कोलकाता, 20 मार्च । साहित्य सृजन के कार्य को गंभीरता से लेते हुए एक साधक की भांति निरंतर सर्जनारत रहे डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र। उनके लेखन में समय और देशकाल का विवेचन तो है ही, जीवन में मंगलभाव को विकसित करने का शुभ संकल्प भी समाहित है। भाषा का वैभव, प्रयोगधर्मिता तथा शब्दों के मार्मिक प्रयोग उनके साहित्य में लक्षित होते हैं। गांव की माटी से जीवन रस संचित कर आंचलिकता का आभास कराते हुए उनकी रचनाएं हमें नए ढंग से सोचने को प्रेरित करती हैं। उनकी कृतियां साहित्य के पाठकों के लिए कल्पतरु है। दिवंगत कृष्णबिहारी जी बृहतर हिन्दी परिवार के पुरोधा थे।” ये उद्गार हैं महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र के। वह स्थानीय रथीन्द्र मंच में बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय के तत्वावधान में बृहत्तर कोलकाता की विशिष्ट साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक-आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा आयोजित पद्मश्री डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र सार्वजनिक स्मरण सभा में श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे।
इस अवसर पर उपस्थित विशिष्ट वक्ताओं ने डॉ. मिश्र के साहित्यिक अवदान, उनकी संवेदनशीलता तथा उल्लेखनीय रचनाधर्मिता सहित अपने अंतरंग संस्मरण सुनाए। पं. श्रीकांत शर्मा बाल व्यास ने अपने दीर्धकालीन सान्निध्य का स्मरण करते हुए डॉ. मिश्र को अपार मेधा शक्तिवाले प्रज्ञा पुरुष बताया। अजयेन्द्रनाथ त्रिवेदी ने उनके सकारात्मक चिंतन की चर्चा करते हुए व्यक्ति को अपने गुणों से समृद्ध होने की बात कहीं।
माहेश्वरी पुस्तकालय के मंत्री संजय बिन्नानी ने कहा कि डॉ. मिश्र बंगीय हिन्दी साहित्य के महानायक ही नहीं अभिभावक भी थे। डॉ. अभिजीत सिंह ने डॉ. मिश्र को सभ्यता एवं संस्कृति के नामों की छवि का प्रतीक बताया।ऋषिकेश राय ने उनकी कृतियों के शीर्षकों के चर्चा करते हुए उन्हें नवजागरण का पुरोधा बताया। भारतीय संस्कृति संसद की साहित्य मंत्री डॉ. तारा दूगड़ ने कहा कि मानवीय मूल्यों की संहिता हैं डॉ. मिश्र का साहित्य क्योंकि वे जैसे भीतर थे वैसे ही बाहर। डॉ. सत्या उपाध्याय ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन और साहित्य को लोक कल्याण के लिए नि:श्व कर दिया था। कमलेश मिश्र ने कहा कि मेरी मां लीलावती न होती तो साहित्य जगत को डॉ. कृष्णबिहारी मिश्र नहीं मिलते। मेरे पिता के जीवन एवं साहित्य में लोक मंगल का उल्लास सहज दिखाई देता है।
प्रारंभ में झीनी-झीनी बीनी चदरिया…” गीत प्रस्तुत किया हिमांशु सोनी ने तथा हे राम…” भजन प्रस्तुत किया सुप्रसिद्ध गायिका मारुती मोहता ने। डॉ. अनिल कुमार शुक्ल ने डॉ. मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विचार रखते हुए उनके जीवन और सहित्य को साधना की प्रतिमूर्ति बताया।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने अपने अनेक अंतरंग प्रसंग सुनाए एवं बताया कि उनका साहित्य हमारे लिए पाथेय है तथा उनका चुम्बकीय व्यक्तित्व हम सबके लिए प्रेरक है। साहित्यमंत्री योगेशराज उपाध्याय ने सभा संस्थाओं द्वारा डॉ. मिश्र को श्रद्धांजलि का कार्यभार संभाला। शोक प्रस्ताव का वाचन किया कुमारसभा के मंत्री बंशीधर शर्मा ने। कार्यक्रम के अंत में दिवंगत आत्मा की सद्गति हेतु एक मिनट का मौन पालन किया गया।
कोलकाता एवं हावड़ा महानगर की विशिष्ट संस्थाओं के पदाधिकारियों ने स्व. मिश्र को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।