क्रांति कुमार पाठक
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वास्तव में मानव प्रजाति को अगर प्रकृति का सबसे बड़ा दुश्मन कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। क्योंकि प्रकृति के साथ मनुष्य सदियों से करता चला आ रहा है, जिसका सीधा प्रभाव हमें वर्तमान में यानी कि अब देखने को मिल रहा है। देश में मानसून के आगमन अर्थात वर्षा ऋतु के आते ही एक ओर जहां किसानों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है वहीं आम लोग आसमानी आफतों जैसे बाढ़, भूस्खलन, आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं से भयाक्रांत हो उठते हैं। बीते दिनों बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड समेत देश भर के कई राज्यों में आकाशीय बिजली गिरने से बढ़ी संख्या में लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। कुछ वर्ष पहले तक इस तरह की घटनाएं नहीं के बराबर देखने -सुनने को मिलती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों से आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं काफी बढ़ गई है, जो कि बहुत ही चिंताजनक स्थिति है। देश में प्रतिवर्ष आकाशीय बिजली गिरने अथवा वज्रपात से हजारों लोगों की मौतें हो रही हैं। भारत में बिजली गिरने की घटनाएं बीते 52 वर्ष में तकरीबन 38 फीसदी तक बढ़ गई है।
दरअसल, आकाशीय बिजली अथवा वज्रपात या तड़ित गिरने के पीछे मुख्य कारण पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन है। पृथ्वी की सतह का तापमान हर साल औसतन 0.03 डिग्री सेल्सियस के हिसाब से बढ़ रही है। पृथ्वी का वैश्विक तापमान पिछले दशक में हर जगह 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। इसके साथ ही महासागरों के सतही जल के तापमान में भी वृद्धि दर्ज की गई है। तापमान में एकाएक बढ़ोतरी से वायुमंडल में अस्थिरता व वाष्प मात्रा में अधिकता तथा प्रदूषकों की सांद्रता बढ़ने से ऊंचाई पर स्थित बादलों में आवेशन की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं, जो बिजली गिरने की घटनाओं के पीछे मुख्य रूप से उत्तरदाई है। भू-वैज्ञानिकों ने भी इन्हीं कारणों को बिजली गिरने के लिए जिम्मेदार ठहराया है। वैश्विक संगठन क्लाइमेट रेसिलैंट आब्जर्विंग सिस्टम प्रोमोशन काउंसिल और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान ने मिलकर वर्ष 1967 से 2019 तक प्राकृतिक घटनाओं के औसत और वर्ष 2020 से 2021 की विभिन्न घटनाओं व बदलावों पर अध्ययन कर निम्न आंकड़े जारी किए गए हैं, जिसके अनुसार देश में वर्ष 2019-2020 में एक करोड़ 38 लाख बार बिजली गिरने की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो वर्ष 2020-2021 में बढ़कर एक करोड़ 85 लाख हो गई थी। कोविड महामारी के दौरान बिजली गिरने की घटनाओं में कुछ आई है क्योंकि उस समय प्रदूषण का स्तर न्यूनतम रहा। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बिजली भी दो तरह की होती है, एक बादल से दुसरे बादल में जाने वाली और दूसरी बादल से धरती पर गिरने वाली। इसमें बादल से बादल में जाने वाली बिजली की घटनाएं 44 फीसदी बढ़ी हैं। वहीं बादल से धरती पर गिरने वाली बिजली की घटनाओं में 17 फीसदी की वृद्धि हुई है। भारत में हर साल बिजली गिरने की लगभग एक करोड़ से ज्यादा घटनाएं होती हैं, जिनमें दो से ढाई हजार लोगों की मौत हो जाती है। अप्रत्यक्ष रूप से गिरने वाली आकाशीय बिजली से भी भारी जानमाल का नुकसान होता है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक बीते साल लगभग 800 लोग आकाशीय बिजली अथवा वज्रपात का शिकार हुए थे।
भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक देश में सबसे अधिक मध्य प्रदेश में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं घटित होती हैं। इसके बाद छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, ओडिशा व पश्चिम बंगाल का नंबर आता है। वैसे बिहार, झारखंड उत्तरप्रदेश और राजस्थान भी इससे काफी प्रभावित हैं। आकाशीय बिजली गिरने की 90 फीसदी से अधिक घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में होती है, जहां दिन का तापमान अधिक होता है। वहां पर दोपहर के बाद होने वाली बारिश में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं ज्यादा देखने को मिलती हैं। हालांकि पूरे विश्व में ही आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं। इनसे बचाव के लिए हमें पूर्वानुमान की तकनीक और माॅडल विकसित करने की आवश्यकता है। इस गिरने की पूर्व सटीक पूर्वानुमान की जरूरत है। इस दिशा में भारत मौसम विज्ञान व अन्य संबंधित संस्थाओं के साथ सतत् शोध और विकास को बढ़ावा देना चाहिए। अभी भारत में दामिनी एप बिजली गिरने का पूर्वानुमान 20 मिनट पहले दे रही है। इसका समय और बढ़ाने की आवश्यकता है। ग्रामीण इलाकों में इमारतों में लाइटिंग कंडक्टर (तड़ित चालक) भवनों के ऊपरी हिस्से पर लगाना चाहिए आकाशीय बिजली से सुरक्षा के लिए।
इसी तरह आम लोगों में आकाशीय बिजली अथवा वज्रपात के बारे में व्यापक रूप में जागरूकता अभियान चलाना होगा और लोगों को बताना होगा कि वे बारिश के दौरान ऊंचे स्थानों व खुले मैदानों में जाने से बचें। मेघगर्जन के समय विद्युतीय तारों और विद्युत सुचालक संयंत्रों से दूर रहें क्योंकि यह आकाशीय बिजली को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। प्राकृतिक घटनाओं में कमी के लिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी होगी साथ ही वातावरण की स्वच्छता पर ध्यान देना होगा। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर्यावरण के लिए भविष्य की चुनौतियां हैं।