भारतीय भाषा परिषद में नागार्जुन जयंती पर साहित्य संवाद का आयोजन

कविता में हिस्सेदारी से मनुष्यता को मिलेगा बल: शंभुनाथ
कोलकाता। भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा नागार्जुन जयंती के अवसर पर कविता पाठ और साहित्य संवाद का आयोजन किया गया। इस अवसर पर चर्चित कवि नील कमल, मनीषा गुप्ता और सूर्य देव रॉय ने अपनी कविताओं का पाठ किया। युवा कवि सूर्य देव रॉय ने ‘छली हुई स्त्री’, ‘इश्क तुमसे’, ‘पलाश’, ‘शायद प्रेम करने लगा हूँ’, ‘पत्र’, ‘सवाल’, ‘भूख बुचिया की’, और ‘इनदिनों’, मनीषा गुप्ता ने ‘स्त्री नदी है’, ‘शहर’, ‘देवीपुर की औरतें’, ‘तुमसे मिलकर’, ‘जब तुम लौटोगे’, ‘केंचुल’, ‘सौहार्द’, ‘भूख’, ‘अपराध’, और ‘सफ़ेद कबूतर’, नील कमल ने नील कमल ने ‘ढ़ीढ हैं लाशें’, ‘विनेस फोगाट और साक्षी मलिक के लिए’, ‘रेल पटरी से उतर जाएगी’, ‘सिखाने वाले ज्यादा’, ‘फाल्गुन के रंग से लिखी’, ‘खुश होने से डर लगता है’ और ‘यहाँ क्यों तैरती सपनों की लाशें’ कविताओं का पाठ किया। इस अवसर पर कवि परिचय के रूप में कंचन भगत, अनुपमा वर्मा और फरहान अजीज ने काव्य पाठ किया। संवाद के अंतर्गत कवियों और श्रोताओं के बीच काव्य लेखन पर जरूरी और अर्थपूर्ण चर्चा हुई। संवाद के अंतर्गत इबरार ख़ान, रूपेश कुमार यादव, संजना जायसवाल, लिली साह, अनुपमा वर्मा, आशुतोष कुमार राउत, फरहान अजीज, अपराजिता वाल्मीकि ने कवियों से संवाद किया।

समीक्षा करते हुए प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि कविताएँ हमें अपने समाज के प्रति संवेदनशील और तरल बनाती हैं। नीलकमल की कविताएँ ऐसी हैं कि इन्हें सुनकर हम आसानी से बचकर निकल नहीं सकते बल्कि ये कविताएँ हमारे भीतर तक प्रवेश कर जाती हैं और हमें उद्वेलित करती रहती हैं। मनीषा जी की कविताओं में महिलाओं के दैनिक जीवन के प्रश्न देखें जा सकते हैं, जिससे वह जूझती हैं। सूर्य देव रॉय की कविता एक रिवोल्यूशन की तरह है। गीता दूबे ने कहा कि आज के युवाओं के बीच सपनें, उम्मीद और चुप्पी है। इसके बावजूद वह आज के समय को समझकर लिख रहा है। कविता लिखने के लिए कवियों को भाषा और विषयों को चुनते हुए उसे बेबाकी से रखना होगा। मॉडरेटर डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि आज सत्ता व्यवस्था के सामने लोगों की कतार लगी हुई है ऐसे समय में चंद लोग ही हैं जो प्रतिरोध की आवाज बनकर लगातार सवाल उठा रहे हैं और यह कविता पाठ, साहित्य संवाद व्यवस्था के ख़िलाफ़ एक सशक्त प्रतिकार है। कवि नील कमल की कविताएं प्रतिरोध और प्रतिवाद की जमीन से कटती नहीं हैं। इनकी कविताओं में आम आदमी के जरूरी सवाल यक्ष प्रश्न की तरह बचे हुए हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए परिषद के निदेशक डॉ. शम्भुनाथ ने कहा कि कविता में जहाँ ज्यादा हिस्सेदारी होगी, वहाँ कविता अधिक जीवंत होगा। इसी तरह यदि लोकतंत्र में ज्यादा हिस्सेदारी होगी वहाँ लोकतंत्र जीवंत होगा। मिशन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा मिशन का यह एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। इस कार्यक्रम की निरंतरता से हिंदी साहित्य और हिंदी काव्य जगत में पश्चिम बंगाल से नई पीढ़ी की ऐसी फसल आएगी जो हिंदी कविता के प्रतिनिधि कवि माने जाएंगे।इस अवसर पर दिनेश साव,डॉ. राजेश मिश्रा, डॉ. सुनील शर्मा, अनिता राय, सुरेश शा, डॉ. इतु सिंह, प्रदीप धानुक,नमिता जैन,संजय दास, मुकेश पंडित,विकास जायसवाल, पद्माकर व्यास, सुमिता गुप्ता, जितेंद्र जितांशु, सेराज ख़ान बातिश, अनिल शाह, मधु साव, प्रकाश त्रिपाठी, विनोद यादव, चंदन भगत , प्रभाकर साव, निधि सिंह, प्रगति दूबे, निसार अहमद, हिमाद्री मिश्रा,अनुराधा भगत समेत बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन मंजू श्रीवास्तव ने किया।

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