मोहन भागवत ने दिया धार्मिक सहिष्णुता का संदेश, उपासना पद्धति के आधार पर न हो मतभेद

मोहन भागवत

नई दिल्ली, 17 मार्च। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को धार्मिक सहिष्णुता का संदेश देते हुए कहा कि रास्ते सबके अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन मंजिल सबकी एक है। हमें अपनी-अपनी उपासना ठीक रखनी चाहिए और सबकी उपासना पद्धतियों का आदर करना चाहिए। इसी से सभी को सुख की प्राप्ति होगी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार को दिल्ली के लाल किले के प्रांगण में फिल्म लेखक एवं निर्देशक इकबाल दुर्रानी द्वारा हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रंथ ‘सामवेद’ के हिन्दी व उर्दू में किए गए सचित्र अनुवाद का विमोचन किया। कार्यक्रम में स्वामी ज्ञानानंद महाराज सहित अन्य गणमान्य हस्तियां उपस्थित रहीं।

इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि मनुष्य की उपसना पद्धति और आराध्य भले ही अलग हों लेकिन हम सभी एक ही की भक्ति कर रहे हैं। इसलिए इनके आधार पर मतभेद नहीं होना चाहिए। वेदों में हमें इसी आंतरिक सत्य की शिक्षा मिलती है।

उन्होंने कहा कि आज मानवता आपसी संघर्ष और प्राकृतिक समस्याओं का सामना कर रही है। इसके लिए स्वयं मनुष्य ही दोषी है। जरूरत यह है कि सत्य को जानकर मनुष्य स्वयं को बदले। अपनी बात को रखने के लिए मोहन भागवत ने सामवेद और उनसे उपजे उपनिषद् में वर्णित कहानियों का उदाहरण दिया।

मोहन भागवत ने कहा कि सामवेद को वेदों का सारांश कहा जाता है। सामवेद में संगीत रस और संवेदना है। इससे छान्दोग्योपनिषद और केनोपनिषद उपजे हैं। यह दुनिया में सप्त स्वरों का उद्गम इसी से हुआ है।

इस मौके पर लेखक इकबाल दुर्रानी ने सामवेद को देशभर के तमाम स्कूलों और मदरसों में प्रार्थना के रूप में शामिल किये जाने का सुझाव दिया।

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