श्री कृष्ण-रुक्मिणी का विवाह शुद्ध जीव और ईश्वर का विवाह है –माधव जी महाराज

चिरकुंडा। चिरकुंडा-पंचेत रोड स्थित श्री श्रीराम भरोसा धाम के प्राण प्रतिष्ठा एवं स्थापना की द्वितीय वर्षगांठ पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन कथावाचक माधव जी महाराज ने कहा कि “” श्री कृष्ण और रुक्मणी दोनों निष्काम निर्विकार हैं। भागवत कथा के अंतिम दिन को इस विवाह की कथा आती है। जिसे तक्षक नाग के दंश से मरना है, क्या वह लौकिक विवाह की बातें सुनेगा? योगी श्रेष्ठ परमहंस शुकदेव जी का कथा कह रहे हैं। भाषा विवाह की है जबकि तात्पर्य तो जीव के ईश्वर से मिलन का है। रुकमणी कृष्ण का विवाह शुद्ध जीव और ईश्वर का विवाह है। यह प्रसंग लौकिक विवाह का नहीं अध्यात्मिक मिलन का है। अलौकिक सिद्धांत को समझाने के लिए लौकिक शब्दावली का प्रयोग किया गया है। जो व्यक्ति ईश्वर के साथ विवाह करना चाहता है उसके रिश्तेदार बहुत सताते हैं। रुक्मणी भी अपनी बहन का विवाह भगवान से होने के विरोध था किंतु यदि जीव सद्गुरु की शरण ले तो बेड़ा पार हो जाता है।
यदि रुकमणी लौकिक सुख चाहती होती तो वहां उपस्थित अन्य किसी भी राजा के साथ ब्याह कर सकती थी किंतु उसने बड़े विवेक से श्रीकृष्ण को वरण किया । जीव जब ईश्वर के साथ विवाहित होता है ,तब कृतार्थ होता है । रुक्मणी- श्री कृष्ण का विवाह जीव और ईश्वर का मिलन है।
इस अवसर पर मंदिर के प्रधान पुजारी राम रतन पांडे,आचार्य अविनाश पांडे,मनोज कुमार पांडे, पुरूषोत्तम पाण्डेय तथा चिरकुंडा के भक्तगण उपस्थित थे।

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