सुभारती विश्वविद्यालय: बौद्ध अध्ययन, सामाजिक समर्पण और वैश्विक सहभागिता का केंद्र

डॉ. परविंदर सिंह ने विश्वविद्यालय का दौरा मे थाईलैंड और भारत के बीच बौद्ध सांस्कृतिक सम्बन्धों को और सशक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया।

 

भूमिका

स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ — एक ऐसा नाम जो अब केवल शैक्षणिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि बौद्ध अध्ययन, सामाजिक समर्पण और वैश्विक सांस्कृतिक संवाद का भी केंद्र बनता जा रहा है। यह विश्वविद्यालय शिक्षा को केवल डिग्रियों तक सीमित नहीं रखता, बल्कि समता, करुणा, और मानव कल्याण की भारतीय परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का एक प्रेरक मंच बन चुका है।

थाईलैंड से विश्व शांति दूत डॉ. परविंदर सिंह का दौरा: भारत-थाईलैंड बौद्ध मैत्री का नया अध्याय

हाल ही में विश्वविद्यालय की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को तब और बल मिला जब थाईलैंड स्थित Page 3 Foundation के संस्थापक और United Nations के World Peace Institute से संबद्ध वैश्विक शांति दूत डॉ. परविंदर सिंह ने विश्वविद्यालय का विशेष दौरा किया।

डॉ. सिंह ने सम्राट अशोक सुभारती बौद्ध अध्ययन विभाग (SSBS), पाली भाषा केंद्र और बोधि वृक्ष परिसर का निरीक्षण करते हुए विश्वविद्यालय की शैक्षणिक और सांस्कृतिक प्रतिबद्धताओं की सराहना की। उन्होंने छात्रों और अध्यापकों के साथ बौद्ध दर्शन, सांस्कृतिक कूटनीति, और वैश्विक शांति की संभावनाओं पर संवाद किया।

उनका मानना था कि भारत और थाईलैंड के बीच ऐतिहासिक बौद्ध सांस्कृतिक संबंधों को और अधिक सुदृढ़ किया जाना चाहिए, और सुभारती विश्वविद्यालय इस दिशा में एक सशक्त सेतु की भूमिका निभा सकता है। उन्होंने यह भी प्रस्ताव रखा कि थाईलैंड के प्रमुख बौद्ध संस्थानों के साथ सुभारती विश्वविद्यालय को शैक्षणिक और सांस्कृतिक साझेदारी हेतु जोड़ा जाए।

बौद्ध अध्ययन की गहरी जड़ें: सम्राट अशोक बौद्ध अध्ययन विभाग

2018 में स्थापित सम्राट अशोक सुभारती बौद्ध अध्ययन विभाग की स्थापना अपने आप में एक सांस्कृतिक ऐतिहासिक उपलब्धि थी। उद्घाटन समारोह में 13 देशों के लगभग 130 बौद्ध भिक्षु, विद्वान और अध्यापक उपस्थित रहे थे, जो इसकी वैश्विक पहचान का प्रमाण है।

विभाग में अब एम.ए., एम.फिल. और पीएच.डी. जैसे उच्चस्तरीय पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं। साथ ही 2025 में विश्वविद्यालय ने पाली भाषा में एम.ए. और दो प्रमाणपत्र कोर्स आरंभ किए, जिनका उद्देश्य विद्यार्थियों को बौद्ध परंपरा के प्राचीन ग्रंथों और मूल विचारधारा से सीधे जोड़ना है।

पाली भाषा, जो बौद्ध धर्म के मूल ग्रंथों की भाषा है, अब विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए केवल एक शैक्षणिक विषय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक मिशन का हिस्सा बन चुकी है।

बोधि वृक्ष परिसर: ध्यान, संस्कृति और शांति का केंद्र

सुभारती विश्वविद्यालय परिसर में स्थित 115 वर्षीय बोधि वृक्ष न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह ध्यान और आत्मचिंतन का केंद्र बन चुका है।

हर वर्ष बुद्ध पूर्णिमा के पावन अवसर पर इसी वृक्ष के नीचे विशेष प्रार्थना एवं ध्यान सत्रों का आयोजन होता है, जिसमें न केवल छात्र, बल्कि स्थानीय नागरिक और अंतरराष्ट्रीय बौद्ध श्रद्धालु भी भाग लेते हैं।

विशेष उल्लेखनीय है वर्ष 2021 का मध्यरात्रि ध्यान सत्र, जो कोरोना महामारी की समाप्ति के लिए समर्पित था। उस कार्यक्रम ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया और बौद्ध जगत का ध्यान आकर्षित किया था।

सामाजिक समर्पण और धर्मांतरण की ऐतिहासिक पहल

सुभारती विश्वविद्यालय केवल शैक्षणिक गतिविधियों तक सीमित नहीं रहा। वर्ष 2018 में विश्वविद्यालय ने बौद्ध धर्मांतरण के एक ऐतिहासिक कार्यक्रम की मेजबानी की, जिसमें लगभग 1500 लोगों ने बौद्ध धर्म को अपनाया।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य केवल धार्मिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि जातीय भेदभाव, सामाजिक विषमता और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरीतियों से मुक्ति के संदेश को प्रचारित करना था। इसमें देश-विदेश के कई बौद्ध संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।

कार्यक्रम का मूल संदेश था — “बौद्ध धर्म के माध्यम से समता, न्याय और करुणा को पुनर्स्थापित करना।”

नैतिकता और पारदर्शिता: हालिया विवाद पर विश्वविद्यालय की स्पष्ट भूमिका

हाल ही में सुभारती विश्वविद्यालय एक विवाद में तब आया जब 20 छात्रों ने फर्जी बौद्ध प्रमाणपत्रों के आधार पर अल्पसंख्यक कोटे के तहत एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्राप्त कर लिया।

लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने पूर्ण पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ जांच की, और दोषी पाए गए सभी छात्रों के प्रवेश निरस्त कर दिए गए। विश्वविद्यालय ने इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट संबंधित शासकीय विभागों को सौंप दी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि संस्था अपने मूल्यों और नैतिक दायित्वों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

अंतरराष्ट्रीय सहभागिता की ओर अग्रसर सुभारती विश्वविद्यालय

डॉ. परविंदर सिंह की यात्रा न केवल एक राजनयिक बौद्ध मैत्री का प्रतीक थी, बल्कि यह भारत को वैश्विक बौद्ध शिक्षा केंद्र के रूप में प्रस्तुत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।

विश्वविद्यालय की यह पहचान कि वह बौद्ध धर्म, भारतीय संस्कृति और सामाजिक समरसता का संगम है, आने वाले वर्षों में भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कूटनीति को वैश्विक स्तर पर मजबूती प्रदान कर सकती है।

सुभारती — शिक्षा से परे एक सांस्कृतिक यज्ञ

सुभारती विश्वविद्यालय आज केवल एक शैक्षणिक संस्थान नहीं, बल्कि वह एक ऐसा सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक केंद्र बनता जा रहा है जो भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक संदर्भों में पुनर्परिभाषित कर रहा है।

डॉ. परविंदर सिंह जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों की सहभागिता, बौद्ध अध्ययन की गंभीर पहल, सामाजिक न्याय के पक्ष में सक्रिय भूमिका और पारदर्शिता की प्रतिबद्धता — ये सब सुभारती को एक आदर्श भारतीय विश्वविद्यालय की श्रेणी में स्थापित करते हैं।

लेखक: रविंद्र आर्य
(भारतीय लोकसंस्कृति, इतिहास और सामरिक चेतना के स्वतंत्र विश्लेषक पत्रकार)

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