सड़कों पर लाशें, लड़कियों का अपहरण, तालिबान के अफगानिस्तान की जमीनी सच्चाई
नई दिल्ली. अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद तालिबान
अब सरकार बनाने के प्रयासों में लग गया है. चरमपंथी संगठन का मानना है कि 2004 में बने देश के संविधान को खत्म कर देना चाहिए क्योंकि ये विदेशी शक्तियों द्वारा बनाया गया है. यह बात सूत्रों ने न्यूज़18 को बताई है.
अब जबकि तालिबान देश में सरकार बनाने के करीब पहुंच चुका है तब यह देखने वाले वाली बात है कि मानवाधिकारों की क्या स्थिति है. देश पहले से भी लंबे समय से आर्थिक त्रासदी और मानवाधिकारों की समस्या से जूझता रहा है. आइए जानते हैं 1964 के अफगानी संविधान के मुकाबले युद्धग्रस्त देश में इस वक्त ग्राउंड रिएल्टी क्या है…
जमीनी सच्चाई: जब तालिबान ने 1996 से 2001 तक पहली बार शासन किया था तब देश में शरिया कानून लागू किया गया था. इस्लामिक कानून की सख्त व्याख्या की गई यानी महिलाएं काम-काज नहीं कर सकती थीं, लड़कियों को शिक्षा की छूट नहीं थी, महिलाओं को सार्वजनिक स्थलों पर अपना सिर ढंक कर रहना पड़ता था, साथ ही अगर उन्हें कहीं बाहर जाना हो तो घर के किसी पुरुष का साथ होना जरूरी था.
दूसरी बार सत्ता में आने के बाद तालिबान ने महिलाओं के लिए कुछ नियम लागू किए हैं. महिलाओं को गलियों में अपने किसी रिश्तेदार अथवा बुर्का के बगैर नहीं निकलना है. चूंकि पुरुष को महिलाओं की आवाज नहीं सुननी चाहिए, इसलिए हाई-हील के जूते-सैंडल की मनाही है. किसी महिला की आवाज किसी अजनबी द्वारा नहीं सुनी जानी चाहिए. महिलाओं को कोई गलियों में से न देख ले, इसलिए ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर की सभी खिड़कियां बंद रहेंगी. अखबारों में महिलाओं की तस्वीर नहीं छपेगी
जमीनी सच्चाई: हजारों की संख्या में देश छोड़कर भाग रहे अफगानियों को उत्तरी हिस्सों में पकड़ा गया. इन लोगों ने अपने साथ क्रूर व्यवहार के बारे में बताया है. लाशें सड़कों पर छोड़ दी गईं, तालिबानियों ने शादी के लिए लड़कियां अगवा कर लीं.
दरअसल जब पहली बार तालिबान का शासन था तब भी इस्लामिक कानून लागू करने के लिए चरमपंथी संगठन कुख्यात था. छोटे-छोटे जुर्म के लिए क्रूर सजाएं दिए जाने का प्रावधान था.