बंगाल मे होली की अनोखी परंपरा यहाँ होली के पाँच दिनों बाद पंच होली खेलने की है रिवाज़

यहाँ भक्त प्रह्लाद की तरह होलिका के साथ धधक्ति आग मे दहन की जाती है भगवान विष्णु के तीन अवतारों की शिला

 

कुल्टी।पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य जो राज्य देवी पूजा के लिये विख्यात तो है ही साथ मे यह धर्ती तंत्र साधनाओं और जादू टोनो के लिये भी अपना नाम विश्व स्तर पर दर्ज करवा चूका है, जिसकी वजह है इस धर्ती पर मौजूद कई शक्ति पीठें, जो यहाँ के त्योहारों को भी कुछ अलग ही रूप और रंग देती हैं, त्योहारों के इन्ही रूप और रंगों के बिच पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर आसनसोल के मिठानी इलाके मे होली का त्योहार कुछ अनोखे अंदाज मे मनाया जाता है, जो अब विश्व विख्यात बन चूका है, इस इलाके मे होली का त्योहार वर्ष मे दो बार बनाई जाती है, पर दोनों बार होली के त्योहार मनाने का तरीका कुछ अनोखा और सबसे अलग होता है, जिस दिन होली के त्योहार पर जब पूरा देश होली मनाता है उस दिन इस इलाके के लोग भी आम जनता की तरह होली का त्योहार बहोत ही धूम -धाम से मनाते हैं, जब होली ख़त्म हो जाती है ठीक उसके पांचवे दिन यहाँ एक बार फिर होली मनाई जाती है, जिस होली को यहाँ के लोग पंचम होली कहते हैं, होली का रंग और ग़ुलाल खेलने से पहले यहाँ के लोग होलिका दहन करते हैं, जिसमे होलिका के साथ यहाँ के लोग इलाके मे मौजूद मंदिर स्थापित भगवान विष्णु के तीन अवतारों की पत्थर की शिला को पुरोहितों के द्वारा मंन्त्रों उच्चारण के साथ भगवान विष्णु के अवतार लछमी नारायण, बासुदेव और दामोदर के पत्थर की शिला को उठाते हैं, उनकी पूजा याचना कर उनको होलिका के साथ दहन कर देते हैं, इस दौरान यहाँ के लोग ढोल और नगाड़े के थाप पर जमकर नाच और गाना करते हैं, इस दिन इलाके का हर एक सक्स निरामिस रहता है, कोई मीट और मछली या फिर शराब का सेवन नही कर्ता, पूरी रात इलाके मे मेला जैसा माहौल बना रहता है, जैसे ही आग की लपटों धधक्ति होलिका पूरी तरह जलकर राख़ मे तब्दील हो जाती है, तब लोग भगवान विष्णु के तीनो अवतारों को राख से बाहर निकालते हैं, जिसके बाद भगवान को जलाभिषेक करते हैं, उसके बाद उनको दूध, शहद और पुष्प से भी स्नान करवाया जाता है, इन सारी परिकिर्याओं के बाद भगवान को पहले रंग और ग़ुलाल से होली खेलाई जाती है और फिर पूरा इलाका पूरी तरह रंग और ग़ुलाल मे सराबोर हो जाता है, इस दौरान इलाके के लोग अपने -अपने घरों मे तरह -तरह के पकवान भी बनाते हैं जो पकवान पहले भगवान को भोग लगाते हैं जिसके बाद वही भोग प्रसाद के रूप मे इलाके के लोग ग्रहण करते हैं, इलाके के रहने वाले चंद्रशेकर चटर्जी की अगर माने तो इलाके मे हर वर्ष आयोजित होने वाला यह होली का त्योहार अपने आप मे अन्य त्योहारों से अलग तो है ही साथ मे अनोखा भी है, साथ मे इस त्योहार को मनाने के तौर और तरीके और रीती रिवाज़ भी इस त्योहार को एक अलग ही पहचान देती हैं, इलाके के रहने वाले तारक चटर्जी की अगर माने तो इस इलाके के लोग देश के किसी भी कोने मे रहे होली के त्योहार मे उनको उनका सारा काम छोड़कर आना ही होता है, वह इस लिये की यहाँ की वर्षों से चली आ रही परंपरा उनको और उनके परिवार को साथ मे उनके समाज को एक अटूट बंधन से जोड़े रहती है, जो अब कहीं देखने को नही मिलता

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