केएमसी चुनाव : माकपा-कांग्रेस के अलग-अलग लड़ने से होगा तृणमूल को फायदा
कोलकाता,। पश्चिम बंगाल में बहुप्रतीक्षित कोलकाता नगर निगम (केएमसी) चुनाव की तैयारियां लगभग पूरी हो गई हैं। इसी साल अप्रैल-मई महीने में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव के दौरान एक साथ लड़ने वाली माकपा-कांग्रेस केएमसी का चुनाव अलग-अलग लड़ रही हैं। दोनों ही पार्टियों ने अपने-अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। आजादी के बाद बंगाल में कांग्रेस और उसके बाद 33 सालों तक शासन करने वाले वामपंथी पार्टियां अब राज्य में राजनीतिक तौर पर अवशेष बन चुकी हैं। पार्टी के कोर समर्थक ही मतदाता के तौर पर रह गए हैं जो दोनों पार्टियों के एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर एकजुट वोट करते हैं जिससे चुनाव परिणाम पर थोड़ा बहुत असर पड़ता रहा है। हालांकि इस बार केएमसी में दोनों पार्टियों के अलग-अलग चुनाव लड़ने से यह वोट भी बंट सकता है जिसका लाभ आखिरकार सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस को मिलने का दावा किया जा रहा है। इस पर हिन्दुस्थान समाचार ने राजनीतिक विश्लेषकों से बात कर इसके विभिन्न पहलुओं को समझने की कोशिश की है।
सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज, कोलकाता के राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने कहा,
“कोलकाता में चौतरफा लड़ाई है और चुनावों के लिए वाम-कांग्रेस का विभाजन तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को और मजबूत कर सकता है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को भी उन सीटों पर फायदा हो सकता है जहां पार्टियों के वोटों का मामूली अंतर है।”
19 दिसंबर को होने वाले निकाय चुनाव के लिए तृणमूल और भाजपा ने सभी 144 वार्डों में उम्मीदवार उतार दिए हैं। कांग्रेस ने भी सभी वार्डों में उम्मीदवार उतारा है जबकि वाम मोर्चा ने 120 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी कर कहा है कि बाकी सीटों पर उन उम्मीदवारों का समर्थन किया जाएगा जो तृणमूल और भाजपा को हराने में सक्षम होंगे।
लगातार दो बार कोलकाता नगर निगम (केएमसी) पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा रहा है। पिछले एक दशक में, वामपंथी और कांग्रेस के वोट बैंक में भारी कमी हुई है जबकि भारतीय जनता पार्टी के जनसमर्थन में भारी बढ़ोतरी हुई है।
इस्लाम ने बताया ” केएमसी चुनाव में स्थानीय मुद्दे प्रबल होते हैं और पार्टी के अलावा उम्मीदवारों का चुनाव हमेशा मतदाताओं के लिए एक कारक हो सकता है। पिछले चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने 126 वार्डों में जीत दर्ज की थी जबकि बाकी की सीटों पर भाजपा कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की जीत हुई थी।
इस बार विपक्ष में मौजूद पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ खड़ी हैं। राज्य स्तर पर तृणमूल के सामने भारतीय जनता पार्टी की मजबूती के बावजूद कोलकाता शहर में कांग्रेस और माकपा ही तृणमूल को चुनौती देते रहे हैं।”
उन्होंने कहा, ‘तृणमूल के लिए यह अप्रासंगिक है कि माकपा और कांग्रेस ने एक दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिए हैं। अब चौतरफा लड़ाई है, इससे तृणमूल के अधिकतर वार्डो में जीत की संभावना बढ़ जाएगी। हालांकि अगर कांग्रेस-वाम गठबंधन भी होता तब भी तृणमूल एक बड़े अंतर से जीतती।”
हालांकि इन दोनों पार्टियों के अलग-अलग लड़ने से भाजपा को कितना फायदा होगा इस बारे में मैदुल इस्लाम ने कहा, ‘भाजपा असमंजस की स्थिति में है। अंदरुनी कलह है। कोलकाता नगर निगम क्षेत्र में एक या दो वार्डों में उनकी अच्छी मौजूदगी है। जहां तक कोलकाता में भाजपा के प्रदर्शन का सवाल है तो इस पर कुछ भी कहने से पहले परिणाम का ही इंतजार करना बेहतर होगा।
वोटों के बंटवारे से तृणमूल को मदद मिलेगी और प्रतिद्वंद्वी भाजपा को उन सीटों पर ही मदद मिल सकती है, जहां विधानसभा चुनाव के दौरान बहुत कम वोटों के अंतर से उसका तृणमूल से मुकाबला रहा है।”
हालांकि, एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी का मानना है कि कांग्रेस और वाम दलों ने महसूस किया है कि गठबंधन होने पर भी उनके व्यक्तिगत मतदाता दूसरे साथी को वोट नहीं देंगे।
उन्होंने कहा, “मुझे लगता है, कांग्रेस और वामपंथियों ने बहुत सोच समझकर फैसले लिए हैं। कांग्रेस या वामपंथ के प्रति वफादार मतदाता वोट ट्रांसफर नहीं करेंगे, या वोटों का आदान-प्रदान नहीं करेंगे। यह एक वास्तविक आकलन है कि सिर्फ गठबंधन होने के कारण कोई बदलाव या वोटों का ट्रांसफर नहीं होता है। इसलिए दोनों ही पार्टियों ने भविष्य की राजनीति और पार्टी की मजबूती को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। इसका बहुत अधिक लाभ तृणमूल कांग्रेस को अथवा भाजपा को मिलने वाला नहीं है। बाकी राज्यों की तरह कोलकाता में भी सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल और विपक्षी भाजपा के ही मतदाताओं की संख्या अधिक है। इसीलिए मुख्य लड़ाई इन्ही दोनों के बीच रहने वाली है।