
रानीगंज। रानीगंज के हालदार बांध इलाके में स्थित श्री श्री माँ रक्षा काली मंदिर का 155वां वार्षिक उत्सव पूरे श्रद्धा, आस्था और परंपरा के साथ मनाया गया। यह पूजा अब न सिर्फ रानीगंज बल्कि पूरे आसनसोल क्षेत्र के लिए एक गहरी आध्यात्मिक पहचान बन चुकी है। पूजा समारोह की शुरुआत सुबह 151 महिलाओं की भव्य कलश यात्रा से हुई। यह यात्रा मंदिर प्रांगण से निकलकर रानीगंज बाजार की परिक्रमा करते हुए बुजीरबांध तालाब तक पहुँची, जहाँ से पवित्र जल भरकर कलश को मंदिर में स्थापित किया गया। रात्रिकाल में पूजा की विशेष परंपराओं के तहत मंदिर के पुरोहित सत्यजीत मिश्रा एवं पुरोहित आकाश बनर्जी के साथ साथ हजारों श्रद्धालुओं महिलाओं और पुरुषों ने दांडी देकर मंदिर में प्रवेश किया और माँ काली का आशीर्वाद प्राप्त किया। पूरी रात श्रद्धालु विधिवत पूजा में लीन रहे और भक्ति भाव से वातावरण भक्तिमय बना रहा। इस वर्ष पूजा कमेटी ने श्रद्धालुओं के लिए शरबत और मिठाई की विशेष व्यवस्था की थी। मंदिर परिसर को लाइटिंग और फूलों से आकर्षक ढंग से सजाया गया, साथ ही ढोल-नगाड़ों और झांकियों ने इस आयोजन को और भी जीवंत बना दिया। पूजा को सफल बनाने में कमेटी के सदस्यों ने दिन-रात मेहनत कर सभी व्यवस्थाओं को सुचारु रूप से संचालित किया। पूरे आयोजन के दौरान पुलिस प्रशासन की ओर से भी विशेष व्यवस्था की गई, जिससे कार्यक्रम शांतिपूर्ण और व्यवस्थित तरीके से संपन्न हो सका। इस पावन अवसर पर रानीगंज के विधायक तापस बनर्जी, बोरो चेयरमैन मुजम्मिल शहजादा, आसनसोल नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग के मेयर परिषद सदस्य दीव्येंदु भगत, गणेश केउरा,शिबा रजक,रिंटू मालाकार,मितुल केउरा,गोबर्धन केउरा,फैला केउड़ा और दीपू दास सहित मंदिर पूजा कमेटी के सदस्य उपस्थित रहे। इस दौरान विधायक तापस बनर्जी ने कहा यह पूजा सामूहिक आस्था और संस्कृति का प्रतीक है। माँ के चरणों में सभी के मंगल की कामना करता हूँ। वहीं चेयरमैन मुजम्मिल शहजादा ने कहा की माँ के दरबार में आकर जो मानसिक शांति मिलती है, वह अविस्मरणीय है। पूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी देते हुए मंदिर के पुरोहित सत्यजीत मिश्रा ने बताया कि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में महामारी फैल गई थी। उस समय एक वृद्ध व्यक्ति को स्वप्न में माँ काली ने दर्शन देकर भव्य पूजा का आयोजन करने का निर्देश दिया था। तभी से गाँववासी हर वर्ष माँ की पूजा कर रहे हैं, और आज यह एक भव्य वार्षिक परंपरा बन चुकी है। पूजा कमेटी के सदस्यों ने बताया कि यह एक दिवसीय पूजा है जो शनिवार की संध्या सूर्यास्त के बाद माँ की प्रतिमा स्थापना के साथ शुरू होती है और रविवार सुबह सूर्योदय तक चलती है। इस दौरान पूरी रात भक्तजन भक्ति में लीन रहते हैं। पाठा बलि और खिचड़ी भोग इस पूजा के विशेष आयोजन हैं। सूर्योदय से पूर्व सिंदूर खेला कर माँ की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। यहां की खास परंपरा यह भी है कि जिन श्रद्धालुओं की मन्नत माँ काली पूरी करती हैं, वे उपवास रखकर बुजीरबांध तालाब में डुबकी लगाते हैं और दांडी देकर मंदिर प्रांगण तक पहुंचते हैं, जहाँ वे माँ के चरणों में अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता अर्पित करते हैं। यह वार्षिक उत्सव केवल रानीगंज या आसनसोल तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अन्य जिलों और प्रदेशों से भी हजारों श्रद्धालु इस पूजा में शामिल हुए। सभी ने माँ से सुख-शांति और समृद्धि की कामना की।
