वाराणसी। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर परिसर का विस्तार, स्थापत्य कला की शोभा अपरंपार, आध्यात्मिक अनुभूति चरम पर और हुलसती-हुलसाती गंगा की धवल धार। एक वाक्य में कहें तो काशी के विश्वनाथ धाम में राग-विराग दोनों ही अपनी दिव्य आभा के साथ एकाकार हो उठे हैैं। कुछ ऐसी वैभवशाली रूप राशि का दर्शन कि जिसे देखने मात्र से ही ‘जियरा जुड़ा जाए’। ज्ञानवापी-गंगा के साथ काशीपति के दरस-परस का सौभाग्य पाकर तन से लेकर मन तक बस एक ही रटन समाय, ‘शम्भो, कहां कहौं छबि आपकी शोभा बरन न जाए’। काशीपुराधिपति बाबा के दिव्य दरबार के भव्य द्वार से ही निखरी छटा ऐसी की नजर पड़े और कदम यंत्रवत बढ़ते चले जाएं। काशीपति के गर्भगृह के चमचम करते स्वर्ण शिखर की आभा जो सीधे हृदय में उतरती चली जाए। शिवपुराण की सूक्तियों-झांकियोंसे युक्त ध्यान मंडप, मंदिर वास्तु, स्थापत्य कला और दृष्टि पथ से एकाकार गंगधार के भी दर्शन हो जाएं। त्रैलोक्य से न्यारी काशी में 33 कोटि देवताओं के वास की मान्यता को सहेजे देवालयों के दर्शन कर श्रद्धालु मन अघाए, अगराए और धन्य हो जाए। पुरनिये पुरखों की सुनी-सुनाई कुछ ऐसा ही बता रहे हैैं। सौंदर्य के सम्मोहनपाश में बंधे कुछ पल के लिए मानो खुद को साक्षात कैलाश धाम में खड़ा पा रहे हें।
अहिल्याबाई ने दिया आधार, 352 साल बाद विस्तार : वास्तव में शिवभक्त महारानी अहिल्याबाई ने 244 वर्ष पहले श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया लेकिन 352 साल बाद बाबा दरबार विस्तार व साज संवार पाकर अपने मूल स्वरूप में आया। गंगा निहाल हैं, एक बार फिर उसी दृश्य को जीने का अवसर आया जब सशर्त ही सही बाबा ने काशी में प्रवेश की अनुमति दी और अपने चरणों को पखारने का सौभाग्य-आशीष बरसाया।
गलियों के जंजाल से मुक्ति : पुरनिए अपने पुरखों से सुनी सुनाई बताते हैैं कि कभी श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का विस्तार गंगा तट तक हुआ करता था। कालांतर में राजा-महाराजाओं ने पुण्य कामना से आसपास के क्षेत्र में मंदिर बनवाए और मंदिर भवनों से घिरते गए। इस तरह संकरी गलियों में पूरा इलाका समाता चला गया। आक्रमण-अतिक्रमण से करीब 15 हजार वर्ग फीट में सिमटे-संकुचाए श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का 5,27,730 वर्गफीट में विस्तारित, सजा-संवरा सर्वतोभद्र स्वरूप सामने आया है।
आठ तरह के पत्थरों से दिया गया आकार : संकरी गलियों के जाल से मुक्त श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के विस्तारित परिसर को चुनार के बलुआ पत्थरों व मकराना मार्बल समेत आठ तरह के प्रस्तरों से सजे बाबा के आंगन का प्रशस्त विस्तार देख चकित हो जा रहे हैैं। इन पत्थरों को निर्माण कार्य में लगी कंपनी ने अपने अहमदाबाद स्थित वर्कशाम में तराश कर यहां लगाया है।
