एसएससी मामला : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अभिभावकों में चिंता

 

कोलकाता, 03 अप्रैल । सुप्रीम कोर्ट के गुरुवार के फैसले ने पश्चिम बंगाल में 2016 की एसएससी भर्ती प्रक्रिया के तहत नियुक्त 25 हजार 753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया, जिससे स्कूलों, शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों के बीच अनिश्चितता और चिंता का माहौल बन गया है। इस फैसले ने कलकत्ता हाई कोर्ट के उस निर्णय को बरकरार रखा है, जिसमें भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं, जैसे ओएमआर शीट से छेड़छाड़ और भ्रष्टाचार, का हवाला दिया गया था।
पश्चिम बंगाल के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा छह से 12 तक के शिक्षकों की भर्ती स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) के माध्यम से होती है। इस फैसले के बाद 25 हजार 753 कर्मचारियों की नौकरी एक झटके में चली गई, जिसका सीधा असर स्कूलों की दिनचर्या पर पड़ना तय है। उदाहरण के लिए, एक स्कूल से दो, दूसरे से आठ, और तीसरे से 36 कर्मचारी प्रभावित हुए हैं। ऐसे में कक्षाएं संचालित करने की जिम्मेदारी कौन लेगा, यह सवाल अनुत्तरित है। खासकर 11वीं और 12वीं कक्षाओं के लिए विषय-विशिष्ट शिक्षकों की कमी से पाठ्यक्रम पूरा करना मुश्किल हो सकता है। अभिभावक और छात्र इस बात से चिंतित हैं कि शिक्षण की गुणवत्ता और गहराई प्रभावित होगी।
इसके अलावा, स्कूलों में पहले से ही काम का बोझ बढ़ रहा है। टेस्ट, मूल्यांकन, और परिणामों को बांग्ला शिक्षा पोर्टल पर अपलोड करने जैसे कार्य नियमित रूप से किए जाते हैं। माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक परीक्षाओं की खातों की समीक्षा का काम भी चल रहा है, जिसमें 60-65% प्रगति हो चुकी है। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों और कर्मचारियों के हटने से यह काम समय पर पूरा करना चुनौतीपूर्ण होगा। स्कूल प्राधिकारियों को डर है कि इस कमी को तुरंत पूरा करना संभव नहीं होगा, क्योंकि नई भर्ती प्रक्रिया शुरू करने में समय लगेगा और यह मुकदमेबाजी के जाल में फंसी हुई है।

कुछ सूत्रों का कहना है कि प्रभावित शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को तत्काल इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है और उनके पास तीन महीने का समय हो सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्पष्ट है कि ये नियुक्तियां अवैध हैं। इससे शिक्षकों के मनोबल पर असर पड़ना स्वाभाविक है। जिन लोगों ने चार-पांच साल तक सेवा दी, उन्हें अब अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर, कोर्ट ने यह राहत दी है कि पहले से मिले वेतन या लाभ को वापस नहीं करना होगा, लेकिन भविष्य में उनकी जगह कौन लेगा, यह सवाल बना हुआ है।

इस संकट से निपटने के लिए राज्य सरकार को तेजी से कदम उठाने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने नई चयन प्रक्रिया शुरू करने और इसे तीन महीने में पूरा करने का निर्देश दिया है। लेकिन भर्ती प्रक्रिया की जटिलताओं और कानूनी अड़चनों को देखते हुए यह समयसीमा व्यवहारिक लगती नहीं है। स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात को बनाए रखने और शैक्षणिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने के लिए तत्काल वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत है। यह भी संभव है कि सरकार अंतरिम रूप से अन्य शिक्षकों या अस्थायी कर्मचारियों को नियुक्त करे, लेकिन इसके लिए नीतिगत और प्रशासनिक तैयारी अभी तक स्पष्ट नहीं है।

विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है, लेकिन इसके तात्कालिक परिणाम स्कूलों के लिए चुनौतीपूर्ण हैं। “कौन पढ़ाएगा?” और “स्कूल की गतिविधियां कैसे चलेंगी?” जैसे सवालों का जवाब सरकार और शिक्षा विभाग को जल्द से जल्द ढूंढना होगा, वरना छात्रों की पढ़ाई और स्कूलों का संचालन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। इस बीच, सीबीआई जांच जारी रहेगी, जो भविष्य में और खुलासे ला सकती है।

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