड़ शब्दों को एक नया आकार दिया है | जिन क़दमों ने रचे रास्ते पर डॉ. रेणुका व्यास “नीलम” के लिखे शब्दों को रचनाकार मीनाक्षी स्वर्णकार ने अपना स्वर देते हुए कहा _यह निराले लेखक की निराली पुस्तक है जिसके पहले भाग में इकत्तीस विभूतियां थी और अब इस दुसरे भाग में भी इकत्तीस विभूतियों के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है, इनमें नौ स्त्रियाँ और बाइस पुरुष है | ये सभी व्यक्ति शिक्षा, साहित्य, कला, संस्कृति, संगीत, रंगमंच, राजनीति, फिल्म, समाज-सेवा, स्त्री शिक्षा, स्त्री स्वावलंबन तथा पर्यटन जैसे क्षेत्रों से आते हैं | छायावादी काल से उठाव लेती यह विधा छायावादेत्तर काल में पर्याप्त रूप से पुष्पित और पल्लवित हुई |
सखा संगम, कवि-चौपाल एवं मरु नवकिरण की तरफ से दोनों का सम्मान माला, शोल, श्रीफल एवं अपर्णा प्रदान कर किया गया |