सप्त द्वार वास्तु का आधार : मुख्य परिसर के चारो दिशाओं में बने चार द्वार सर्वकल्याण के भाव को अभिव्यक्त करते हैैं जिनका उल्लेख 12-13वीं शताब्दी के स्थापत्य शिल्प ग्रंथ अपराजितपृच्छा में आता है। शास्त्र गंगा स्नान के बाद गंगा के ही जल से बाबा के अभिषेक का विधान बताता है। गंगधार छोर पर तन कर खड़ा गेटवे आफ कारिडोर इस अवसर का प्रदाता है।
जीवंत काशी विश्वनाथ गंगे का जीवन दर्शन : काशी-विश्वनाथ-गंगे का धर्म-दर्शन यहां जीवंत होता है। मंदिर चौक के विशाल द्वार पर बना स्थान बाबा के स्वर्ण शिखर और गंगधार का एक साथ दर्शन कराता है। इसमें गंगा द्वार सबसे खास है। श्रद्धालु गंगा में पुण्य की डुबकी लगाकर हाथ में गंगा जल लिए मंदिर में आता है और बाबा को जलाभिषेक कर निहाल हो जाता है।
राग विराग का मेल : मुक्ति प्रदाता भगवान शिïव दरबार का दृष्टि पथ गंगधार से एकाकार और जाकर मोक्षतीर्थ (मणिकर्णिकाघाट) से जुड़ जाता है जहां बाबा से तारक मंत्र पाकर जीव आवागमन के बंधनों से मुक्त हो जाता है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम शायद दुनिया में अकेला देव स्थान होगा जहां राग-विराग का यह मेल दिख पाता है।
33 कोटि देवताओं का वास : अनूठी दिव्य युति के बीच दिव्य अनुभूति कराएगी महत्ता अनुसार सहेजी, सजाई गई देवविग्रहों की झांकी देवलोक का अहसास कराती है। बाबा दरबार से गंगा तट तक खरीदे गए भवनों के ध्वस्तीकरण में सामने आए 18 वीं से 20वीं सदी के बीच निर्मित कला-शिल्प से चकित करते प्राचीन 27 मंदिरों की सजी-संवरी कतार तो धाम की दीवार के किनारे नए बने इतने ही समरूप मंदिरों में घरों या छोटे देवालयों से मिले देव विग्रह तो देव गैलरी में 145 शिवलिंग और 97 देव विग्रह एक जगह पर देखना अचरज से कम न होगा। कह सकते हैैं खुद को देवलोक में होने का आभास पाएंगे।
दिव्य आनंद-कानन की अनुभूति : श्रीकाशी विश्वनाथ का सज-संवर रहा धाम एक बार फिर आनंद-कानन की अनुभूति कराएगा। परिसर में बाबा के प्रिय पेड़-पौधे इसका आभास कराएंगे। इनमें बेल, नीम, रुद्राक्ष, कृष्णा कदंब, अपराजिता, करंज आदि के पेड़ पौधे हैैं। इसके लिए मुख्य परिसर से लेकर मंदिर चौक और गंगा छोर तक पथरीली जमीन में चार फीट व्यास के गड्ढे बनाए गए हैैं। ये सीधे मिट्टïी के संपर्क में होंगे, इनमें पाइप लगा कर भीतर-भीतर ही हवा-पानी का इंतजाम किया गया है। वास्तव में श्रद्धालु गंगा में स्नान कर हरे-भरे क्षेत्र से होते मंदिर तक आते थे और बाबा का दरस-परस (दर्शन-स्पर्श) व जलाभिषेक कर तृप्त हो जाते थे।
