विवेक रूपी नयनों से आत्म – साक्षात्कार करें :  साध्वी प्रियरंजना श्रीजी

हावड़ा । साध्वी प्रियरंजना श्रीजी, साध्वीवृंद डा. प्रियदिव्यांजना श्रीजी, साध्वी डा. प्रियशुभांजना श्रीजी ने उत्तर हावड़ा में चातुर्मास में श्रावक – श्राविकाओं को भाव विभोर करते हुए कहा गुरु वन्दना काया (मानव शरीर) एवम् भाव से होती है । विशुद्ध भाव से की गई वन्दना भक्त एवम् मार्गदर्शक, गुरु के बीच सेतु है । यह सेतु आत्मा एवम् परमात्मा के बीच माध्यम है । भक्ति भावना से की गई गुरु वंदना से गुरु कृपा होगी, आशीर्वाद मिलेगा । गुरु वन्दना का भाव श्रद्धालु भक्त को अपने गुरु के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देता है, विनम्रता और सम्मान व्यक्त करता है । साध्वी प्रियरंजना श्रीजी ने कहा अहंकार, क्रोध जीवन में पायलट कार की तरह है । रावण का क्रोध, अहंकार उसके विनाश का कारण बना । साध्वीश्री ने विवेक रूपी नयनों से आत्म – साक्षात्कार करने की प्रेरणा देते हुए कहा धर्म की आराधना करते हुए मन के कषाय को शान्त करना है । चातुर्मास में तप – ध्यान करते हुए अंतर्मन से धर्म की साधना – आराधना करनी है । 13 जुलाई को सुख की दिशा – शान्ति की दिशा, आओ युवाओं ! जानो और जागो कार्यक्रम की सफलता के लिये कार्यकर्ताओं में उत्साह है । श्री जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघ एवम् आत्मानंदी चातुर्मास समिति के पदाधिकारी तथा कार्यकर्ता सक्रिय हैं ।

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