“संसार के सभी धर्मों से जुड़ा हुआ सिर्फ “योग-धर्म ” ही अति भयावह तीसरे विश्वयुद्ध को रोकने की गारंटी दे सकता है” –पं.आर्यगिरि

आसनसोल। “सभ्य और उन्नतिशील विश्व-मानवता के लिए हमारे भारतीय ऋषियों का अद्भुत और अनमोल आविष्कार ये “योग” सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि जैन, बौद्ध, पारसी, यहूदी, ईसाई, इस्लाम,सिक्ख आदि सभी धर्मों के भिन्न-भिन्न क्रियाओं में तो पाये ही जाते हैं। इन्हीं बातों को समझकर जब संसार के सभी धर्मावलंबी लोग लगभग अप्रासंगिक हो चुके अपने-अपने पुराने धर्माडंबरों को ढोते रहने के बजाय सामंजस्यवादी “योग” के वैज्ञानिक विचारों-व्यवहारों को ही मूल-धर्म मानने लगेंगे, तब हमारी रूग्ण-मानवता की सिर्फ सेहत ही नहीं सुधरेगी, बल्कि परस्पर प्रेम और सर्वोन्नति की ओर एक साथ मिलकर हम सबके चलने मात्र से ही तीसरे विश्व युद्ध की भयावह आशंका भी सदा सदा के लिए टल जायेगी। ये बातें आसनसोल जामुड़िया के निंघा स्थित निंगेश्वर मंदिर के मुख्य पुजारी एवं पतंजलि योग प्रचारक पं.आर्य प्रहलाद गिरि ने ग्यारहवें विश्व योग दिवस के अवसर पर अपने शिवमन्दिर प्रांगण में उपस्थित अनेकों योगार्थियों के बीच कही।इस अवसर पर भारत माता के चित्र के सामने दीप जलाकर योगशिक्षक मिथलेश चौहान, प्रीतम प्रसाद वैद्य, डा. जयराम शर्मा को मानवाधिकार समिति के जीतेंद्र बर्मा, प्रदीप सिंह व अशोक साव के हाथों भगवा गमछा ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। गिरमिट से आये मिथलेश चौहान ने विश्व योग दिवसीय प्रोटोकॉल के अनुसार ही योग के सभी क्रियाओं के तरीके और लाभ बता-बता कर सिखाते रहे। इस योग-महोत्सव के योग प्राणायाम के अंत में विश्वशांति और वैश्विक सद्भावना के लिए वैदिक मंत्रों से प्रार्थना करते हुए सामूहिक हास्यासन के ठहाकों के बाद योगर्षि पतंजलि का प्रसाद के रूप में बिस्कुट व फलों के जूस भी बांटे गए। सामूहिक-योग की इस संजीवनी-गंगा में दीलिप शर्मा, यदुनंदन यादव, किशोर शर्मा, डा. मनोज कुमार, राजेन्द्र सिंह, राम सरेख महतो, गजाधर महतो, मृत्युंजय मंडल, गरीब यादव, राममनोहर शर्मा, पार्वती विश्वकर्मा,आशा देवी, उषा यादव, द्रौपदी नोनिया, उमारानी गिरि, प्रेमशीला श्याम भारती, लालचंद अग्रवाल, मालती देवी, अनुप्रिया यादव रीतिका कुमारी आदि योगार्थी गण विशेष रूप से उपस्थित रहे।

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