

शंकर जालान
देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को समय समय पर लिए गए उनके सख्त निर्णय के कारण उन्हें लौह महिला यानी आइरन लेडी भी कहा जाता है। उनके निर्णय से भारत का हित हुआ या अहित यह अलग मुद्दा है, उन्होंने वक्त की नजाकत को भांपते हुए फैसला लेने में कभी भी पल भर की देर नहीं की, आपातकाल (इमरजेंसी) इसका स्पष्ट उदाहरण है।
इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में नेहरू परिवार में हुआ था। उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू एक महान स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। इंदिरा ने बचपन से ही स्वाधीनता आंदोलन को करीब से देखा था। उन्हें अपने परिवार से देश की सेवा करने की ज्वलंत इच्छा विरासत में मिली। महज 13 वर्ष की उम्र में इंदिरा ने स्वतंत्रता आंदोलन का समर्थन करने के लिए ‘वानर सेना’ नामक किशोरों का एक संगठन बनाया था।
वर्ष 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधान मंत्री बनीं। शुरुआत में उन्हें एक कमजोर प्रधानमंत्री माना जाता था। प्रधानमंत्री के तौर पर इंदिरा देश का विकास चाहती थीं और अपने राजनीतिक विरोधियों से भी निपटना भी। प्रधानमंत्री के रूप में उनका पहला बड़ा फैसला सभी बड़े 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना था। इसके जरिए उन्होंने आम आदमी और छोटे किसानों को बैंक सेवाएं उपलब्ध कराईं।
1971 के चुनावों से पहले उनके विरोधियों ने ‘इंदिरा हटाओ’ का नारा दिया, लेकिन इंदिरा ने इसका मुकाबला ‘गरीबी हटाओ’ से किया। यह अभियान इतना सफल रहा कि इंदिरा की कांग्रेस पार्टी ने भारी बहुमत से चुनाव जीता और वह फिर से प्रधानमंत्री बन गईं।
1971 (3 दिसंबर) को जब इंदिरा गांधी कोलकाता में एक जनसभा में बोल रही थीं, उस वक्त पाकिस्तानी वायु सेना के विमान ने भारतीय वायु सेना में प्रवेश किया। पाक सेना ने अचानक पठानकोट, श्रीनगर, जोधपुर और अन्य शहरों के हवाई ठिकानों पर बमबारी शुरू कर दी। इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का निर्णय लिया या। इंदिरा गांधी को इस युद्ध का आभास था, इसलिए उन्होंने पहले ही सेनाध्यक्ष से युद्ध की रणनीति तैयार करने को कहा था। भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तानी सेना को हर कदम पर पस्त किया गया। अमेरिका ने इस युद्ध में भारत का विरोध किया और भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की धमकी दी, लेकिन इंदिरा ने प्रतिबंधों की चिंता किए बगैर हमला जारी रखा। केवल 13 दिनों के भीतर 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इंदिराजी ने युद्ध के इस कठिन समय में देश के सशस्त्र बलों का बहुत ही कुशलता से नेतृत्व किया और महिलाओं के बारे में हर रूढ़िवादिता को तोड़ा। इंदिरा की पहल के कारण ही पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश नामक एक नया देश बना।

इतना ही नहीं, इंदिराजी ने भारत को एक उभरती हुई महाशक्ति बनाने पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने 18 मई 1974 को पोखरण में परमाणु परीक्षण किया और हमारे देश की ताकत को दुनिया के सामने साबित कर दिया। वह कभी ‘मूक कठपुतली’ के रूप में जानी जाती थीं, लेकिन वह अब ‘लौह महिला’ बन गई थीं। 1971 में वीवी गिरी ने उन्हें सम्मानित किया। पाकिस्तान के खिलाफ जीत के लिए भारत का नेतृत्व करने के लिए भारत रत्न के साथ। अपने 16 वर्षों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने देश पर एक अमिट छाप छोड़ी। निस्संदेह इंदिरा गांधी एक सख्त राजनीतिज्ञ थीं, लेकिन एक जटिल व्यक्तित्व भी थीं। उनके कुछ फैसलों के बारे में लोगों की अलग-अलग राय है। ये फैसले कैसे भी हों, उन्होंने भारत के इतिहास को निश्चित रूप से बदल दिया था।
11 जनवरी 1966 को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की असामयिक मृत्यु के बाद 24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनीं। इसके बाद तो वह लगातार तीन बार 1967-1977 और फिर चौथी बार 1980-84 देश की प्रधानमंत्री बनीं। 1967 के चुनाव में वह बहुत ही कम बहुमत से जीत सकी थीं, लेकिन 1971 में फिर से वह भारी बहुमत से प्रधामंत्री बनीं और 1977 तक रहीं। 1977 के बाद वह 1980 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनीं और 1984 तक प्रधानमंत्री के पद पर रहीं।
16 वर्ष तक देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए, लेकिन 1975 में आपातकाल 1984 में सिख दंगा जैसे कई मुद्दों पर इंदिरा गांधी को भारी विरोध-प्रदर्शन और तीखी आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी थी। 31 अक्तूबर 1984 को उन्हें अपने अंगक्षक की ही गोली का शिकार होना पड़ा और वह देश की एकता और अखंडता के लिए कुर्बान हो गईं।
