
हिन्दी साहित्य भारती द्वारा गुमनाम शहीदों को श्रद्धांजलि
कोलकाता 13 अगस्त। हिन्दी साहित्य भारती पश्चिम बंगाल ने दिनांक 12 अगस्त को सायंकाल आभासीय पटल पर एक गोष्ठी आहूत की और उसे उन बलिदानियों के नाम किया जिन्हें इतिहास के पृष्ठों में स्थान नहीं मिल पाया। गोष्ठी की अध्यक्षता सलाहकार रामपुकार सिंह ने की। मुख्य अतिथि के रूप में संस्था के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रविन्द्र शुक्ल जी उपस्थित थे। कार्यक्रम की शुरुआत संस्था के ध्येय गीत से हुआ जिसे प्रांतीय अध्यक्ष हिमाद्रि मिश्रा ने सुमधुर स्वर में प्रस्तुत किया । आलोक चौधरी ने नए अंदाज में सरस्वती वंदना गाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। परिचर्चा में सर्वप्रथम स्वागता बसु ने सविस्तार सिलसिलेवार ढंग से स्वतंत्रता सेनानी जतिन दास की गाथा सुनाई। विजय इस्सर ने एक गजल पेश की जिसके माध्यम से उन गुमनाम बलिदानियों के बलिदान को स्मरण किया गया। भारती मिश्रा ने उधम सिंह को याद किया तो नीलम मिश्रा ने तारा रानी श्रीवास्तव को याद किया। आलोक चौधरी ने तीन आदिवासी युवक राजू मल्लू और गौतम की शौर्य गाथा सुनाई।
रंजना मिश्रा ने मध्य प्रदेश के एक गांव की महिला रुसूलिया ने किस तरह आजादी की लड़ाई में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की उस पर प्रकाश डाला।

भोपाल से जुड़े दिनेश सिंह ने एक चौदह वर्षीय किशोर की शौर्य गाथा सुनाई कि किस तरह उन्होंने ब्रितानी सरकार को चकमा दिया और वही बालक आगे चलकर श्रीकृष्ण सरल के नाम से प्रसिद्ध हुआ। श्रीकृष्ण सरल ने स्वतंत्रता सेनानियों पर सौ से ऊपर पुस्तकें लिखीं। हिन्दी साहित्य भारती के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रविन्द्र शुक्ल जी ने बड़ी ही ओजपूर्ण और सारगर्भित जानकारी दी जिसे इतिहासकारों ने भारतियों से छिपा रखा था। कार्यक्रम के अध्यक्ष रामपुकार सिंह ने एक गजल सुना कर उन शहीदों को नमन किया। इस ऐतिहासिक गोष्ठी का कुशल संचालन संस्था की महामंत्री नीलम झा ने किया। परिचर्चा का समापन रंजना झा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ ।
