5 राज्यों के चुनावी नतीजों के क्या हैं मायने
नई दिल्ली. पांच राजों के चुनावी नतीजों (Assembly Elections Results) ने कई राजनीति दलों की बोलती बंद कर दी है. चार राज्यों में एक बार फिर से धमाकेदार जीत दर्ज करने के बाद बीजेपी ने अपनी राजनीतिक ज़मीन को और मजबूत कर लिया है. खास कर उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन ने पार्टी के लिए अगले लोकसभा चुनाव में फिर से जीत की उम्मीदें जगा दी है. दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी ने पंजाब में जीत कर इतिहास रच दिया है. ये पहला मौका है जब कोई क्षेत्रीय पार्टी एक राज्य से निकल कर दूसरे प्रदेशों में झंडा बुलंद कर रही हो.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या देश की राजनीति अब बदल रही है. आखिर क्या है 5 राज्यों में चुनावी परिणाम के मायने? आईए एक नज़र डालते हैं…
राजनीति में जाति का महत्त्व और सोशल पॉलिटिकल इंजीनियरिंग अभी भी कायम है. लेकिन हिन्दू मतदाता अब ज़्यादातर हिन्दू बनकर ही वोट दे रहा है, आमतौर पर हिन्दू जातिगत आधार पर वोट देता था. भाजपा का चुनावी मुद्दा भले ही कानून व्यवस्था और विकास रहा हो लेकिन जिस तरह से बहुसंख्यक वोट को एक विशाल बरगद के नीचे एकत्रित किया गया है वो मुखर भी है और चुनावों में निर्णयक भी है. ओम प्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे जातीय नेता भी तभी तक सफल हो रहे हैं जब तक वो भाजपा के साथ होते हैं. भाजपा से अलग होते ही वो कोई असर छोड़ने में नाकामयाब हो रहे हैं.
MY फैक्टर अभी भी काम कर रहा है जहां M का मतलब महिला और Y का मतलब योजना है. महिलाओं को सुरक्षा का एहसास हो और आम जनता को लाभार्थी योजनाएं सरलता से मिले – इन दोनों का कॉम्बो सफलता की गारंटी हैं.
नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति के महामानव है. उनका करिश्मा अभूतपूर्व है और कोई भी राजनेता चाहें वो किसी भी दल से हो, उनके आसपास भी नहीं हैं.
योगी आदित्यनाथ भाजपा में तेजी से उभरते एक नए ब्रांड है, जो बिलकुल ब्रांड मोदी की तर्ज पर काम कर रहे हैं. जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने ‘चौकीदार चोर है’ के हमले को ही अपना सबसे बड़ा चुनावी हथियार ‘मैं भी चौकीदार’ बना दिया था वैसे ही योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव के ‘बुलडोज़र बाबा’ के नाम से किये गए हमलों को ही अपनी ब्रांड वैल्यू से जोड़ दिया, यूपी की राजनीति में बुलडोज़र का मतलब ये हो गया जैसे शोषित ने दबंग शोषक का रूतबा ढहा दिया. भाजपा के जश्न में भी इसे साफ़ देखा जा सकता है.
भाजपा ने चारों राज्यों में अभूतपूर्व प्रदर्शन किया. यूपी उत्तराखंड गोवा और मणिपुर में सत्ता में वापसी की. यानी सत्ता विरोधी लहर जैसी बातें बेईमानी साबित हो गई. इसके दो मायने हैं- अव्वल तो सरकार से इतनी नाराज़गी थी ही नहीं कि लोग उसे हटाना चाहे. दूजा- अगर नाराज़गी है भी तो भी जनता ने मौजूदा विपक्ष को मौका देने लायक नहीं समझा.
पंजाब की राजनीति रिसेट/रिबूट हुई है, थोड़ी सी आशंका और बड़ी सारी उम्मीदों के साथ एकदम नई शुरुआत. सारे पुराने जमे जमाय मठाधीश निपट गए, इसको इस तरह से समझिए कि 50 सालों से जमा बादल घराना साफ़ हो गया, महाराज पटियाला कैप्टेन अमरिंदर हार गए और नवजोत सिंह सिद्धू जिस महिला से हारें हैं वो जीवन ज्योत कौर सेनेट्री पैड बांटती थी.
राहुल गांधी ने परफार्मेंस में जो निरंतरता दिखाई है वो विलक्षण है, पर इस बार की नाकामयाबी में प्रियंका गांधी भी बराबर की हिस्सेदार हैं. वो पार्टी में जान फूंकने आयी थी लेकिन परिणाम बता रहे हैं कि यूपी में कांग्रेस को किसी ने ज़रा भी तवज्जो नहीं दिया, पार्टी अध्यक्ष अजय लल्लू तक चुनाव हार गए. सीधी बात ये है कि कांग्रेस की छवि एक एंटी हिन्दू पार्टी की बन गयी है और जब तक ये छवि रहेगी, परिणाम भी ऐसे रहेंगे. पंजाब में सिद्धू को भी प्लांट करने में प्रियंका गांधी ने बड़ी भूमिका निभाई थी और सिद्धू कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हुए.
मायावती जी ने अगर तुरंत योग्य उत्तराधिकारी नहीं चुना तो इतनी बड़ी और कामयाब पार्टी बहुत जल्द समाप्त हो जाएगी. बहुजन समाज पार्टी एक राजनीतिक पार्टी होने के साथ एक सामाजिक आन्दोलन भी थी, जिसे अब वो समर्थन मिलना मुश्किल है क्यूंकि उसका वोट बैंक छिटक कर भाजपा के साथ चला गया है. मायावती की तबियत और उम्र भी एक बड़ा फैक्टर है, इसीलिए उन्हें जल्द से जल्द एक योग उत्तराधिकारी ढूंढना ही होगा.
इन परिणामों में जब भी परिवारवाद के हार की बात होगी तो उदाहरण उत्तर भारत से आएगा, हालांकि कहानी गोवा से भी है. पूर्व रक्षामंत्री और गोवा के लोकप्रिय मुख्यमंत्री रहे मनोहर पर्रीकर के बेटे उत्पल पर्रीकर को भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वो लोकप्रिय पिता की यादों के सहारे निर्दलीय चुनाव लड़ गए और हार भी गए. सबक ये है कि संघठन अहम है, खासकर कैडर बेस पार्टी में.
मणिपुर की सफलता का श्रेय मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को दिया जाएगा लेकिन एक अहम किरदार भाजपा की प्रदेश अध्यक्ष शारदा देवी भी हैं. “महिला प्रदेश अध्यक्ष” यानी संघठन के शीर्ष पर महिला। ये राजनीति का सबसे सुखद बदलाव है.