कोलकाता । भागवताचार्य स्वामी त्रिभुवन पुरी महाराज ने श्री रामेश्वरनाथ महादेव मन्दिर में भारत में वैदिक सनातन धर्म की मर्यादा के अनुरूप संस्कारित जीवन जीने की प्रेरणा दी । स्वामी त्रिभुवनपुरी महाराज ने कहा विजयादशमी आत्मशुद्धि का महायज्ञ है। यह पर्व हमें आत्मावलोकन का अवसर प्रदान करता है । काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह आदि विकारों के प्रतीक हैं, जो हमारे ही भीतर छिपे दानव हैं । इन विकारों के दहन का संकल्प दशहरे का वास्तविक उद्देश्य है । श्रीराम-रावण युद्ध मानव-चेतना में घटित होने वाला शाश्वत युद्ध है, सत्य और असत्य का, धर्म और अधर्म का तथा प्रकाश और अंधकार का । श्रीमद्भगवद्गीता का अमर उद्घोष यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति…… हमें यह बोध कराता है कि जब भी अधर्म अपनी चरम सीमा को प्राप्त होता है, तब दिव्य शक्ति, भगवान का अवतरण होता है । यह शक्ति बाहर से नहीं आती, वह हमारे अंतःकरण के आत्मबल और विवेक से जागृत होती है । समाजसेवी अनिल जालान, पण्डित अनिल मिश्रा, पण्डित मानस होता महाराज एवम् श्रद्धालु उपस्थित रहे ।