चीन के हथियारों की पोल खुली, जंग के मैदान में इस्तेमाल करने वालों की ही आ रही शामत

चीन की सैन्य ताकत और वैश्विक हथियार बाज़ार में बढ़ती दखल का दावा अब गंभीर सवालों के घेरे में है। अभी कुछ दिनों पहले ही बांग्लादेश के एक शिक्षण संस्थान पर जो फाइटर प्लेन क्रैश हुआ था वह चीन में ही बना था। हाल के वर्षों में एशिया, अफ्रीका और मध्य पूर्व के कई देशों ने चीनी हथियारों को खरीदकर भारी रणनीतिक जोखिम उठाया है। दिखावे में उन्नत और सस्ते हथियार, युद्ध के मैदान में बार-बार विफल साबित हुए हैं। चीन के लड़ाकू विमान, ड्रोन, टैंकों और मिसाइल प्रणालियों में तकनीकी खामियां, खराब डिज़ाइन, और रखरखाव की समस्याएं सामने आई हैं। इसकी वजह से जंग के मैदान में तो नाकामी आ ही रही है, साथ ही इनका इस्तेमाल करने वालों की जान भी जा रही है।

भरोसे की कमी और घटती बिक्रीबीते कुछ वर्षों में चीन के हथियारों पर दुनिया का भरोसा लगातार डगमगाया है। थाईलैंड और अल्जीरिया जैसे देश चीनी हथियारों में लगे उपकरणों को पश्चिमी तकनीक से बदलने को मजबूर हुए हैं। कथित ‘कम कीमत’ की असलियत तब सामने आती है जब जंग के समय ये हथियार जवाब दे जाते हैं। रिपोर्टों के अनुसार, 2016 से 2020 के बीच चीन के हथियार निर्यात में लगभग आठ प्रतिशत की गिरावट आई है। पाकिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश जैसे पारंपरिक ग्राहक भी अब दूसरी दिशाओं में झांक रहे हैं।

बार-बार फेल हुए चीनी हथियारचीन से निर्यात किए गए कई हथियार हाल के वर्षों में बुरी तरह असफल हुए हैं। म्यांमार ने JF-17 फाइटर जेट्स (चीन के साथ मिलकर बने) को ग्राउंड कर दिया क्योंकि इनमें इंजन और रडार से जुड़ी गंभीर दिक्कतें थीं। नाइजीरिया को दिए गए नौ F-7 लड़ाकू विमानों में से सात को रखरखाव और दुर्घटनाओं के कारण वापस भेजना पड़ा। बांग्लादेश में K-8W ट्रेनर विमान की रडार प्रणाली और हथियार प्रणाली बार-बार फेल हुई।

अल्जीरिया और मिस्र ने शिकायत की है कि उन्हें मिले CH-4 ड्रोन बार-बार क्रैश हुए और किसी भी वास्तविक सैन्य अभियान में भरोसेमंद नहीं साबित हुए। पाकिस्तान की नौसेना को F-22P फ्रिगेट्स और HQ-9 व PL-15 मिसाइलों में इंजिन, सेंसर और गाइडेंस की गंभीर तकनीकी समस्याएं झेलनी पड़ीं।

ऑपरेशन सिंदूर में खुली कलई2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने चीनी हथियारों की पोल सार्वजनिक रूप से खोल दी। चीन से मिले एयर डिफेंस सिस्टम HQ-9 और PL-15 एयर टू एयर मिसाइलें भारतीय हमलों को रोकने में असफल रहीं, जिससे पाकिस्तान को भारी बुनियादी ढांचे का नुकसान हुआ। इन विफलताओं ने साबित कर दिया कि चीनी हथियारों की प्रदर्शन क्षमता सिर्फ कागजों में है, ज़मीन पर नहीं।

सिस्टम की जड़ में खामीचीन में हथियार निर्माण प्रक्रिया में गहरी समस्याएं हैं। पश्चिमी देशों की तरह कोई सख्त गुणवत्ता नियंत्रण या प्रमाणन प्रणाली नहीं है। हथियारों की रियल-टाइम कॉम्बैट टेस्टिंग ना के बराबर होती है। उत्पादन की होड़ में गुणवत्ता की अनदेखी होती है और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। हाल के वर्षों में कई पीएलए जनरलों की बर्खास्तगी इसी का प्रमाण है।

इसके अलावा, चीन का रक्षा क्षेत्र नवाचार में पीछे है और वह अब भी पश्चिमी व रूसी हथियारों की रिवर्स इंजीनियरिंग पर निर्भर है। J-20 फाइटर जेट दिखने में अमेरिकी F-22 जैसा है, पर उसकी तकनीक और परफॉर्मेंस काफी पीछे है।

मरम्मत में मुसीबत, खरीदार परेशानचीन से हथियार खरीदने वाले कई देशों को मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। नाइजीरिया और म्यांमार जैसे देशों को तो विदेशी तकनीशियन बुलाने पड़े ताकि सिस्टम काम कर सके। चीनी हथियारों की ट्रेनिंग और दस्तावेज़ भी स्थानीय भाषाओं में नहीं होते, जिससे संचालन में और दिक्कत आती है।

गिरती साख और रणनीतिक नुकसानचीन की हथियार बिक्री 5.6 फीसदी से गिरकर 5.2 फीसदी पर आ चुकी है और 2013-17 से 2018-22 के बीच 23 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। पाकिस्तान तक अब टर्की जैसे देशों की तरफ रुख कर रहा है। भारत ने हाल ही में एक व्यापक समीक्षा शुरू की है, ताकि सैन्य उपकरणों में चीन-निर्मित हिस्सों को हटाया जा सके।

विशेषज्ञों की रायअलेक्जेंडर वुविंग और कॉलिन कोह जैसे रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीनी हथियार तकनीकी रूप से कमजोर, अनुभवहीन और कम भरोसेमंद हैं। रैंड कॉरपोरेशन की रिपोर्टें भी बार-बार चेतावनी देती रही हैं कि चीन की रक्षा निर्यात प्रणाली में मूलभूत खामियां हैं।

सस्ता है, पर जानलेवा भीम्यांमार, नाइजीरिया, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों का अनुभव यही दर्शाता है कि चीनी हथियारों पर भरोसा करना रणनीतिक भूल हो सकती है। ये सिस्टम जंग के समय नाकाम होते हैं और उनकी मरम्मत या प्रतिस्थापन कई गुना महंगा पड़ता है।

चीन जब तक गुणवत्ता, पारदर्शिता, नवाचार और भरोसेमंद सपोर्ट सिस्टम में सुधार नहीं करता, तब तक उसका वैश्विक हथियार बाज़ार में दावा अधूरा ही रहेगा। सस्ते सौदों की लालच में देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को जोखिम में डाल रहे हैं। अब समय है कि खरीददार देश सिर्फ लागत नहीं, बल्कि विश्वसनीयता और युद्धक्षमता को प्राथमिकता दें।

ओम पराशर

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
1
Hello
Can we help you?