क्रांति कुमार पाठक
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विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने मंकीपाक्स रोग को लेकर ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी की घोषणा कर दी है। ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी आॅफ इंटरनेशनल कंसर्न’ को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सबसे गंभीर चेतावनी के तौर पर लिया जाता है। इसका साफ मतलब है कि अब मंकीपाक्स दुनिया भर में तेजी से फैल सकता है। अब यह उन देशों में भी पहुंच रहा है, जहां अभी तक इसका कोई केस पाया नहीं गया था। जैसे भारत में ही अब तक मंकीपाक्स के कुल पांच केस सामने आ चुके हैं, जिनमें तीन केरल में, एक तेलंगाना में पाए गए और पांचवां मरीज देश की राजधानी दिल्ली में पाया गया है। केरल में पाए गए मंकीपाक्स से संक्रमित तीनों मरीज संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) से लौटे थे। इसी तरह तेलंगाना के मरीज के मरीज भी पिछले दिनों विदेश से लौटे थे, लेकिन दिल्ली में संक्रमित हुए पांचवें मरीज की तो कोई ट्रेवल हिस्ट्री भी नहीं पाई गई है। पिछले एक महीने के अंदर विश्व में इस रोग से संबंधित मामलों की संख्या बढ़कर लगभग पांच गुना हो चुकी है। मंकीपाक्स अब तक दुनिया भर के 75 देशों में अपना पांव फैला चुका है। अब तक इसके 16 हजार से भी अधिक मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें लगभग 80 फीसदी मामले अकेले यूरोप में मिले हैं। अमेरिका में इसका बड़ा असर देखने को मिल रहा है। इससे पूर्व वहां मंकीपाक्स कभी नहीं फैला था। मंकीपाक्स के बारे में अभी तक बहुत कम जानकारी उपलब्ध है इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साथ मिलकर सभी देशों को इसके लिए संघर्ष करने की जरूरत है। इससे पहले इस तरह की चेतावनी जनवरी 2020 में भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा कोरोनावायरस को लेकर जारी की गई थी।
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) के मुताबिक वर्ष 1958 में मंकीपाक्स नामक रोग विश्व में पहली बार सामने आया था। दरअसल रिसर्च के लिए रखे गए बंदरों में यह पाया गया था। उन बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण दिखाई पड़ थे। इसीलिए इस बीमारी का नाम मंकीपाक्स रखा गया है।
मंकीपाक्स का इन्क्यूबेशन पीरियड छः से तेरह दिन तक हो सकता है। इन्क्यूबेशन पीरियड का मतलब होता है कि वायरस से संक्रमित होने के बाद रोग के लक्षण दिखने में कितने दिन लगे हैं। बेगूसराय (बिहार) के प्रसिद्ध फिजिशियन डॉ मृत्युंजय कुमार ने बताया कि मंकीपाक्स से संक्रमित होने के बाद पांच दिन के भीतर रोगी को बुखार, सिरदर्द, सूजन, पेट दर्द, मांशपेशियों में दर्द और थकान जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। शुरुआत में यह चिकनपाक्स, खसरा या चेचक की तरह दिखता है। बुखार होने के एक से तीन दिन बाद इसका असर त्वचा पर दिखना शुरू हो जाता है। शरीर पर दाने निकल आते हैं। हाथ – पैर, हथेलियों, पैरों के तलवों और चेहरे पर छोटे छोटे निकल आते हैं। इन दोनों की संख्या कुछ या हजारों तक भी हो सकती है। ये दाने घाव की तरह दिखाई देते हैं, लेकिन अगर संक्रमण गंभीर हो तो ये दाने तब तक ठीक नहीं होते, जब तक कि त्वचा ढीली न हो जाए।
हालांकि, मंकीपाक्स को लेकर फिलहाल कोई घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि अभी दुनिया भर में मंकीपाक्स को लेकर थ्रेट लेवल माॅडरेट माना जा रहा है। सिर्फ यूरोप में इसे हाई लेवल पर रखा गया है। ध्यान रहे, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक्सपर्ट कमिटी में भी मंकीपाक्स को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने पर सर्वसम्मति नहीं थी। इसके सदस्य इसे लेकर बंटे हुए थे और अधिकतर अभी इस फैसले के खिलाफ थे। इसके बावजूद अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के डायरेक्टर जनरल ने अपनी विवेकाधीन शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए मंकीपाक्स को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित करने की जरूरत महसूस की तो उसके ठोस कारण हैं। ध्यान रहे, यह पहला मौका है जब डायरेक्टर जनरल ने एक्सपर्ट कमिटी की सिफारिश के बगैर ऐसी चेतावनी जारी की है। निश्चित रूप से इसके पीछे एक बड़ा कारण कोविड-19 महामारी के बाद दुनिया में बनी स्थिति भी है। इस महामारी के चलते दुनिया भर की स्वास्थ्य सेवाएं अस्तव्यस्त सी हैं, अर्थव्यवस्था भी उससे लगे झटके से उबर नहीं पाई है। ऐसे में एक और महामारी की आशंका भी अगर गंभीर रूप में सामने आई तो उसके भयानक दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। दूसरी बात यह कि मंकीपाक्स के मामले भी कुछ समय से तेजी से बढ़ हैं। पिछले महीने तक 47 देशों में इसके मात्र 3040 मामले पाए गए थे। लेकिन अब 75 देशों में 16000 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। मंकीपाक्स अफ्रीकी देशों के लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन ये उन्हीं इलाकों तक सीमित रहते थे। इस बार इसका दायरा बहुत बड़ा हो गया है। ऐसे में स्वाभाविक ही सावधानी महसूस की गई। ऐसे में अभी मंकीपाक्स से बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। पर्याप्त सावधानी बरती जाए तो बिल्कुल संभव है कि इस वायरस जन्य बीमारी को काबू में रखते इससे मुक्ति पा ली जाए।