वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से वन माफिया कर रहे जंगल का विनाश

आसनसोल। आसनसोल के सालनपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत देंदुआ पंचायत के होदला गांव से महेशपुर जाने वाली सड़क पर फिर से जंगल से एक बड़ा पेड़ काट दिया गया है। वर्षो पुरानी इस पेड़ को बेरहमी से काटा गया है। सरकारी दस्तावेजों में अनुमति और आदेश का खेल चलता रहेगा, लेकिन यह विशाल पेड़ कभी वापस नहीं आएगा। घटना के बारे में बताया जा रहा है कि होदला गांव से महेशपुर जाने वाली मुख्य सड़क पर दिनदहाड़े एक विशाल पेड़ काट दिया गया और हैरानी की बात यह है कि इस पेड़ को काटने पर किसी ने आपत्ति भी नहीं की। स्थानीय सूत्रों ने बताया कि पेड़ काटने की अनुमति ली गई थी, लेकिन सड़क के किनारे किसी की निजी जमीन कैसे हो सकती है? अगर यह मान भी लिया जाए कि आसपास कोई घर नहीं है, जिसे पेड़ से खतरा हो, तो अनुमति किस आधार पर दी गई? अनुमति देने से पहले क्या वन विभाग ने पेड़ का निरीक्षण ही नहीं किया। पूरी घटना से वन विभाग के अधिकारियों और पेड़ काटने वालों की मिलीभगत की बू आ रही है।हालांकि जब रूपनारायणपुर रेंज अधिकारी विश्वजीत सिकदर से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि होडला बीट अधिकारी द्वारा निरीक्षण किया गया था। जमीन निजी संपत्ति है और इसी आधार पर अनुमति दी गई है। हालांकि सवाल यह उठता है कि क्या अधिकारियों की कुर्सी सिर्फ पेड़ काटने की अनुमति देने के लिए है, या उनके पास कोई और काम भी है? पेड़ लगाना तो दूर, वे सिर्फ पेड़ काटने की अनुमति दे देते हैं। बिना कुछ देखे-सुने। एक-दो साल बाद तबादला अधिकारी अपनी कलम से न जाने कितने पेड़ों का डेथ वारंट लिख देते हैं। क्या यह सिर्फ उस अधिकारी का अधिकार है जो अपनी कलम से आदेश पर हस्ताक्षर करता है, या समाज के भी कुछ अधिकार और कर्तव्य हैं जिसके लिए वे पेड़ गांव को हरियाली और सड़कों को छाया प्रदान करते हैं। अगर सरकार सिर्फ पेड़ काटने की अनुमति देने के लिए ही अधिकारी नियुक्त करती है तो हमें ऐसे अधिकारी की जरूरत नहीं है जिसके एक हस्ताक्षर से सैकड़ों पेड़ कट जाएं। अगले महीने से वन सप्ताह शुरू हो गया है, जिसे पूरे राज्य में वन महोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जा रहा है, तब पेड़ों को काटने के लिए हस्ताक्षर करने वाले हाथ जंगल की उपयोगिता और लाभ के बारे में उपदेश देते नजर आएंगे, समाज के सफेदपोश लोग दो-चार पेड़ लगाकर खुद को पर्यावरण के सबसे बड़े रक्षक के रूप में स्थापित करेंगे। नतीजतन, गांवों, घरों, सड़कों और जंगलों से पेड़ों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है, यह सूची सालानपुर से लेकर बाराबनी इलाकों तक बढ़ती जा रही है।

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