क्रांति कुमार पाठक
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भाजपा ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति बड़ा बदलाव किया है। यह बदलाव पार्टी का नए भौगोलिक क्षेत्रों में विस्तार करने के लिए है। भाजपा को लग रहा है कि वंचित वर्ग को अपने साथ जोड़ने, सामाजिक समीकरण बिठाने और सुशासन पर अपनी पहचान बनाने में वह कामयाब रही है। अब पार्टी की चुनौती परिवारवादी क्षेत्रीय दल हैं। इन्हें पराजित किए बिना भाजपा सही मायने में राष्ट्रीय पार्टी नहीं बन पाएगी। दक्षिण में केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पूरब में बिहार, बंगाल व उड़ीसा में से पांच राज्यों में उसकी न तो कभी सरकार बनी और न ही वह सरकार में भागीदार बनीं। बिहार-उड़ीसा में वह सत्ता साझीदार तो रही, मगर कभी अपना मुख्यमंत्री नहीं बनवा पाई। ये सभी राज्य ऐसे हैं जहां भाषाई-क्षेत्रीय अस्मिता बाकी सब मुद्दों पर भारी पड़ते हैं। भाजपा के जो कोर मुद्दे हैं, उनके जरिए वह जहां तक पहुंच सकती थी, लगभग पहुंच चुकी है। इससे आगे विस्तार के लिए उसे नए रास्ते, नए नारे और नई रणनीति की जरूरत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का एक विशेष गुण है। इसका चाणक्य नीति से सीधा संबंध है। यह है कछुए की तरह व्यवहार करना। वह पिछले आठ सालों से परिवारवाद की बात कर रहे हैं। अपनी पार्टी में इसे रोकने का लगभग सफल प्रयास कर चुके हैं। भाजपा में वह जो कर रहे हैं वह परिवारवाद को रोकने की कोशिश है। नरेंद्र मोदी की योजना वास्तव में कांग्रेस के जरिए क्षेत्रीय दलों तक पहुंचने की है। इसी रणनीति के तहत राजनीति में परिवारवाद पर पहली बार नियोजित तरीके से हमला करने की रणनीति बनी है। यही वजह है कि आजकल भाजपा के तमाम नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी परिवारवाद की सियासत को लेकर गंभीर नजर आ रहे हैं। जब भी नरेंद्र मोदी या भाजपा नेता जनता या मीडिया से मुखातिब होते हैं तो किसी न किसी बहाने परिवारवाद से देश को होने वाले नुकसान की चर्चा अवश्य करते हैं। जिस राज्य में वह जाते हैं उस राज्य में फैले परिवारवाद पर तो हमला करते ही हैं, यह भी बताते हैं कि राजनीति में पुत्र मोह की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इससे फायदा कम, नुकसान ज्यादा होता है। पिछले दिनों हैदराबाद में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी यह केंद्रीय मुद्दा रहा। दरअसल, क्षेत्रीय दलों को घेरने के लिए भाजपा की यह नई रणनीति है। आठ साल तक कांग्रेस मुक्त भारत अभियान चलाने के बाद भाजपा की निगाह अब क्षेत्रीय दलों पर है। क्षेत्रीय दलों का सबसे कमजोर पक्ष है उनका परिवार, पर नरेंद्र मोदी जो कर और कह रहे हैं वह केवल परिवार तक सीमित नहीं है। परिवारवादी पार्टियों के नेताओं का सामंतवादी रवैया और रहन-सहन दूसरी पीढ़ी आते-आते आम लोगों को खटकने लगता है। बात इतनी ही होती तो शायद गनीमत होती, पर मामला उससे आगे चला गया है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी का सुशासन, सामाजिक गठजोड़ और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एक सीमा के बाद प्रभाव नहीं डालता। वोटर लोकसभा चुनाव में दूसरी तरह से वोट डालता है और वह नरेंद्र मोदी के साथ खड़ा नजर आता है, पर विधानसभा चुनावों में भाजपा का मत प्रतिशत गिर जाता है।
नरेंद्र मोदी की परिवारवाद विरोधी मुहिम में कई और मुद्दे समाहित हैं। यह महज दुर्योग नहीं अधिकतर परिवारवादी पार्टियां और उनके नेता भ्रष्ट भी हैं और छंद्म पंथनिरपेक्ष भी या इसे यूं भी कह सकते हैं कि ये हिन्दू विरोध और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं। इसलिए इनके खिलाफ जनता को खड़ा करने में आज के बदले माहौल में थोड़ी आसानी दिख रही है। तुष्टिकरण की राजनीति को मतदाता बार-बार नकार रहा है। स्थिति तो अब यह हो गई है कि मुस्लिम वोटों के दम पर दशकों तक राजनीति करने वाले और राज करने वाली पार्टियां मुस्लिमों के मुद्दे उठाने से भी बचने लगे हैं। वे चाहते हैं कि मुसलमान चुपचाप उन्हें वोट दें। इस सबके बावजूद भाजपा की राह इतनी आसान नहीं है। उसके सामने दो समस्याएं और आती हैं। एक तो इन राज्यों में पार्टी के जमीनी ढांचा तैयार करना और दूसरा राज्य स्तर का नेतृत्व उभारना।
भाजपा को हाल ही में महाराष्ट्र में दो परिवारवादी पार्टियों को पटखनी देने में सफलता हासिल हुई है। महाराष्ट्र में एनसीपी और शिवसेना दोनों को गहरा राजनीतिक आघात लगा है। उनके लिए संभलना मुश्किल है, खासतौर से उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए। आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शिवसेना को ठाकरे परिवार से मुक्ति मिल जाए तो आश्चर्य नहीं। महाराष्ट्र के बाद भाजपा की नजर तेलंगाना पर है। भाजपा को साफ दिख रहा है कि तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की सरकार और परिवार दोनों के प्रति आम लोगों में नाराजगी बढ़ रही है।
परिवारवाद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हमले का असर इतनी जल्दी दिखना शुरू हो जाएगा, इसकी उम्मीद नहीं थी। के चंद्रशेखर राव की बौखलाहट तो कुछ दिनों से दिख रही है। नई आवाज उठी है तमिलनाडु से। द्रमुक नेता ए राजा ने भाजपा और केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि वे उनकी पार्टी को अलग तमिल देश की मांग के लिए मजबूर न करें। उधर पश्चिम बंगाल से ममता बनर्जी ने भाजपा के खिलाफ जिहाद का एलान किया है। ऐसी स्थिति में यह बात तो स्वीकार करना पड़ेगा कि परिवारवाद के खिलाफ देश में माहौल बन गया है। चूंकि भाजपा परिवारवाद को मुख्य राजनीतिक विमर्श के रूप में स्थापित करने में सफल रही है। इसलिए परिवारवादी राजनीति के पैरोकार सक्रिय हो गए हैं। तर्क दिया जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के परिवार मुक्त राजनीति के नारे का वास्तविक लक्ष्य विपक्ष मुक्त राजनीति है। जब बुराई में अच्छाई दिखाने की कोशिश होने लगे तो समझिए कि तर्क और ताकत, दोनों ही क्षीण हो गए हैं। सही मायने में कहें तो परिवार आधारित राजनीतिक दल लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं क्योंकि निजी स्वार्थ, निजता, मैं और मेरा इन राजनीतिक दलों का आधार है। जो देश को पुनः सामंतशाही की ओर धकेल देंगे।