सीताराम अग्रवाल (वरिष्ठ पत्रकार)
मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी इन दिनों थोड़े नाजुक हालात से गुजर रही है। करीब 110 वर्ष पुरानी यह संस्था जिसका अतीत काफी उज्जवल व गौरवशाली रहा है, वह आज इस हालात में क्यों है, आइये विवेचन करते हैं। विवेचन करने से पहले मैं आपको एक बात स्पष्ट कर दूं कि लोग अक्सर मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी का मतलब सिर्फ मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी अस्पताल समझते हैं, जो सही नहीं है। कम्पनी एक्ट के तहत सोसाइटी एक रजिस्टर्ड संस्था है, जो बड़ाबाजार स्थित इस अस्पताल का भी संचालन करती है। इसके अलावा रानीगंज में एक अस्पताल, रांची में कई तरह की सम्पत्तियां (जिनका अनुमानित मूल्य कई सौ करोड़ रुपयों में हैं), लिलुआ में करोड़ों की जमीन (जिसमें कभी रसायनशाला हुआ करती थी, आज किस हालात में है, पता नहीं ), रवीन्द्र सरणी स्थित सोसाइटी अस्पताल के बगल वाली तथा सामने वाली इमारतें भी मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी की सम्पत्तियां है। मेरी छानबीन के दौरान यह भी पता चला कि कभी दार्जिलिंग में भी सोसाइटी की सम्पत्ति हुआ करती थी, पर समुचित ध्यान देने के अभाव में उसका क्या हुआ, पता नहीं। चूंकि यह कई दशकों पुरानी बात है, अत: यह कभी भी चर्चा का विषय नहीं रहा। कभी बड़ाबाजार में सोसाइटी की पूड़ी मिठाई की दुकान हुआ करती थी, जहां देशी घी में बनी चीजों को काफी सस्ते दामों में बेचा जाता था, जिससे तृप्त होकर आम जनता सोसाइटी का गुणगान किया करती थी। उस दूकान को सम्पत्ति समेत बेच दिया गया, पर बेचने का सटीक स्पष्टीकरण न देने की वजह से तत्कालीन प्रबंधन पर इसमें घपला होने का आरोप लगा था, जो आज भी कभी-कभी दबी जुबान से चर्चा का विषय हो जाता है। खैर मैं यहां आरोप- प्रत्यारोप पर जोर न देकर यह कहना चाहता हूं कि आज भी कई निष्पक्ष सामाजिक कार्यकर्ताओं का यह मानना है कि सोसाइटी की जितनी सम्पत्तियां हैं, यदि उनका प्रबंधन सही तरीके से पूर्ण निष्ठा के साथ किया जाय तो सोसाइटी को कोई अर्थाभाव नहीं होगा और उसे बड़ाबाजार तथा रानीगंज के अस्पतालों को सुचारू रूप से चलाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। परन्तु यदि वर्तमान प्रबन्धन को लगता हैं कि यह बात सही नहीं है, तो वह वास्तविक स्थिति का पूर्ण ब्यौरा देते हुए कम से कम एजीएम में सभी सदस्यों को वस्तुस्थिति से अवगत करा दे, ताकि अफवाहों को बल न मिले। सोसाइटी के वर्तमान मानद सचिव प्रह्लाद राय गोयनका द्वारा जारी की गयी सूचना के अनुसार आगामी 28 मार्च 2024 को नये पदाधिकारियों व कार्यकारिणी का चुनाव होने जा रहा है, अतः वर्तमान कमेटी द्वारा समयाभाव के कारण यह काम संभव न हो तो नयी कमेटी उसे करे।
