एकात्म मानव-दर्शन के अग्रदूत थे आदि शंकराचार्य : प्रो. हरीश अरोड़ा

इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज में हुई व्याख्यानमाला

इंदौर। ‘एकात्म दर्शन भारतीय ज्ञान परंपरा का वह सूत्र है जो विश्व में भारत के विराट बोध को लक्षित करता है। इस परंपरा का उत्कर्ष हमें जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के विचारों में मिलता है। उनके विचार एकात्म दर्शन और मानवीयता की महती पूंजी हैं। यदि कहा जाए कि आदि शंकराचार्य एकात्म मानव-दर्शन के अग्रदूत थे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।’ ये विचार इंदौर क्रिश्चियन कॉलेज में भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से आयोजित आदि शंकराचार्य व्याख्यानमाला के अंतर्गत “जगद्गुरू श्री शंकराचार्य एवं भारत की एकात्मकता” विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला के अंतर्गत वरिष्ठ साहित्यकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हरीश अरोड़ा ने कहे। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी राष्ट्र की अस्मिता के प्रतिमानों में उसकी सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उस विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य विशिष्ट होता है। आदि शंकराचार्य ने प्रस्थानत्रयी के भाष्य तैयार कर राष्ट्र को उसकी अस्मिता से परिचित कराया। प्रो. अरोड़ा ने कहा कि केवल 32 वर्ष की छोटी आयु में ही सनातन वैदिक धर्म के पुनुरुत्थान के लिए सम्पूर्ण भारत की यात्रा कर चार मठों और अनेक अखाड़ों की स्थापना कर लोक-मंगल की साधना का मार्ग प्रशस्त किया।
इस अवसर पर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित वरिष्ठ शिक्षाविद डॉ. के आर शर्मा ने आधुनिक समय में आदि शंकराचार्य के विचारों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी परंपरा को नानक, कबीर ने आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि वैदिक धर्म और दर्शन सभी सृष्टि में एक ही तत्त्व में सभी को निहित मानता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि रेनेसां विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राजेश दीक्षित ने इस अवसर पर आधुनिक पीढ़ी को आदि शंकराचार्य के विचारों से सीख लेने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि हमें अपनी प्राचीन विरासत पर गर्व करना चाहिए। यदि हमने अपनी ज्ञान परंपरा की विरासत को संभाल कर नहीं रखा तो गौरवशाली भारत का इतिहास खो जाएगा।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता डॉ. विनायक पांडेय ने वैदिक सूत्रों और जगद्गुरू शंकराचार्य के जीवन के विविध प्रसंगों के द्वारा भारत की एकात्मकता पर अपने विचार रखें। उन्होंने कहा कि जगद्गुरू शंकराचार्य के विचार विश्व गुरु भारत राष्ट्र के विचार हैं। ये विचार जन-जन में भारतीय संस्कृति के बिंदुओं को स्थापित करते हैं।
कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन डॉ. पंकज विरमाल ने तथा धन्यवाद डॉ. भण्डारी ने किया। इस अवसर पर कॉलेज के प्राध्यापकों के अतिरिक्त अनेक शैक्षिक संस्थानों के प्राध्यापक, शोधार्थी और विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
1
Hello
Can we help you?