दक्षिण का कैलाश कहलाता है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग”

क्रांति कुमार पाठक
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भगवान शिव-शंकर का पावन पर्व महाशिवरात्रि आने ही वाला है। इस दिन भोलेनाथ की विशेष पूजा की जाती है, व्रत रखा जाता है। माना जाता है कि इस व्रत से सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
वहीं इस पावन दिन पर भक्तजन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके भी स्वयं के जीवन को कृतार्थ करते हैं। आंध्र प्रदेश के पश्चिमी भाग में कर्नूल जिले के नल्ला मल्ला जंगलों के मध्य श्री शैलम पहाडी पर स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। यहाँ शिव की आराधना मल्लिकार्जुन नाम से की जाती है। स्कंदपुराण में श्री शैल काण्ड नाम का अध्याय है। इसमें उपरोक्त मंदिर का वर्णन है। इससे इस मंदिर की प्राचीनता का पता चलता है।
कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की, तब उन्होंने शिवनंद लहरी की रचना की थी। श्री शैलम का सन्दर्भ प्राचीन हिन्दू पुराणों और ग्रंथ महाभारत में भी आता है।
आंध्र प्रदेश के इस ज्योतिर्लिंग को दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है और यह भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां भगवान शिव मल्लिकार्जुन के नाम से पूजे जाते हैं और माता पार्वती को भ्रमरांबिका कहा जाता है। यह शक्तिपीठ है जिसका बड़ा महत्व है।
श्री शैलम ज्योतिर्लिंग तक पहुंचने के लिए घने जंगलों के बीच से सड़क मार्ग से जाना पड़ता है। घने जंगलों के बीच से रास्ता होने की वजह से शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक यह बंद कर दिया जाता है। सुबह गेट खुलने के बाद ही यात्री यहां से गुजरते हैं। इस रास्ते को पार करने के बाद ही श्री शैलम बांध दिखाई देता है जहां 290 मीटर की ऊंचाई से गिरता प्रबल जलावेग देखा जा सकता है। इसे देखने के लिए भी पर्यटकों का तांता लगा रहता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का इतिहास शातवाहन राजवंश के शिलालेख बताते हैं। इन शिलालेखों से पता चलता है कि यह मंदिर दूसरी शताब्दी से अस्तित्व में हैं। मंदिर के अधिकांश आधुनिक जोड़ विजयनगर साम्राज्य के राजा हरिहर प्रथम काल से मिलते हैं। मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के अंदर भी कई मंदिर बने हुए हैं जिनमें मल्लिकार्जुन और भ्रमराम्बा सबसे प्रमुख मंदिर हैं। यहां सबसे उल्लेखनीय और देखने लायक विजयनगर काल के दौरान बनाया गया मुख मंडप है। मंदिर के केंद्र में कई मंडपम स्तंभ हैं और जिसमें नादिकेश्वरा की एक विशाल दर्शनीय मूर्ति भी है।
शिवपुराण के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की कहानी भगवान भोलेनाथ के परिवार से जुडी हुई हैं। माना जाता है कि शंकर भगवान के छोटे पुत्र गणेश जी कार्तिकेय से पहले शादी करना चाहते थे। इसी बात पर भोलेनाथ और माता पार्वती ने इस समस्या को सुलझाने के लिए दोनों के समक्ष यह शर्त रखी कि जो भी पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा उसका विवाह पहले होगा। यह सुनकर कार्तिकेय ने परिक्रमा शुरू कर दी लेकिन गणेश जी बुद्धि से तेज थे उन्होंने माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा करके उन्हें पृथ्वी के समान बताया। जब यह समाचार कार्तिकेय को पता चला तो वह रुष्ट होकर क्रंच पर्वत पर चले गए। उन्हें मनाने के सारे प्रयास जब असफल हुए तो देवी पर्वती उन्हें लेने गई लेकिन वह उन्हें देखकर वहां से पलायन कर गए।
इस बात से हताश होकर पार्वती जी वहीं बैठ गई और भगवान भोलेनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रगट हुए। यही स्थान मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में विख्यात हुआ।
ऐसा माना जाता है कि यहां देवी सती का ऊपरी होंठ गिरा था। इसलिए यहां शक्ति पीठ भी है। शक्तिपीठ का आशय उन स्थानों से हैं जहां देवी सती के अवशेष गिरे थे।
पौराणिक कथाओं से पता चलता हैं कि देवी सती के पिता राजा दक्ष द्वारा भगवान भोलेनाथ का अपमान न सह पाने की वजह से देवी सती ने आत्मदाह कर लिया था। तब भगवान शिव ने देवी सती के जलते हुए शरीर को उठा कर तांडव किया और इस दौरान उनके शरीर के अंग जहां-जहां गिरे उस स्थान को शक्ति पीठ के रूप में जाना गया। माना जाता है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग में माता पार्वती का ऊपरी होंठ गिरा और ऐसे ये बन गया शक्तिपीठ। श्रीशैलम श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर 18 महाशक्ति पीठों में से एक है। श्रीशैलम शहर में कृष्णा नदी के तट पर स्थित श्री भ्रमरांबा मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर में यूं तो हमेशा ही भक्तों की भीड़ रहती है पर महाशिवरात्रि पर तो यहां मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग पूरे देश से आते हैं।

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