चारों ओर पानी ही पानी, पर अधिकारी शर्म से चुल्लू भर में भी नहीं डूबते

लखनऊ/ कोलकाता। उत्तर प्रदेश विधानसभा में पानी ही पानी। बारिश है बड़ी तेज, पर सरकार है सुस्त। जब इतने बड़े अति महत्वपूर्ण स्थान की यह हालत है तो आम जन- जीवन कैसा होगा, कल्पना से ही सिहरन हो जाती है। आजादी के इतने वर्षों बाद भी लखनऊ की यदि यह हालत है तो फिर वर्तमान शासक दल सहित उन सभी पार्टियों को चुल्लू भर पानी में डूब मर जाना चाहिए, जिन्होंने कभी न कभी उत्तर प्रदेश में शासन किया है। भले ही इस समय हम लखनऊ के हालात पर चर्चा कर रहे हैं, पर कमोबेश सम्पूर्ण देश में ही ये हालात हैं। हाल ही में दिल्ली में एक कोचिंग बेसमेंट में 12 फीट पानी भर जाने के कारण एक छात्रा सहित 3 छात्रों की दर्दनाक मौत हो गयी। ये छात्र आईएएस की परीक्षा पास करने के लिए कोचिंग में पढ़ रहे थे। ये मेधावी छात्र यदि उत्तीर्ण होते तो देश में कहीं न कहीं प्रशासनिक व्यवस्था संभाल रहे होते। पर सिर्फ जल निकासी व्यवस्था दुरूस्त न होने के कारण इनकी अकाल मृत्यु हो गयी।
कोलकाता महानगर सहित पश्चिम बंगाल भी इस समस्या से अछूता नहीं है। जरा सी तेज वर्षा होते ही सड़कें लबालब हो जाती हैं। घरों, दुकानों व कार्यालयों में पानी घुस जाता है। मात्र कुछ घंटों में करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान तो होता ही है, साथ ही कई लोग जान भी गंवा बैठते हैं। कहीं पानी में करेंट के कारण तो कहीं तेज बहाव में बह जाने की वजह से या फिर किसी अन्य कारण से। पर यक्ष प्रश्न यह है कि हम आजादी के 77 वर्ष बाद भी ऐसी मजबूत निकासी व्यवस्था क्यों नही बना सके, जो भारी वर्षा के जल को जमने ही न दे। जब भी चुनाव होता है, सभी पार्टियां बड़े- बड़े दावे करती हैं। अपने- अपने राज्य को या फिर देश को हर तरह से विकसित करने का दावा करती हैं, पर असली धरातल पर टाय- टाय फिस, क्योंकि उनका अधिकांश वक्त तो एक- दूसरे की टांग खींचने या फिर परस्पर दोषारोपण में ही चला जाता है। मैं और मुद्दों को छोड़ कर सिर्फ जल निकासी व्यवस्था की बात कर रहा हूं। आशा है, सभी संबंधित पक्ष इस पर गंभीरता से विचार कर ऐसा मैकेनिज्म तैयार करेंगे, जो भविष्य में हमें जल जमाव के कारण होनेवाले जन- धन की क्षति से बचायेगा। हमारे यहाँ न मेधा की कमी है, न संसाधनों की। अभाव है तो दृढ़ इच्छा शक्ति व संकल्प का, आपस में समन्वय का। हम चांद पर जा रहे हैं , वहां पानी और जनजीवन की संभावनाएं तलाश रहे हैं, तो क्या धरती के पानी को नियंत्रित नहीं कर सकते।
वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल

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