सिर्फ जयन्ती का पालन या अग्रसेनजी के आदर्श का भी

कोलकाता। महाराजा अग्रसेनजी ने एक नियम बना रखा था कि उनके नगर में जो भी नया अग्र बंधु आये, उसे प्रत्येक घर से एक रुपया तथा एक ईंट देकर समाज में सम्मान सहित जीवन यापन करने लायक बना दिया जाय। सनद रहे कि ऐसा करते समय उस व्यक्ति को न तो याचक समझा जाता था और ना ही उसे हिकारत की नजर से देखा जाता था। बल्कि उसे परिवार का ही एक सदस्य मान कर समाज में पूर्ण मर्यादा के साथ जीने की व्यवस्था कर दी जाती थी। मान लीजिये कि नगर में एक लाख परिवार हैं, तो उसे आते ही एक लाख रुपये मिल जाते थे, जो उसकी आजीविका का साधन हो जाता था।साथ ही लाख ईंटों से उसका सुन्दर मकान बन जाता था। इस प्रकार उसके रहने तथा अपने अध्यव्यवसाय के जरिये पूरे परिवार के भरण पोषण की उत्तम व्यवस्था हो जाती थी। अग्रकुल अधिष्ठाता अग्रोहा नरेश महाराजा अग्रसेन की इस महान सोच के कारण आज उन्हें विश्व में साम्यवाद का जनक कहा जाता है। समाजवाद, सामाजिक समरसता, गरीबी हटाओ जैसी विचारधाराएं उनके कार्यों के आगे पानी भरती हैं। पर दुर्भाग्य का विषय है कि 5100 से भी अधिक वर्ष पहले की अग्रसेनजी की इस सोच को हम उनके वंशज विस्मृत कर बैठे हैं।
इस वर्ष आगामी 3 अक्तूबर को अग्रसेनजी की जयन्ती है। पूरे देश की भांति कोलकाता महानगर के विभिन्न भागों में भी इसे दिखावे के रूप में धूमधाम से मनाया जायेगा। जुलूस निकलेंगे, मंच सजेंगे, भीषण भाषण होंगे। नेतागण माला पहनेंगे। फोटुओं खिंचेंगी, वीडियो बनायें जायेंगे। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मे खबरों के साथ भांति- भांति के वीडियो प्रसारित किये जायेंगे। विभिन्न समाचार-पत्रों में फोटुओं के साथ समाचार प्रकाशित होंगे। कार्यक्रमों के उद्योक्ताओं में से अधिकतर की यह कोशिश रहेगी कि उनकी फोटुएं व समाचार प्रमुखता से छपे। इसके लिए मीडिया को तरह-तरह से मैनेज करने की कोशिश भी की जाती है। यही नही, यदि किसी कारणवश किसी लोकप्रिय समाचार पत्र में यदि खबर नहीं छपी तो दूसरे दिन उसे पैसा देकर छपवाया जाता है। दरअसल वह होता है विज्ञापन, लेकिन प्रारुप समाचार जैसा होता है। यदि वैसा न करें तो उन्हें लगता है, समाज में उनकी नाक कट गयी। सच पूछा जाय तो ऐसे लोगों की नाक होती ही नहीं है, पर वे भ्रम पाले रहते हैं।
कहने का अर्थ यह है कि किसी भी महापुरुष की जयन्ती पालन का मूल उद्देश्य होता है, उनके विचारों व आदर्शोंका प्रचार प्रसार करने के साथ-साथ स्वयं भी उनका पालन करना, अपने जीवन में उतारना। पर ऐसा नहीं करके अधिकांश व्यक्ति, संस्थाएं व संगठन उसे बनावटी ढंग से मना कर स्वयं के प्रचार पर ही ज्यादा ध्यान केन्द्रित करते हैं। वैसे तो महाराजा अग्रसेनजी के कई आदर्श व सिद्धांत हैं, पर मैने सिर्फ एक अत्यंत महत्वपूर्ण नियम का प्रतिपादन किया है। यदि अग्रवाल समाज उसका अक्षरश: पालन करता, तो 5100 वर्षों बाद आज यह समाज दुनिया का सबसे शक्तिशाली ऐसा मानवतावादी समाज होता , जो किसी भी पड़ोसी को भूखा नहीं सोने देता। आज उसके पास अपनी विशाल आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक ताकत होती, जिसका उपयोग कल्याणकारी कार्यों के लिए होता । उसकी कमाई दूसरा लूट नहीं पाता। अपने समाज का कोई व्यक्ति व्यवसाय में भारी नुकसान होने पर कर्जदारों से तंग आकर अपनी ही दुकान में फांसी लगाकर जान नहीं देता। कोई व्यक्ति अपने परिवार के भरण- पोषण में व्यर्थ होकर अपनी ही संतानों के खून से हाथ रंग कर स्वयं आत्मघाती नहीं होता। कोई अग्रवाल नवजवान सबेरे से रात तक बसों व ट्रेनों में घूम घूम कर एक छोटे से बोयाम में लेमनचूस नहीं बेच रहा होता। उसे यदि समाज से आर्थिक सहारा मिल गया होता तो उसी मेहनत से न सिर्फ अपने परिवार का पेट भरता बल्कि किसी और परिवार का भी सहारा बन जाता। वैसे इसमें भी कोई संदेह नहीं कि अपने समाज के असंख्य व्यक्ति अपने- अपने क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर देश व समाज की सेवा कर रहे हैं, पर महाराज अग्रसेनजी की जयन्ती मनाना उसी दिन सार्थक होगा, जब हम निर्धनता के अंतिम छोर पर बैठे अपने समाज के व्यक्ति को भी सहारा देकर सम्मानजनक जीवन यापन की स्थिति में ला देंगे।

वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल

 

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