डॉक्टर ने किया दुष्कर्म पीड़िता का गर्भपात, हाई कोर्ट ने क्यों की सराहना ?

कोलकाता, 9 फरवरी । कलकत्ता उच्च न्यायालय ने कोलकाता में सरकारी अस्पताल के एक डॉक्टर को बलात्कार पीड़िता का गर्भपात करवा कर 23 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए सराहना की।

29 जनवरी को, न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल-न्यायाधीश पीठ ने बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देते हुए, उस उद्देश्य के लिए एक मेडिकल बोर्ड के गठन का भी निर्देश दिया। लेकिन पीड़िता को जब सरकारी एमआर बांगुर अस्पताल में भर्ती कराया गया, तो संबंधित डॉक्टर मेडिकल बोर्ड का गठन किए बिना और कलकत्ता उच्च न्यायालय को सूचित किए बिना सीधे गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए चले गए। इसके बाद न्यायमूर्ति भट्टाचार्य की पीठ ने संबंधित डॉक्टर से स्पष्टीकरण मांगा कि अदालत के आदेश का उसकी भावना के अनुरूप पालन क्यों नहीं किया गया। हालांकि संबंधित डॉक्टर द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण से न्यायमूर्ति भट्टाचार्य संतुष्ट हो गए। स्पष्टीकरण यह था कि जब पीड़िता को भर्ती कराया गया था तो उसकी शारीरिक स्थिति बेहद गंभीर थी और उसे रक्तस्राव भी हो रहा था। डॉक्टर ने बताया कि ऐसी स्थिति में अगर वह मेडिकल बोर्ड के गठन की प्रक्रिया का इंतजार करते और फिर मामले में अदालत को सूचित करते, तो देरी से पीड़िता की जान को खतरा हो सकता था। इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट होकर, न्यायमूर्ति भट्टाचार्य ने कहा कि इस विशेष मामले में संबंधित डॉक्टर ने अदालत के आदेश की प्रत्येक पंक्ति का पालन करने में समय बर्बाद न करके सही काम किया है।

उन्होंने यह भी साफ किया कि कोर्ट इस मुद्दे पर डॉक्टर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा। पीड़िता को गर्भ का पता तब चला जब 21 सप्ताह बीत चुका था। भारतीय कानून के अनुसार 20 सप्ताह या उससे अधिक की गर्भावस्था को किसी भी अदालत की अनुमति से ही समाप्त किया जा सकता है।

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