सुनवाई के दौरान एएसआई ने हाई कोर्ट से मस्जिद परिसर का मुआयना कर रिपोर्ट देने के लिए और वक्त देने की मांग की। कोर्ट ने समय देते हुए कहा कि मस्जिद का मुआयना करते समय वक्फ बोर्ड के सदस्य, याचिकाकर्ताओं के प्रतिनिधि वकील भी मौजूद रहेंगे। इसके पहले हाई कोर्ट ने 27 सितंबर को केंद्र सरकार और एएसआई को इस बात के लिए फटकार लगाई थी कि उन्होंने वो दस्तावेज दाखिल नहीं किया था, जिसमें जामा मस्जिद को तत्कालीन प्रधानमंत्री के शासन के दौरान संरक्षित इमारत करार देने से इनकार कर दिया गया था।
दरअसल, सुहैल अहमद खान ने मार्च, 2018 में एक याचिका दायर करके कहा था कि जामा मस्जिद के आसपास के पार्कों पर अवैध कब्जा है और अतिक्रमण किया गया है। हाई कोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित करने और उसके आसपास का अतिक्रमण हटाने का आदेश देने की मांग की गई है। सुनवाई के दौरान एएसआई की ओर से कहा गया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शाही इमाम को आश्वस्त किया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित नहीं किया जाएगा।
एएसआई ने कहा था कि जामा मस्जिद केंद्र सरकार की ओर से संरक्षित इमारत नहीं है, इसलिए वो एएसआई के अधिकार क्षेत्र के तहत नहीं आता है। एएसआई ने हाई कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि 2004 में जामा मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित करने का मामला उठा था। हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर, 2004 को शाही इमाम को लिखे अपने पत्र में कहा था कि जामा मस्जिद को केंद्र सरकार संरक्षित इमारत घोषित नहीं करेगी।