कोलकाता, 13 दिसंबर । पश्चिम बंगाल में निजी बस ऑपरेटरों के शीर्ष संगठन ने शुक्रवार को परिवहन विभाग से एक नियामक पैनल गठित करने की मांग की। उन्होंने ऐसा इसलिए किया है ताकि, राज्य में चल रही गैर-सरकारी स्टेज कैरिज बसों की समस्याओं का समाधान किया जा सके।
ज्वाइंट काउंसिल ऑफ बस सिंडिकेट के सचिव तपन बनर्जी ने बताया कि निजी बसें प्रतिदिन यात्रियों का 85 प्रतिशत भार उठाती हैं। इसके बावजूद राज्य परिवहन विभाग नए ‘बीएस VI’ वाहनों की खरीद के लिए बस मालिकों को ऋण प्रदान करने के लिए बैंकों को प्रोत्साहित करने में विफल रहा है। इन वाहनों को पुराने 15 वर्ष पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए अनिवार्य किया गया है।
तपन बनर्जी ने कहा, “हम लंबे समय से एक नियामक पैनल बनाने की मांग कर रहे हैं, जिसमें ऑटोमोबाइल विशेषज्ञ, वरिष्ठ राज्य अधिकारी और अन्य शामिल हों, ताकि बस ऑपरेटरों की समस्याओं का समाधान किया जा सके।”
उन्होंने बताया कि एक नया वाहन खरीदने में कम से कम 30 लाख रुपये का खर्च आएगा, जो कि छोटे बस मालिकों के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ है।
पैनल बस ऑपरेटरों के लिए वित्तीय संस्थानों से सहयोग की मांग करेगा और साथ ही बस किराए में वृद्धि जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देगा, जो पिछले सात वर्षों से लंबित है। इसके अलावा, पैनल ट्रैफिक पुलिस द्वारा कोलकाता और राज्य के अन्य शहरों में यातायात नियमों के उल्लंघन पर लगाए जाने वाले मनमाने जुर्मानों को भी संबोधित करेगा।
तपन बनर्जी ने कहा कि सड़क सुरक्षा अभियानों में निजी बस चालकों और कंडक्टरों को निशाना बनाया जा रहा है, जबकि सरकारी बसों, ऑटो रिक्शा और ई-रिक्शा को नजरअंदाज किया जा रहा है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कोलकाता ट्रैफिक पुलिस चालान जारी करने के बजाय समय पत्रक पर जुर्माने की रकम लिखती है, जो कि अवैध है।
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सरकारी बसों को मिलती है सब्सिडी, निजी बसें उपेक्षित
संगठन ने परिवहन मंत्री स्नेहाशीष चक्रवर्ती को संबोधित एक बयान में कहा कि जहां राज्य सरकार अपनी बसों को करोड़ों रुपये की सब्सिडी देती है, वहीं निजी बसों की अनदेखी की जाती है।
तपन बनर्जी ने कहा कि निजी बस ऑपरेटर डिजिटल परिवहन मोड अपनाने के लिए तैयार हैं और पहले ही सभी बसों में पैनिक बटन सेवा शुरू की जा चुकी है। लेकिन बस सेवा को डिजिटल नेटवर्क से जोड़ने की प्रक्रिया को समग्र रूप से लागू करने की आवश्यकता है।
संगठन ने डीजल पर जीएसटी में राहत की भी मांग की, ताकि बस ऑपरेटर अपने घाटे को कम कर सकें।