कॉमर्स पर डीपीआईआईटी की वर्चुअल बैठक में कैट ने दिए कड़े तर्क ई-कॉमर्स कंपनियों ने साधी चुप्पी :सुभाष अग्रवाल

 

आसनसोल:- कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) पश्चिम बंगाल के चेयरमैन सुभाष अग्रवाला ने मंगलवार कोलकाता सारांश को बताया कि वाणिज्य मंत्रालय के डीपीआईआईटी द्वारा आज ई-कॉमर्स नीति ढांचे पर आयोजित एक वीडियो बैठक में कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स(कैट) ने एक मजबूत और स्पष्ट ई-कॉमर्स नीति के लिए दृढ़ता से मांग की जिसमें अनिवार्य रूप से टेलिकॉम सेक्टर के लिए बने रेगुलेटरी अथॉरिटी ट्राई के आधार पर एक रेगुलेटरी अथॉरिटी के गठन का प्रावधान हो ! कैट के अलावा, बैठक में ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (एआईसीपीडीऍफ़), रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, लघु उद्योग भारती, फेडरेशन ऑफ स्मॉल इंडस्ट्रीज (FISME) और अन्य ने भाग लिया, जबकि प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियांअमेज़न, फ्लिपकार्ट, टाटा,, रिलायंस, उड़ान, पेपरफ्राई,शॉपक्लू, स्नैपडील आदि ने भी बैठक में भाग लिया जिसकी अध्यक्षता डीपीआईआईटी के अतिरिक्त सचिव श्री अनिल अग्रवाल और मंत्रालय के कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे !
बैठक में बोलते हुए कैट के राष्ट्रीय महामंत्री श्री.प्रवीन खंडेलवाल ने निश्चित मानकों के साथ एक अच्छी तरह से परिभाषित ई-कॉमर्स नीति की वकालत करते हुए खेद व्यक्त किया कि एफडीआई नीति के प्रेस नोट 2 के स्पष्ट प्रावधानों का सरकार की नाक के नीचे विदेशी वित्त पोषित ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा लगातार उल्लंघन किया जा रहा है और अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है तथा उनके खिलाफ अब तक कोई एक्शन नही लिया गया है।उन्होंने कहा कि ई-कॉमर्स नीति में ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के पारदर्शी संचालन, आसान पहुंच और पर्याप्त शिकायत निवारण प्रणाली, सभी हितधारकों के लिए मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्म की गैर-भेदभावपूर्ण पहुंच और मूल्य श्रृंखला, संघर्ष से बचने के बारे में स्पष्ट शर्तें होनी चाहिए।
श्री खंडेलवाल ने देश में व्यावसायिक गतिविधियों का संचालन करने वाली प्रत्येक वाणिज्य इकाई के अनिवार्य पंजीकरण, विक्रेताओं के लिए अनिवार्य और सख्त केवाईसी मानदंड, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के मार्केटप्लेस और इन्वेंट्री मॉडल के बीच स्पष्ट अंतर, निषिद्ध वस्तुओं की बिक्री पर जांच की पुरजोर वकालत की और यह भी तर्क दिया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, सोशल कॉमर्स, व्हाट्सएप ग्रुप आदि सहित किसी भी डिजिटल मोड के माध्यम से प्रदान की जाने वाली सभी वस्तुओं या सेवाओं को ई-कॉमर्स की परिभाषा के तहत कवर किया जाना चाहिए। कई वक्ताओं ने अनिवार्य जीएसटी संख्या बाधा को हटाने की आवश्यकता की भी वकालत की, जो छोटे व्यापारियों, कारीगरों, शिल्पकारों, कारीगरों को ई-कॉमर्स प्लेटफार्म से जुड़ने के लिए प्रतिबंधित करती है।
आश्चर्यजनक रूप से, बैठक में भाग लेने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों ने केवल इतना कहा कि उन्होंने बैठक में उठाई गई चिंताओं को नोट कर लिया है और डीपीआईआईटी को लिखित रूप में अपने विचार प्रस्तुत करेंगी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वे छोटे खुदरा विक्रेताओं, कारीगरों, के सशक्तिकरण से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में लगे हुए हैं और उन्होंने अपने-अपने पोर्टल में विभिन्न चैनल खोले हैं। किसी भी ई-कॉमर्स कंपनी ने कैट और अन्य संघों द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन नहीं किया।

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