आसनसोल:आज ‘ पग-पग पर मानवाधिकारों का हनन होता है इसकी मुख्य वजह यह भी है कि लोग मानवाधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं। उन्हें यही नहीं मालूम कि आखिर उन्हें कौन से अधिकार प्राप्त हैं, जिनका अनुपालन करने के लिए सरकारी मशीनरी पर जिम्मेदारी है।’ ये कहना है मीडिया पर्सनैलिटी और इंटरनेशनल इक्विटेबल ह्यूमन राइट्स सोशल काउंसिल के चेयरमैन संजय सिन्हा का।इस संवाददाता से बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि ‘मानवाधिकार उल्लंघन की सबसे ज्यादा शिकायतें पुलिस महकमे की आती हैं। हर थाने में मानवाधिकार संरक्षण के नियमों का बोर्ड या पट्टिका तो दिखाई देती है, लेकिन इनका पालन नहीं होता। थानों में डीके बसु केस में पारित सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश भी लिखे होते हैं, लेकिन उनका पालन भी धरातल की अपेक्षा कागजों पर ही होता है।खेदजनक पहलू यह है कि पुलिस के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की तमाम शिकायतें भेजी जाती हैं। यह शिकायतें मानवाधिकार आयोग को भेजी जाती हैं। आयोग को भेजी गई शिकायतों की जांच पुलिस का मानवाधिकार प्रकोष्ठ ही करता है। लिहाजा अधिकांश मामलों में लीपापोती कर दी जाती है।संजय सिन्हा ने अपनी राय जाहिर करते हुए आगे कहा कि ‘वरिष्ठ नागरिक, महिला और बालकों के हित संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण तथा सूचना का अधिकार अधिनियम को बने नियम कानूनों का धरातलीय क्रियान्वयन के लिए समुचित समीक्षा और कार्यक्रम कागजों पर हैं। स्वयं मानवाधिकार आयोग के परिपत्रों का 80 फीसदी अनुपालन नहीं हो रहा। जिला स्तरीय मानवाधिकार संरक्षण न्यायालय जनजागृति के अभाव में लोकप्रिय नहीं हो रहे। ‘ उन्होंने आगे कहा कि ‘ उच्चतम न्यायालय द्वारा मानवाधिकार संरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर दिए दिशा-निर्देशों का प्रभावी जमीनी क्रियान्वयन तथा संवेदीकरण और जनजागृति की व्यापक आवश्यकता है।अगर ऐसा नहीं हुआ तो स्थिति और भयावह हो जाएगी।’