अब मैं बड़ाबाजार स्थित मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी अस्पताल की स्थिति पर आता हूं। मैंने इस बारे में सोसाइटी के मानद अध्यक्ष गोविन्द राम अग्रवाल, मानद प्रधान सचिव प्रह्लाद राय गोयनका सहित अन्य कई वर्तमान व पूर्व पदाधिकारियों, कार्यसमिति के सदस्यों से बातचीत की। कार्यवाहक महाप्रबंधक प्रदीप शर्मा, डाक्टरों, नर्सों, वार्ड ब्लाय, स्वीपर, आफिस स्टाफ सहित रोगियों, उनके परिजनों समेत विभिन्न तबके के लोगों से मिल उनके विचार जाने। अस्पताल के कुछ विभागों के हालात देखें। कुछ कर्मियों में व्याप्त असंतोष को समझने की कोशिश की। अब आगे कुछ लिखने से पहले मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं। कोई भी संस्थान अच्छा या बुरा नहीं होता उसकी अच्छी या बुरी स्थिति के लिए पहले तो तत्कालीन प्रबंधन तथा कुछ अंश में कर्मचारी जिम्मेवार होते हैं। जहां तक सोसाइटी अस्पताल का सवाल है, इसका स्वरूप चैरिटेबल होने के कारण आज भी अन्य अस्पतालों की तुलना में यह सस्ते दरों पर चिकित्सा उपलब्ध कराता है, जिसका भरपूर फायदा गरीब तबके के साथ मध्यम वर्ग भी उठाता है। यहां के अधिकांश कर्मचारी कम तनख्वाह मिलने के बावजूद पूरी निष्ठा के साथ काम करते हैं। साथ ही यह भी सच है कि कुछ ऐसे कर्मचारी भी है, जो काम कम और पैसा अधिक उठाते हैं। इनमें से कई तो वेतन से दोगुना या तिगुना ओवर टाइम पा जाते हैं। अत: ऐसी स्थिति में ऐसे कर्मियों की कारगुजारी का खामियाजा सही ढंग से काम करनेवाले उन कर्मियों को भी उठाना पड़ता है, जो वास्तव में पूरी मेहनत से ओवर टाइम किये होते हैं। मजे की बात यह है कि ‘ अनैतिक ‘ कर्मियों की मिलीभगत कुछ पदाधिकारियों के साथ होती है, जिससे वे अपनी कारगुजारी को बखूबी अंजाम देते रहते हैं। ओवर टाइम पिछले कई सालों से इस अस्पताल की क्रोनिक समस्या है, जिस पर प्रबंधन ने शुरू से ही लगाम नहीं लगायी। अब कुछ कड़े कदम उठाये जा रहे हैं, जो असंतोष का कारण बन रहा है। इसी प्रकार ड्यूटी में आने- जाने के समय पर ही कर्मचारी को रजिस्टर में उसी समय पर हस्ताक्षर करने को नया निर्देश दिया गया है। हालांकि प्रबंधन का यह आदेश अस्पताल के हक में सही है, पर पिछले कई सालों से आने- जाने का हस्ताक्षर एक ही बार करने की पड़ी हुई आदत में बदलाव असंतोष का कारण बन रहा है। यहां एक बात उल्लेखनीय है कि इसके लिए वास्तव में दोषी वह होना चाहिये, जिसके जमाने में यह गलत परम्परा कायम हुई, परन्तु कर्मचारियों के गुस्से का ठीकरा उन पर फूट रहा है, जिन्होंने गलत परम्परा को सही करने का कदम उठाया है। इस बारे में जब मैंने गोविन्द राम जी से पूछा तो उनका कहना था कि गोयनका जी ने जो कदम उठाया है, वह सही है। इससे साफ जाहिर है कि भले ही यह गलत परम्परा अग्रवाल जी (जब वे मानद प्रधान मंत्री हुआ करते थे) के जमाने में पड़ी हो, पर किसी अन्य व्यक्ति ने स्वार्थवश शुरू की, जिस पर इनका ध्यान नहीं गया। किचन से घटिया क्वालिटी का खाना परोसे जाने की शिकायत पिछले कुछ समय से रोगियों द्वारा की जा रही थी, इस बारे में गोयनका जी ने बताया कि कि पहले जिसके हाथ में था, उसे हटाकर वह स्वयं इस पर ध्यान दे रहे हैं। अब बाकायदा डाईट चार्ट बनाकर रोगियों को खाना दिया जा रहा है। ब्लड बैंक से अधिकांश लोगों को ब्लड न मिलने की शिकायत पर अग्रवाल जी ने बताया कि ब्लड डोनेशन कैम्पों की संख्या कम होना इसका प्रमुख कारण है। उन्होंने