
आसनसोल: देश में बिजली क्षेत्र की अग्रणी संस्थानों की बात चलती है,तब सबसे पहला नाम डी वी सी का आता है। डी वी सी मतलब दामोदर वैली कॉरपोरेशन। हिन्दी में इसे दामोदर घाटी निगम कहते हैं। यह आजाद भारत का पहला बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजना है। संसद से पारित डी वी सी एक्ट 1948 के अन्तर्गत 7 जुलाई 1948 को इसकी स्थापना हुई थी।
दामोदर घाटी निगम की स्थापना पूर्वी भारत के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। दरअसल, बंगाल को दामोदर नदी की बाढ़ से बचाने के लिए दामोदर घाटी निगम की स्थापना हुई थी। दामोदर नदी में हर साल आने वाली भयंकर बाढ़ ने दामोदर घाटी निगम के स्थापना की बुनियाद रखी थी।
दामोदर नदी को बंगाल का शोक कहा जाता था। यह नदी झारखण्ड से बंगाल की ओर बहती है। इस नदी में प्रायः हर साल भयंकर बाढ़ आया करती थी। हर साल आने वाली बाढ़ के कारण बंगाल के लाखों लोग बुरी तरह प्रभावित होते थे। जान-माल का भारी नुकसान होता था। 1943 की बाढ़ और भी ज्यादा भयावह थी।
दामोदर नदी की क्रूरता पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका की टेनीसी वैली ऑथिरिटी की तर्ज पर दामोदर घाटी निगम की स्थापना की गई।
डा मेघनाद साहा की वैज्ञानिक समझ,डा अम्बेडकर की सामाजिक चेतना और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की दूरदर्शिता ने दामोदर घाटी निगम को जमीन पर उतारा। तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री डा श्रीकृष्ण सिंह और बंगाल के मुख्यमंत्री डा बिधान चन्द्र राय की भूमिका भी उल्लेखनीय रही है।
अब दामोदर नदी बंगाल का शोक नहीं है। यह खुशहाली की जननी बन गई है। हर साल विध्वंस की नई गाथा रचने वाली दामोदर नदी निर्माण की वाहक बन गई। दामोदर घाटी निगम ने बंगाल के जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दामोदर नदी को शोक की नदी से खुशहाली की जननी बनाने में झारखण्ड के लोगों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।
डी वी सी के बाँधों के निर्माण में सैंकड़ों गाँव और खेत-खलिहान डूब क्षेत्र में चले गए। हजारों आदिवासी और मूल निवासी परिवार विस्थापित हुए। विस्थापितों के नेताओं का आरोप है कि डैम और परियोजनाओं के बने 70 साल से अधिक हो गए,परन्तु, विस्थापितों का समुचित पुनर्वास नहीं हुआ है। सभी विस्थापितों को डी वी सी में नौकरी नहीं मिली। इन नेताओं का आरोप है कि असली विस्थापितों को नौकरी से वंचित किया गया और कुछ फर्जी विस्थापित डी वी सी में बहाल कर लिए गए।
इसके बावजूद यह सत्य है कि डी वी सी की परियोजनाओं के कारण स्थानीय लोगों को डायरेक्ट और इन डायरेक्ट लाभ हुआ है। सड़कें बनीं,अस्पताल और स्कूल-कॉलेज बने। पानी और बिजली की सुविधाएँ मिलीं। स्थानीय बाजार विकसित हुए। रोजगार के नए-नए अवसर पैदा हुए। स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। सामाजिक और शैक्षणिक प्रगति हुई। उनके जीवन शैली में बदलाव हुए।
इसके साथ यह भी सत्य है कि निगम की ओर से जो सुविधाएँ विस्थापितों एवं स्थानीय लोगों को मिलनी चाहिए थी,वह नहीं मिली। इससे वे निगम प्रबंधन के प्रति आक्रोषित रहते हैं। उनकी शिकायत है कि डी वी सी प्रबंधन उन्हें तवज्जो नहीं देता है।
विस्थापित नेताओं का आरोप है कि सी एस आर अर्थात् कॉरपोरेट सोशल रेसपोंसिबिलिटि के अन्तर्गत किए जाने वाले कार्यों में दिखावा जाता होता है,धरातल पर काम कम दिखते हैं।
वे झारखंड के जामताड़ा का उदाहरण देते हैं। उनका कहना है कि मैथन डैम के निर्माण में जामताड़ा के सैंकड़ों आदिवासी,मुसलमान और मूलनिवासी विस्थापित हुए हैं। इन्हें 14 अलग-अलग गाँवों और टोलों में बसाया गया है। परन्तु,अधिकतर को अभी तक जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला है। इन्हें डी वी सी की तरफ से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गई है। यहाँ अभी तक सी एस आर भी नहीं पहुँचा है।
इसी तरह,मैथन डूब क्षेत्र में आए धोबोकोल गाँव के विस्थापितों को केशरकुरल मौजा में बसाया गया। परन्तु, यहां के विस्थापितों को भी जमीन का मालिकाना हक नहीं मिला है। विस्थापितों के इस टोला को नीमडांगा के नाम से जाना जाता है। इस गाँव में विस्थापितों को डी वी सी की तरफ से कोई सुविधा मुहैया नहीं करायी गयी है।
दामोदर वैली वास्तुहारा संग्राम समिति के केन्द्रीय अध्यक्ष बासुदेव महतो का आरोप है कि डी वी सी प्रबंधन ने विस्थापितों के साथ न्याय नहीं किया है। डी वी सी प्रबंधन के रवैये से विस्थापित दुखी हैं। बासुदेव महतो डी वी सी प्रबंधन को अहसान फरामोश करार देते हैं।