शिव-शक्ति मय जप-तप गलियारा : मुख्य परिसर में भीतरी ओर श्रद्धालुओं को जप-तप के लिए गलियारा बनाया गया है। इसमें संगमरमर के श्वेत-धवल 42 पैनलों के जरिए आध्यात्मिकता वातावरण को आधार दिया गया है। इनमें चित्रात्मक (पिक्टोरियल) 20 पैनलों में शिव का काशी आना, ढूंढिराज गणेश का स्तुति गाना, माता पार्वती संग कैलाश वास और तारक मंत्र देकर आवागमन के बंधनों से मुक्ति दिलाना दिख जाएगा। गलियारा अष्ट भरव, 56 विनायक व 64 योगिनियों तक के दर्शन कराता है। 22 व्याख्यात्मक (राइटअप) पैनलों में समाहित स्तुति-मंत्र पूरी भव्यता के साथ कुछ इस तरह उकेरे गए हैैं जिनके सामने आते कोई भी इनका पाठ करने को विवश हो जाएगा। चित्रात्मक पैनलों पर विभिन्न प्रसंग उकेरने के साथ ही वर्णन किया गया। व्याख्यात्मक पैनलों पर देवध्यान स्तुति, महामृत्युंजय मंत्र, शिव स्तुति आदि उकेरी गई है। शास्त्र-पुराण, वेद-उपनिषद का अध्ययन करा कर तथ्य संग्रह किया गया।
इम्पोरियम में दिखेगा बनारस का हुनर : मंदिर से निकल कर चौक में प्रवेश करते ही श्रद्धालुओं व सैलानियों को कुछ देर विश्राम करने के लिए विशाल स्थान तो है ही प्रथम तल पर इम्पोरियम में एक जगह पर बनारस का हुनर देख सकेंगे। इसमें कला संस्कृति के शहर बनारस की पहचान से जुड़े हस्त शिल्प दिखेंगे जिन्हें देखने-समझने के साथ ही इनकी खरीदारी भी की जा सकेगी। इसमें बनारसी साड़ी, स्टोल, गुलाबी मीनाकारी, स्टोन कार्विंग समेत समस्त जीआइ उत्पाद देखने को मिलेंगे। इसके लिए निविदा आमंत्रित की जा चुकी है।
किताबों में सर्वधर्म समभाव : मंदिर चौक से गंगा की ओर निकलते ही आध्यात्मक पुस्तक केंद्र में समस्त धर्मों की किताबों का संग्रह मिलेगा। समस्त धर्म- संप्रदाय और विभिन्न भाषाओं को किताबें देखने, पढऩे को मिलेंगी। इसके लिए गीता प्रेस समेत कई प्रकाशकों को आमंित्रत किया गया है।
बनारस गैलरी और सिटी म्यूजियम : परिसर में ही बनारस गैलरी व सिटी म्यूजियम बनाया गया है। गैलरी में शहर की कला-संस्कृति को समझ सकेंगे। म्यूजियम भी बनारस की संस्कृति व संस्कारों से परिचित हुआ जा सकेगा। इसमें काशी का इतिहास-भूगोल शास्त्रीय-पौराणिक तथ्यों के साथ जीवंत नजर आएगा। बनारस का संगीत-साहित्य, कला-संस्कृति, खान-पान, पर्व-उत्सव, गलियां, गंगा के घाट, अंदाज-मिजाज से लगायत कल और आज एक स्क्रीन में सिमट आएगा। इसे जीवंत रूप देने के लिए परिसर में वर्चुअल एक्सपीरिएंसल म्यूजियम (आभासी प्रायोगिक संग्रहालय) बनाया जाएगा। राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद की इसमें मदद ली जाएगी।
केदारनाथ के बाद काशी विश्वनाथ धाम में आदि शंकराचार्य के दर्शन : धाम में गंगा छोर से प्रवेश करते ही आद्य शंकराचार्य की प्रतिमा लगी है। मंदिर के वर्तमान स्वरूप को आकार देने वाली महारानी अहिल्याबाई के साथ ही भारत माता व भगवान कार्तिकेय भी दिखेंगे। बाबा के धाम में प्रतिमा चयन में शास्त्रीयता व ऐतिहासिक का ध्यान दिया गया है। धातु की इन 7.5 फीट की प्रतिमाओं को दो फीट ऊंचे संगमरमर के प्लेटफार्म पर स्थापित किया गया है।