कोलकाता 14 अप्रैल। पश्चिम बंग हिंदी अकादमी, सूचना एवं संस्कृति विभाग , पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा “पुस्तक मित्र” श्रृंखला की द्वितीय कड़ी का सफलतापूर्वक आयोजन हिंदी अकादमी के सभागार में संपन्न हुआ। पश्चिम बंगाल कैडर के आईपीएस अधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह द्वारा रचित खंडकाव्य “द्रौपदी” इस बार की चयनित पुस्तक थी। इस पुस्तक पर चर्चा के लिए मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी और प्रो. अभिजीत सिंह उपस्थित थे।
कार्यक्रम में पुस्तक के चयनित अंशों का वाचन किया गया। वाचन कर्ता थे प्रसिद्ध रंगकमी कल्पना झा, कार्तिकेय त्रिपाठी, रोहित बासफोर और युवा कवि फरहान अज़ीज़। इनके भावप्रवण वाचन ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया था। अपने वक्तव्य में डॉ. प्रेम शंकर त्रिपाठी ने कहा कि गहन शोध कर्म के उपरांत इस पुस्तक का पूरोवाक् लिखा गया है और सभी तथ्यों को उद्धहरण के साथ प्रस्तुत किया गया है। डॉ त्रिपाठी ने लेखक की परिष्कृत भाषा और साहित्य के प्रति विनम्र समर्पण का भी उल्लेख किया।
प्रो. अभिजीत सिंह ने बताया कि वे इस खंडकाव्य पर सृजन के समय से ही लेखक के साथ थे । उन्होंने एक पुरुष के द्वारा नारी के दृष्टिकोण से काव्य लिखे जाने को एक कठिन कार्य बताया और कहा कि व्यक्तिवांतरण किए बिना ऐसी रचना का सृजन संभव नहीं है। इस रचना में महाभारत के सभी चरित्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण भी किया गया।
कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन हिंदी अकादमी की सदस्याओं शुभा चूड़ीवाल और रचना सरन द्वारा किया गया। अपने स्वागत वक्तव्य में रचना सरन ने कहा कि पुस्तक मित्र श्रृंखला इसी प्रयोजन से प्रारंभ की गई है कि लोगों को पुस्तकों की जानकारी हो और इस तरह से हो कि
पाठकों के मन में पुस्तकों के प्रति रुचि जागृत हो।
शुभा चूड़ीवाल ने कहा कि “द्रौपदी ” पुनर्कथन नहीं पुनराविष्कार है। इसमें पुरुष प्रधान समाज में रहने वाली नारी की आवाज सुनाई देती है।” उन्होंने सभी वक्ताओं ,वाचनकर्ताओं एवं अतिथियों को धन्यवाद ज्ञापित किया ।
इस अवसर पर कोलकाता की प्रतिष्ठित साहित्य सेवी दुर्गा व्यास, रवि प्रताप सिंह, मृत्युंजय श्रीवास्तव, डॉ विमलेश त्रिपाठी, पद्माकर व्यास, कवि आनंद गुप्ता, विनय मिश्र, अनिला राखेजा, शायर शाहिद फारोग़ी, भूपेंद्र सिंह बशर और प्रदीप कुमार धानुक सहित कोलकाता के अनेक साहित्यकार और रंग कर्मी उपस्थित थे।
कार्यक्रम में दर्शकों और वक्ताओं ने आज के समय में ऐसे कार्यक्रमों की उपयोगिता और आवश्यकता पर भी चर्चा की , साथ में इसके निष्पादन को भी सराहा।