कोलकाता, 05 सितंबर । पश्चिम बंगाल के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज कांड के बाद सरकार द्वारा दिए गए पुरस्कारों को लौटाने की कड़ी लगातार लंबी होती जा रही है। इस विरोध की लहर में शिक्षकों से लेकर थिएटर से जुड़े लोगों ने भी हिस्सा लिया है। शिक्षक दिवस के अवसर पर पहली बार राज्य के शिक्षा मंत्री और प्रसिद्ध नाट्यकर्मी ब्रात्य बसु ने इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ी। उन्होंने कहा कि जो लोग सरकार द्वारा दिए गए पुरस्कारों को लौटा रहे हैं, उनका स्वागत है और यह उनका अधिकार है।
ब्रात्य बसु ने कहा कि जिन लोगों ने नाटकों के पुरस्कार छोड़े हैं, उनका स्वागत है। यह उनका अधिकार है। विशेष रूप से, एक नाट्य निर्देशक जिन्होंने अपना पुरस्कार लौटाया, वह कभी वाम मोर्चा के उम्मीदवार रहे थे। इसके बावजूद भी उन्हें नाट्य अकादमी से सम्मानित किया गया था।
उन्होंने आगे कहा कि पुरस्कार लौटाने का निर्णय पूरी तरह से व्यक्तिगत है, इसलिए इस पर ज़्यादा चर्चा करना उचित नहीं है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हर व्यक्ति को पुरस्कार लौटाने का अधिकार है, लेकिन भविष्य में अगर केंद्र सरकार के खिलाफ कोई घटना होती है तो वे वही रुख अपनाएं।
शिक्षा मंत्री ने कहा कि वह खुद सरकार का हिस्सा हैं, इसलिए उनका खुद पर उंगली उठाना कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने कहा, 2006-07 में मेरी कोई राजनीतिक पहचान नहीं थी। 2011 से मेरी राजनीतिक पहचान बनी है। मुझे राजनीतिक धरातल पर विरोध जताना होता है। जो आंदोलन चल रहा है, उसमें मेरी आवाज़ है। यह आंदोलन प्रशासन के खिलाफ उठ रहा है, और मैं खुद प्रशासन का हिस्सा हूं। इसलिए, मैं खुद पर कैसे उंगली उठा सकता हूं ? लेकिन हमें विरोध की आवाज़ सुनने की ज़रूरत है, और हम सुन रहे हैं।
इस विरोध की शुरुआत अलीपुरद्वार के सेवानिवृत्त शिक्षक परिमल दे ने की थी, जब उन्होंने पिछले सप्ताह बंगरत्न पुरस्कार लौटाने की घोषणा की। इसके बाद, प्रसिद्ध अभिनेता चंदन सेन ने थिएटर के सर्वोच्च सम्मान ‘दीनबंधु मित्र पुरस्कार’ को ठुकरा दिया। धीरे-धीरे अन्य नाट्यकर्मी भी इस विरोध का हिस्सा बनने लगे। निर्देशन में उत्कृष्टता के लिए मिला पुरस्कार भी विप्लव बनर्जी ने लौटा दिया। सन्जीता मुखर्जी ने भी सोशल मीडिया पर घोषणा करते हुए नाट्य अकादमी का पुरस्कार ठुकरा दिया।
नाट्यकर्मियों के अलावा, शैक्षणिक जगत से भी इस विरोध में शामिल होने वालों की संख्या बढ़ रही है। प्रख्यात लेखक अभ्र घोष ने अपने शोध कार्य के लिए मिला ‘विद्यासागर पुरस्कार’ लौटाने की घोषणा की, वहीं लेखक और प्रबोधक आशीष लाहिड़ी ने भी राज्य सरकार को पत्र लिखकर अपना ‘विद्यासागर पुरस्कार’ लौटाने की इच्छा जताई। गोपालनगर के सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक दीपक मजूमदार ने भी 2013 में मिला ‘शिक्षारत्न पुरस्कार’ लौटाने की बात कही।
अगस्त के दूसरे सप्ताह से शुरू हुआ आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज कांड को लेकर विरोध और विद्रोह की यह लहर पूरे कोलकाता में फैल गई है। सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन की तरह, कई लोगों का मानना है कि पुरस्कार लौटाने की यह प्रक्रिया आंदोलन को और अधिक प्रभावी बना रही है।