मिट्टी में जीवंतता फूंकने वाली कुम्हार टोली में सालों भर पल-पल जिंदा होती हैं मां दुर्गा

कोलकाता । पश्चिम बंगाल में मां दुर्गा की आराधना वैसे तो महालया के दिन देवी पक्ष यानी दशहरा की शुरुआत के साथ ही शुरू हो जाती है। उसी दिन से शुरू हो जाती है मूर्तियों की स्थापना जो पंचमी के एक दिन पहले तक जारी रहती है। ऐसे समय में कोलकाता का कुम्हार टोली जहां के कलाकार मिट्टी में जीवंतता फूंकते हैं और यही मां दुर्गा की मूर्तियां इन शिल्पकारों की वर्ष भर की मेहनत में पल-पल जिंदा होती हैं। अब यहां अंतिम क्षणों की चहल कदमी कुछ यूं है कि पूरे राज्य से यहां प्रतिमा ले जाने वालों का तांता पिछले एक हफ्ते से लगा है। कोई कोलकाता के दक्षिण हिस्से से आया है तो कोई सुदुर क्षेत्र से। कोई मध्य कोलकाता से है तो कोई हावड़ा, हुगली, उत्तर और दक्षिण 24 परगना के विभिन्न क्लबों से छोटी मेटाडोर गाड़ियां लेकर मां दुर्गा का जयकारा लगाते हुए मूर्तियों को ले जाने के लिए आया है।
सालों भर मां को गढ़ने वाले शिल्पकार और मूर्तिकार यहां इतने व्यस्त हैं कि उन्हें सांस लेने की फुर्सत नहीं। जिस मिट्टी में उन्होंने जान फूंक कर मूर्तियों को जीवंत स्वरूप दिया है उन्हें अब उन क्लबों को सौंपा जा रहा है जिन्होंने इसके लिए अग्रिम ऑर्डर दे दी थी। सुबह 5:00 बजे सूरज की किरणें जैसे ही रौशनी बिखेरती हैं, लोगों का तांता मूर्तियां ले जाने के लिए लग जाता है। देर शाम सूरज ढलने तक जारी रह रहा है।


यहां के प्रतिष्ठित मूर्तिकार मिंटू पाल ने पिछले साल मिट्टी की 30 मूर्तियां और दो फाइबरग्लास की प्रतिमाएं बनाई थीं। उन्होंने बताया कि इस साल 40 मूर्तियां उन्होंने मिट्टी की बनाई है जबकि 15 मूर्तियां फाइबरग्लास से बनाई गई हैं। फाइबर ग्लास की जितनी मूर्तियां थीं वे महालया के दिन ही पूजा आयोजक ले गए हैं जबकि मिट्टी की मूर्तियां भी लगभग सारी जा चुकी हैं।


कोलकाता में बड़े पैमाने पर गगनचुंबी पंडालों के बीच विशालकाय मां दुर्गा की मूर्तियों, शानदार लाइट सज्जा और दुनिया भर के बेहतरीन दृश्यों को पंडाल के शक्ल में बनाने वाले बड़े पूजा आयोजक संतोष मित्र स्क्वायर, साल्टलेक एफडी ब्लॉक, बेनियाटोला सहित अन्य पंडालों में अष्ट धातु की मूर्तियों समेत कई बड़ी आकर्षक प्रतिमाएं मिंटू पाल ने ही बनाई है। उन्होंने बताया कि 28 शिल्पकारों को साथ लेकर महीनों तक काम करने पर ये सारी मूर्तियां बनी हैं जो अब मां दुर्गा की पूजनीय प्रतिमा के रूप में राज्य के विभिन्न हिस्सों में पंडालों में स्थापित हो चुकी हैं। इन्हें देखने के लिए न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया से लाखों पर्यटक आ चुके हैं।

एक और मूर्ति निर्माता शंभू चरण पाल एंड संस के दो प्रमुख शिल्पकार दोनों भाई अपूर्व और पार्थ प्रतिम भी अति व्यस्त हैं। कुम्हार टोली में प्रगतिशील मृत शिल्पी और साज शिल्पी समिति के सचिव अपूर्व ने बताया कि महामारी की वजह से दो सालों तक मूर्ति निर्माण के आर्डर तक नहीं मिले। पिछले साल हम लोगों ने केवल 20 मूर्तियां बनाई थीं लेकिन इस बार 30 मूर्तियों का ऑर्डर मिला था। दोनों भाई मिलकर लगातार मिट्टी की मूर्तियों को जीवंत रूप देते रहे हैं जो अब पंडालों में पहुंच चुकी हैं।


ऐसे ही एक शिल्पकार हैं गौतम जो वैसे तो वर्ष के अन्य दिनों में सहायक पशु चिकित्सक के तौर पर काम करते हैं लेकिन दुर्गा पूजा के समय एक महीने तक मूर्तियां बनाने में व्यस्त रहते हैं। उनकी पांच पीढ़ियां मूर्ति निर्माण करती रही हैं। पिछले साल अपने अन्य कलाकारों की मदद से उन्होंने 17 दुर्गा प्रतिमाएं बनाई थी लेकिन इस बार यह संख्या 24 है।  पिता की काफी उम्र हो चुकी है इसलिए देवी दुर्गा की प्रतिमा में आंख उकेरने का पूरा काम मुझे करना पड़ता है। यह काफी दक्षता के साथ करना होता है इसीलिए वक्त लगता है।


इसी तरह की एक और मूर्तिकार हैं काकली पाल। 2002 में पति की मौत हो गई। दो बेटियों की जिम्मेदारी थी इसलिए वह भी पति की राह पर चल पड़ीं और मां दुर्गा की प्रतिमाएं बनाने लगीं। उनके पिता कृष्ण चंद्र पाल भी मूर्तिकार हैं। हालांकि वह कुमार टोली में नहीं बल्कि नदिया जिले के कृष्ण नगर के सुदूरवर्ती क्षेत्र धुबूलिया में रहते हैं। काकली ने बताया कि बड़ी बेटी की शादी हो गई है लेकिन छोटी बेटी कॉलेज में पढ़ती है। मां दुर्गा की प्रतिमा निर्माण से ही साल भर रोजी-रोटी चलता है। इस बार 25 मूर्तियों का निर्माण की हूं। सिंथी मोड़, बेहला, कांकुरगाछी, न्यू अलीपुर की बड़ी प्रतिमाएं मेरी बनाई हुई हैं।


इन सभी मूर्ति कारों से पूछा गया कि अब तो सारी मूर्तियां लगभग चली गई हैं। आपकी व्यस्तता खत्म हो गई होगी और सांस लेने की भी फुर्सत मिलेगी? इस पर सब का जवाब था नहीं नहीं दुर्गा पूजा के बाद तो लक्ष्मी पूजा है, उसके बाद जग धात्री पूजा है, उसके बाद काली पूजा हैं। प्रतिमाएं तो हम ही बनाएंगे। पूरा कार्तिक महीना व्यस्तता में बितने वाला है। मां दुर्गा की आराधना के बीच बस चंद दिनों की राहत है उसके बाद फिर मूर्तियों में जान फूंकने की व्यस्तता शुरू हो जाएगी।

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