
“भारत में पत्रकारिकता की शुरुआत में अंग्रेजी शासन के खिलाफ जनता की शक्ति को प्रकाशित किया जाता था।आज मीडिया शासक की शक्ति को प्रकाशित करता है। हमेशा शासक दबदबा बनाए रहने के लिए मीडिया के साथ हर क्षेत्र में अपना दबदबा बनाते हैं।नयी पीढ़ी में सुरेंद्र प्रताप सिंह खोजना मुश्किल है “-पूर्व सांसद मोहम्मद सलीम ने ये बातें कहीं।
4 दिसम्बर को मुंशी प्रेमचंद लाइब्रेरी कोलकाता में पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज द्वारा प्रसिद्ध पत्रकार सुरेन्द्र प्रताप सिंह की 77वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी “लोकतंत्र में मीडिया और मीडिया का लोकतंत्र “विषय पर आयोजित संगोष्ठी में मोहम्मद सलीम बोल रहे थे। पश्चिम बंग हिंदी भाषी समाज के प्रधान संरक्षक मोहम्मद सलीम ने कहा “लोकतंत्र अगर संस्था के अंदर है,तभी बाहर रहेगा। सामंतवादी सोच में महिला,पुरूष का फर्क होता है। मीडिया के साथ राजनीतिक दलों में भी ऊँच- नीच का फर्क होता है। लोकतंत्र का मतलब है सब बराबर। कानपुर से प्रकाशित “प्रताप” अखबार के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी सांप्रदायिक दंगा रोकने में शहीद हो गये थे।आज उस तरह के संपादक किस मीडिया में मिलेंगे।आज मीडिया में पूँजी निवेश करनेवाले संपादकीय नीति तय करते हैं। सुरेन्द्र प्रताप सिंह संपादकीय नीति तय कर काम करते थे। सुरेन्द्र प्रताप सिंह बोलचाल की भाषा को महत्व देते थे।जब भाषा विकसित होती है तब मिलीजुली भाषा का विकास होता है। लोकतंत्र के साथ धर्मनिरपेक्ष जुड़ा है। सुरेन्द्र प्रताप सिंह पत्रकारिता में,’आज तक ‘में लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष शब्दों का इस्तेमाल करते थे।”यह थी खबरें आज तक, इंतजार कीजिए कल तक”यह धर्मनिरपेक्ष भाषा थी।आज भाषा में सेंसरशिप है।शासक संस्कृति,नाटक,सिनेमा में अलिखित घोषणापत्र जारी कर रहा है। मीडिया में जो हो रहा है,वह बाहर भी है। मीडिया में मोनोपोली है। मीडिया पावरफुल हुआ है।”
मोहम्मद सलीम ने कहा कि चिट फंड ने बंगाल की मीडिया का बहुत नुकसान किया है। कलकत्ता से प्रकाशित आजादी की लड़ाई का ऊर्दू अखबार ‘आजाद हिन्द’ चिट फंड बंद होने के बाद बंद हो गया ।
मोहम्मद सलीम ने कहा कि डी वाई एफ आई का महासचिव रहते हुए बेरोजगारी की समस्या पर दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम का संचालन सुरेंद्र प्रताप सिंह ने किया था। प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ ‘इंडिया टुडे ‘में काम कर रहे सुरेन्द्र प्रताप सिंह को कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था।पहले अखबार छप कर बिकता था और अब अखबार बिककर छपता है।आज देश की मीडिया का बड़ा हिस्सा दो पूँजीपतियों के पास है। मीडिया विज्ञापनदाता,निवेशक का समर्थन करता है।आज सरकार मीडिया का सबसे ज्यादा निवेशक है।
युवा पत्रकार देवजानी रत्नप्रभा ने कहा कि 2006में मेरी उम्र के बहुत सारे पत्रकार समाज को बदलने के उद्देश्य से पत्रकारिता में आए थे।पहले पत्रकार को बहुत सम्मान से देखा जाता था। सुरेन्द्र प्रताप सिंह उन्हीं का प्रतिनिधित्व करते हैं।आज बिहार के बेतिया जिला से आदित्य और उनके 17साथी अवैतनिक काम करते हुए समाज बदलने के लिए “चंपारन नीति “अखबार का प्रकाशन करते हैं। मुख्यधारा की मीडिया से लोगों का झुकाव कम हो रहा है।
‘आज तक’ कलकत्ता की पहली प्रतिनिधि सुदेष्ना बसु ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि लोकतंत्र से पहले मीडिया था।1780 में जेम्स हिकी को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखने के कारण 6महीने जेल की सजा मिली थी। सरकार वैकल्पिक मीडिया से डरती है।एस पी सिंह के समय जो ‘आज तक ‘था वह ‘आज तक’ अब नहीं है।
राजीव पांडेय ने संगोष्ठी का संचालन और श्रीप्रकाश जायसवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
