कुंभ मेला : कोलकाता के एक डाक्टर की अद्भुत अनुभूति

कोलकाता/प्रयागराज (सीताराम अग्रवाल) । ” हमलोग मेडिकल कैम्प से निकलकर महाकुंभ के पावन अवसर पर संगम में डुबकी लगाने की आकांक्षा से संगम स्थल की ओर बढ़े, जो वहां से करीब 13 किलोमीटर दूर था। रास्ते में भीड़ तो विशाल थी, पर व्यवस्थित थी। यह वह भीड़ नही थी, जो हावड़ा या सियालदह स्टेशनों पर ट्रेन पकड़ने या फिर ट्रेन से उतर कर आफिस जल्द पहुंचने के लिए एक दूसरे को धकिया कर भी चल देती थी। यह भीड़ तो 144 वर्षों बाद लगनेवाले महाकुंभ की पावन बेला में डूबकी लगा कर अपनी आत्मा को यह संतोष देने वाली थी कि हमारा सनातन धर्म में जन्म लेना सार्थक हो गया। हमने इस लोक के साथ परलोक भी सुधार लिया। सबका गन्तव्य स्थल एक ही था, पर किसी भी हालत में अन्य पुण्यार्थियों को कोई कष्ट न पहुंचे, इसका पूरा ध्यान रखते हुए। इन्हीं विचारों में तल्लीन परन्तु साथ ही अगल- बगल के दृश्यों को देखते हुए मैं कब संगम द्वार तक पहुंच गया, पता ही नहीं चला। करीब सवा घंटे बीत चुके थे। थोड़ी देर बाद ही गंगा, यमुना व सरस्वती के पवित्र संगम में डुबकी भी लगाने वाले थे, पर मेरे मन मे एक बात रह- रह कर कचोट रही थी। इसका कारण था मैं ठहरा परम शिव भक्त। मुझे विभिन्न स्थानों पर नारायण भगवान, दुर्गा जी, सीताराम, हनुमान सहित कई देवी- देवताओं के दर्शन हुए। उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन भी किया। पर भोले बाबा के दर्शन नहीं हुए। मन में यह विचार हिलोरे मार ही रहा था कि अचानक चमत्कार हुआ। मैंने देखा पार्वतीमाता के साथ शिवजी बाल्यरूप में सामने से चले आ रहे हैं। बस फिर क्या था। मैं दौड़कर उनके पास पहुंचा और भावावेश में उनके चरणों में लोटने की अपेक्षा उन्हें बांहों में भर लिया। मेरा रोम-रोम रोमांचित था। सच पूछिये तो वह पल मेरे लिए वर्णनातीत है। मुझे प्रतीत हुआ कि मेरे मन की पीड़ा को समझते हुए शंकर जी ने बाल रूप धारण कर मुझे साक्षात दर्शन दिये हैं। “

मुझे ऐसा बताते हुए डाक्टर साहब अत्यन्त भावुक हो उठे। पुनः वह दृश्य स्मरण करते ही उनके रोम खड़े हो गये। उन्होंने बताया कि भारत सेवाश्रम संघ तथा गंगा मिशन के तत्वावधान में यह चिकित्सा शिविर कुंभ मेले में गत 11 जनवरी से कार्यरत है, जो 26 फरवरी तक चलेगा। यह सेक्टर फाइव में रामानन्द मार्ग- डी पर अवस्थित है। डाक्टर साहब ने कहा- मैं 26 जनवरी को गया था और 5 फरवरी तक रहा। हमने रोजाना सबेरे 8 बजे से लेकर रात 8 बजे के बीच औसतन 800 रोगियों की चिकित्सा की। इनमें महिला-पुरूष सहित हर उम्र के लोग थे। इसके अलावा आपातकालीन अवस्था में भी हम रोगियों को देखते थे। गंगा मिशन की ओर से पुण्यार्थियों को दिन में तथा रात मे भोजन भी कराया जाता था। इनकी संख्या करीब 800 से 1000 के बीच होती थी। उन्होंने गंगा मिशन शिविर की सम्पूर्ण व्यवस्था का श्रेय माननीय श्री प्रह्लाद राय गोयनका जी को दिया। ज्ञातव्य है कि श्री गोयनका गंगा मिशन के राष्ट्रीय सचिव तथा मारवाड़ी रिलीफ सोसायटी के मानद महासचिव भी हैं। शिविर में सोसाइटी के डाक्टर व नर्से भी सेवा कार्य कर रही हैं। श्री गोयनका ने शिविर में 1 से 10 फरवरी तक भव्य श्री रामकथा का आयोजन भी किया, जिसका श्रद्धालुओं ने भरपूर आनन्द उठाया।


पाठकों आपने रोमांचभरी बातें तो पढ़ ली, पर एक प्रश्न उठ रहा होगा कि मैंने डाक्टर का नाम तो बताया ही नही। जरूर बताऊगा। पर उसके पहले एक बात कह दूँ। कलियुग में कई लोग इस तरह की घटनाओं को परिकल्पित कहेंगे। पर यह भी परम सत्य है कि इसी युग में हिन्दुओं के पर्व- त्यौहार मनानवालों की संख्या दिन -रात बढ़ती जा रही है। बंगाल की दुर्गा पूजा


सार्वजनिक त्यौहार बन चुकी है, जिसकी धूम विदेशों में भी है। बिहार के एक छोटे से हिस्से से निकल कर छठ पूजा अन्यान्य राज्यों सहित बंगाल में इस कदर विस्तारित हो चुकी है कि राज्य सरकार ने इस अवसर पर सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया है। महाराष्ट्र की गणेश पूजा, गुजरात का डांडिया, राजस्थान की गणगौर पूजा, पंजाब की लोहड़ी-कहाँ तक गिनाये, आस्था के ये त्योहार दिनों दिन लोकप्रिय हो रहे हैं। महाकुंभ की ही बात करें तो भगदड की मामूली सी घटना, जिसे योगी सरकार साजिश करार दे चुकी है, पवित्र संगम में डुबकी लगाने वालों की संख्या 50 करोड़ तक पहुंच चुकी है । पता नहीं अंत तक यह संख्या कहां तक पहुंचेगी। दरअसल आस्था, विश्वास व धार्मिक भावना की त्रिवेणी का अटूट बंधन ही श्रद्धालुओं को संगम स्थल पर डूबकी लगाने के लिए खींच लाता हैं , भले ही ऐसा करने में उन्हें लाख कठिनाइओं का सामना करना पड़ता हो।


रामायण- महाभारत, गीता, पुरणों सहित हमारे धार्मिक ग्रन्थों में वैज्ञानिकता के साथ मानवीय संबंधों की व्याख्या कूट कूट कर भरी हुई है। अतः इस तरह की चमत्कारिक घटना अस्वाभाविक नहीं है, जिसका वर्णन उपर किया गया है। हां, उस डाक्टर का नाम हैं- कमलेश कुमार राय, जो के. के. राय के नाम से जाने जाते हैं तथा कोलकाता की 112 वर्ष पुरानी स्वनामधन्य संस्था मारवाड़ी रिलीफ सोसायटी के अस्पताल में कार्यरत हैं।


अंत में मैं इतना ही कह सकता हूं कि हमारे प्राचीन हिन्दू सनातनी धर्म में अन्य धर्मों के प्रति सद्भाव रखते हुए धर्म के साथ साथ मानवीय गुणों से इतना भरपूर हैं कि हम गर्व से कह सकते हैं- कुछ बात तो है ऐसी कि हस्ती मिट नहीं सकती हमारी।

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