क्रांति कुमार पाठक
इन दिनों संघ लोक सेवा आयोग के वे प्रतिभाशाली अभ्यर्थी चर्चा के केंद्र में हैं जिन्होंने इस सिविल सेवा परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल किया है। चूंकि इस बार प्रथम तीन स्थान लड़कियों ने प्राप्त किए हैं, इसलिए इसे एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। क्योंकि वास्तव में भारत में सिविल सेवा परीक्षा सबसे कठिन परीक्षा मानी जाती है और उसमें प्रतिभा संपन्न छात्र-छात्राएं ही सफल हो पाते हैं। आज इन तीनों लड़कियों की उपलब्धियों को तो रेखांकित किया ही जा रहा है साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि प्रशासनिक अधिकारी के रूप में वे देश और समाज के लिए क्या करने की आकांक्षा रखती हैं। जाहिर है, आज जब चहुंओर इन प्रतिभाशाली सफल अभ्यर्थियों की चर्चा हो रही है, तो हम इस बात की भी अनदेखी नहीं कर सकते कि अभी कल तक झारखंड की वरिष्ठ आईएएस पूजा सिंघल खबरों की सुर्खियां बटोरी थीं।
दरअसल, पूजा सिंघल भी कभी सबसे कम उम्र में आईएएस बनने के कारण सुर्खियां बटोरी थीं और उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया था। वह महज 21 साल में सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल की थीं। आज उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। इन आरोपों के अनुसार उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट सुमन कुमार के यहां से ईडी की छापेमारी के दौरान तकरीबन 20 करोड़ रुपए की नकद धनराशि बरामद की गई। इसके बाद ही दोनों को ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के कारण बाद पूजा सिंघल एक बार फिर सुर्खियों में आईं। वैसे पूजा सिंघल पर लगे आरोपों की सूची खासी लंबी है। पर ये आरोप कितने सही और कितने गलत हैं, इस बात का फैसला तो अदालतें ही करेंगी।
हालांकि पूजा सिंघल कोई अपवाद नहीं हैं। पिछले कुछ सालों से अक्सर ऐसे भ्रष्ट अधिकारी सीबीआई अथवा ईडी के शिकंजे में आते ही रहते हैं, जिन पर करोड़ों रुपए की काली कमाई करने के आरोप लगते हैं। अतीत में भी प्रशासनिक, पुलिस, राजस्व सेवा आदि के ऐसे अफसर भ्रष्टाचार में लिप्त पाए गए हैं, जिन्होंने सिविल सेवा परीक्षा में उल्लेखनीय सफलता हासिल की थी और उस समय उनके द्वारा देश और समाज के लिए कुछ विशेष करने के लिए बड़ी-बड़ी बातें कही गई थी। ऐसी स्थिति में इन अधिकारियों के मामले यही बताते हैं नौकरशाही में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और इस पर अभी तक कोई खास लगाम नहीं लगाया जा सका। इसी तरह नेताओं के भ्रष्टाचार पर भी लगाम नहीं लग सका है।
इन दिनों न जाने कितने नेताओं के खिलाफ ईडी अथवा सीबीआई की जांच चल रही। अभी कांग्रेस के राहुल गांधी भी ईडी दफ्तर का चक्कर काट रहे हैं। आमतौर पर इन नेताओं की ओर से यही कहा जाता है कि उनके खिलाफ बदले की कार्रवाई की जा रही है, लेकिन यह मान लेना सही नहीं होगा कि जो यह कह रहे हैं,वे सब दूध के धुले हुए हैं और उन पर लगे आरोपों में कहीं कोई दम नहीं। ध्यान रहे कि जिन नेताओं को उनके भ्रष्टाचार के लिए अदालतें सजा सुना चुकी हैं, वे भी यही कहते हैं कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है। अब तो स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि भ्रष्टाचार में सजा पाए अथवा भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे नेताओं का खुलकर बचाव किया जा रहा है। दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन, महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद हैं, लेकिन उनसे इस्तीफा मांगने की कोई जरूरत नैतिकता की दुहाई देने वाले को समझ में नहीं आ रही है। कुल मिलाकर यह एक कड़वी सच्चाई है कि नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर आजादी के 75 साल बाद भी कोई अंकुश नहीं लग सकी है। इस सिलसिले में पूजा सिंघल का मामला गौर करने लायक है। उन पर पहले भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। उनके खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा भी की गई थी, लेकिन फिर उन्हें क्लीन चिट दे दी गई।
हालांकि यह बात भी सही है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार के बाद से केंद्र सरकार के शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक लगाम लगी है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि निचले स्तर के भ्रष्टाचार पर ऐसा ही हुआ है। अब जब पिछले महीने केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के आठ साल पूरे कर लिए हैं, तो इस पर उसे प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना ही होगा कि नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश कैसे लगाया जाए? इसमें कोई दो राय नहीं है कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने बीते आठ साल में अपनी विशिष्ट कार्यशैली से देश की दशा-दिशा बदली है, लेकिन उसने पुलिस सुधारों की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। नि:संदेह कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है, लेकिन भाजपा शासित सरकारें तो पुलिस सुधार के मामले में मिसाल कायम कर ही सकती हैं- जैसे यूपी सरकार कर रही है। देश की जनता को पुलिस सुधारों के साथ ही प्रशासनिक सुधारों की भी प्रतीक्षा है। इसके साथ ही देश की जनता को सबसे ज्यादा इंतजार न्यायिक क्षेत्र में सुधारों का है। यह इंतजार अब लंबा होता जा रहा है।हाल ही में मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का जो सम्मेलन हुआ, उसमें बड़ी बड़ी बाते तो की गईं, लेकिन उनके अनुरूप कुछ होगा, इसके आसार नहीं के बराबर ही दिख रहे हैं। क्योंकि वह कोलेजियम व्यवस्था खत्म होने के कोई संकेत नहीं, जिसके तहत न्यायाधीश ही न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं। हालांकि 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक करार देते समय यह माना था कि कोलेजियम व्यवस्था में कुछ दोष है, लेकिन वे दोष आज तक दूर नहीं हो सके हैं। ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार को यह सुनिश्चित करना ही चाहिए कि न्यायिक क्षेत्र में भी अविलंब सुधार हो।