बाबू मुझे इतनी पीड़ा क्यों?
विज्ञान पढ़ के डॉक्टर क्या बनी थी मैं
मां आपके आंचल में बड़ी हुई थी मैं
पापा आपकी सबसे लाडली परी थी मैं
कितनी उम्मीद स्नेह से बड़ा किया था आप दोनों ने
कभी किसी जरूरत की कमी ना होने दी थी आप दोनों ने
हर लम्हा मेरी हिम्मत बने थे आप
हर पल मेरे दुखों को आपने ही देखा था
मेरी इक्कतीस वर्ष में मृत्यु आपने ही झेला था
उस रात मेरी बलात्कार की पीड़ा सिर्फ ईश्वर ने देखी थी
बाबू मुझे इतनी पीड़ा क्यों?
छत्तीस घंटे लगातार नाइट शिफ्ट लगाई थी मैने
सीना ठोक के बोलूंगी कि 100 जन बचाए थे मैंने
घर का खाना, सुख सुविधा नसीब ना हो
अकेले लाल आंखों से ड्यूटी पर नींद दुश्वार जो हो
फिर भी ऐसी क्या गलती हो गई मुझसे कि
रात को 3:00 बजे मेरी ड्यूटी का बहिष्कार हुआ
मेरे माता-पिता का जीवन और सपनों का नाश हुआ
फिर से वहशी मनुष्यों को अबला नारी पर अपनी शक्ति का अहंकार हुआ
मेरे चश्मा को मेरे आंखों में धसाया गया
मेरे सर को दीवार से लड़ाया गया
योनि श्रोणी और हड्डियों को तोड़ा गया
वीर्य से लटपट मेरी लाश को पाया गया
बाबू मुझे इतनी पीड़ा क्यों
मुझ पर आत्महत्या का गलत आरोप लगाया गया
झूठ बोल के पिता को 3 घंटे रुकाया गया
सारे सबूत को धड़ल्ले से मिटाया गया
मेरे कातिलों को जोर-शोर से बचाया गया
जब मेरी माता ने मेरे अर्धनग्न चोटों से भरे शरीर को देखा
तो सबसे ज्यादा रोना तो मुझे ही आया
काश मैं आप दोनों से आखरी बार मिल पाती
आपकी कोमल मुस्कान की वजह बन पाती
मेरी न्याय की अदालत कब खुलेगी
ऐसे वहशी मनुष्यों की संख्या कब घटेगी
बाबू मुझे इतनी पीड़ा क्यों
– अभीक मिश्रा
