हर वर्ष की भाँति इस बार भी श्रावण मास में लाखों शिवभक्त देशभर से गंगाजल लेकर कांवड़ यात्रा पर निकलेंगे। यह यात्रा आस्था, श्रद्धा और तप का प्रतीक है — लेकिन इसी के साथ यह एक बड़ी पर्यावरणीय चुनौती भी बन गई है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री इन्द्रेश कुमार ने इस बार एक सकारात्मक और दूरदर्शी सुझाव दिया है:
“प्लास्टिक पैक्ड पानी का स्थान अब कम्पोस्टेबल वॉटर पाउच लें।”
यह केवल एक अपील नहीं, बल्कि आध्यात्मिक चेतना और पर्यावरणीय जिम्मेदारी का सामंजस्य है।
पर्यावरण के लिए घातक है प्लास्टिक
कांवड़ यात्रा के दौरान प्रतिवर्ष लाखों लीटर पानी की खपत होती है, जो अधिकांशतः प्लास्टिक की बोतलों या पाउच में वितरित किया जाता है। ये प्लास्टिक:
जल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं,
पशु-पक्षियों के लिए घातक हैं,
और जमीन में कभी नहीं गलते — सदियों तक पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं।
कम्पोस्टेबल वॉटर पाउच: एक सुरक्षित विकल्प
इस बार “अखंड भारत मिशन” के “वाटिका प्रकल्प” के माध्यम से एक अनूठी पहल की गई है — 100% कम्पोस्टेबल वॉटर पाउच का वितरण।
इसके लाभ:
• मिट्टी में कुछ ही समय में गल जाते हैं
• जल स्रोतों को नुकसान नहीं पहुँचाते
• श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित
• स्वदेशी तकनीक और स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहन
सच्ची भक्ति वही, जो प्रकृति की रक्षा करे
शिव को “पंचतत्वों का स्वामी” माना गया है — और उन पंचतत्वों में से जल और पृथ्वी की रक्षा करना हर शिवभक्त का नैतिक धर्म होना चाहिए। अगर हमारी आस्था से पर्यावरण को भी जीवन मिले, तो यह सच्चे धर्म की विजय है।
“वाटिका प्रकल्प” – अखंड भारत मिशन नारा दें –
“प्लास्टिक को ना – प्रकृति को हाँ!”यही शिव की सच्ची सेवा है।
लेखक: रविंद्र आर्य
(भारतीय लोकसंस्कृति, इतिहास और सामरिक चेतना के स्वतंत्र विश्लेषक पत्रकार)