कोर्ट के आदेश पर जमीन को दख़लमुक्त कराने पहुंचे प्रशासन का पट्टादारों ने किया विरोध

 

हुगली, 10 मार्च । हुगली जिले के दादपुर थाना अंतर्गत बाबनान ग्राम पंचायत के मूलग्राम मौजा में 25 बीघा जमीन को लेकर चल रहे विवाद का अंत नहीं होता दिख रहा है। इस विवाद की जड़ें 1994 में वामपंथी सरकार के समय से शुरू हुई।

सूत्रों के अनुसार, जब यह जमीन 177 लोगों को पट्टे पर दी गई थी। तब से ये लोग इस पर खेती करते आ रहे हैं और इसे अपनी आजीविका का आधार मानते हैं। दूसरी ओर, जमीन के मूल मालिक होने का दावा करने वाले मोहसिन मंडल का कहना है कि वामपंथी सरकार ने उनकी जमीन पर जबरन कब्जा कर इसे वितरित कर दिया था, और जमीन की मालकिन अतवारा खातून हैं। उनका यह भी दावा है कि 2002 में पट्टा रद्द कर दिया गया था, लेकिन इसके बावजूद जमीन पर उनका कब्जा नहीं हो सका है।

उच्च न्यायालय में यह मामला चल रहा है, और कोर्ट ने उप जिला मजिस्ट्रेट और ब्लॉक प्रशासन को जमीन का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने का आदेश दिया है। मालिक की ओर से दायर मुकदमे के बाद प्रशासन ने पिछले बुधवार को पुलिस बल के साथ जमीन पर कब्जा लेने की कोशिश की, लेकिन पट्टादारों और माकपा कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण यह संभव नहीं हो सका। प्रदर्शनकारियों ने बीडीओ और पुलिस को घेर लिया, जिससे इलाके में तनाव बढ़ गया। इसके बाद पुलिस और स्थानीय प्रशासन के लोग जब सोमवार को जमीन पर पहुंचे तो माकपा के नेतृत्व में पट्टादारों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।

पट्टादारों का कहना है कि वामपंथी सरकार ने उन्हें यह जमीन पट्टे पर दी थी, और पिछले 30 साल से वे इस पर खेती कर रहे हैं। उनके लिए यह जमीन उनकी आजीविका और अधिकार का प्रतीक है। उनका आरोप है कि तृणमूल सरकार अब इसे उनसे छीनने की कोशिश कर रही है।

वहीं मोहसिन मंडल का दावा है कि यह जमीन उनकी है और वामपंथी सरकार ने इसे अवैध रूप से वितरित किया था। उनका कहना है कि 60 प्रतिशत मूल पट्टादारों की मृत्यु हो चुकी है, और बाकी ने जमीन को मौखिक रूप से दूसरों को बेच दिया गया है, जिससे स्थिति और उलझ गई है।

सोमवार को माकपा ने पट्टादारों के पक्ष में प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जबकि तृणमूल कार्यकर्ताओं की मौजूदगी ने इसे सत्तारूढ़ पार्टी बनाम विपक्ष का रंग दे दिया। दोनों पक्ष इसे अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण स्तर पर तनाव और बढ़ गया है।

फिलहाल, उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भी जमीन पर कब्जे का मसला अनसुलझा है। प्रशासन की दो बार की कोशिश नाकाम रही, और पट्टादार जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर, मालिक का दावा है कि कोर्ट का आदेश उनके पक्ष में है, लेकिन उसका पालन नहीं हो रहा।

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