इन- दिनों आईसीयू, आईटीयू व एचडीयू जैसे विभागों मे कोई न कोई विभाग बंद रहने के पीछे रोगियों का अभाव बताया। यह पूछे जाने पर कि सोसाइटी द्वारा संचालित दवा दुकान के संचालन में क्या सोसाइटी के किसी पदाधिकारी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी है, श्री अग्रवाल ने कहा- नहीं। दूरदराज के क्षेत्रों में सोसाइटी द्वारा लगाये जानेवाले कैम्पों में कुछ बिचौलियों द्वारा गरीब ग्रामीणों से पैसा वसूली के बारे में श्री अग्रवाल का कहना था- हमारे संज्ञान में कभी आया नहीं। स्टोर में माल की खरीद- बिक्री तथा समय- समय पर स्टाक मिलान में और अधिक पारदर्शिता लायी जानी चाहिये, ताकि कहीं भी अवैध रूप से माल निकासी न हो; से संबंधित प्रश्न पर अग्रवाल जी ने कहा कि पूरा ध्यान रखा जाता है। जरूरत पड़ी तो और अधिक पारदर्शिता अपनायी जायेगी।
यह पूछे जाने पर कि अस्पताल के सामने और बगल में जो इमारतें हैं, उनका समुचित उपयोग न होने के कारण सोसाइटी को काफी नुकसान हो रहा है, गोविन्द राम जी ने निराशा के भाव में कहा- कार्यकर्ताओं का अभाव है। पर अग्रवाल जी की इस बात से कई लोग इत्तेफाक नहीं रखते। इन लोगों का कहना है कि समर्पित कार्यकर्ताओं का अभाव नहीं है। पर यदि उन्हें ठीक से काम न करने दिया जाय या फिर कुछ स्वार्थी पदाधिकारियों की हां में हां नहीं मिलानेवालों को मौका खोज – खोज कर बेइज्जत किया जाय तो फिर कोई भी ईमानदार कार्यकर्ता कैसे टिकेगा। ऐसे लोगों का कहना है कि सोसाइटी में ऐसा ही होता आया है। कार्यकारिणी में सही मुद्दे उठाने नहीं दिये जाते। यदि कोई बोलने की कोशिश करता है, तो स्वार्थी गुट हल्ला करके या तो उसे चुप करा देता है या फिर उस पर अनर्गल आरोपों की झड़ी लगा देता है। यहां तक कि मार पीट तक कि नौबत आ जाती है। उसे जो विभाग दिया जाता है, उसमें उसे ठीक से काम करने नहीं दिया जाता है। अत: कोई भी व्यक्ति किसी मानद पद पर, जहां अर्थ प्राप्ति का कोई सवाल ही नहीं है उल्टे अपनी पाकेट से कुछ न कुछ खर्च ही होता है, क्यों जायेगा, जहां सम्मान मिलना तो दूर, उल्टे बेइज्जत किया जाता हो। अब इन बातों में कहां तक सच्चाई है, इसका सटीक उत्तर तो गोविन्द राम अग्रवाल या उनकी टीम के लोग ही दे सकते हैं। वैसे यह तथ्य है कि श्री अग्रवाल ने पिछले तीन दशक से मानद प्रधान मंत्री के रूप में सोसाइटी की सेवा की है तथा अभी भी गत एक वर्ष से वे मानद अध्यक्ष के रूप में सेवा कर रहे है। अधिक उम्र व कभी-कभी खराब स्वास्थ्य भी उनके इस काम में बाधक नहीं बन पाया। निरन्तर औसतन रोजाना करीब 4 घंटे सोसाइटी को देना कोई मामूली बात नहीं है। अत: कुछ कहते समय इस पहलू को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
मित्रों, आजकल स्वार्थपरक इस माहौल में किसी भी संस्था में सच्चे समर्पित कार्यकर्ता की हालत उस तेजपत्ते की तरह होती है, जिसे सब्जी बनाते समय सबसे पहले डाला जाता है और बनने के बाद खाते समय सबसे पहले उसे ही फेंका जाता है। पर हालात चाहे जो हो, हमें आशावादी रहना चाहिये, तभी सामाजिक संस्थाएं सही अर्थों में उन्नति कर पायेगी। यदि किसी सामाजिक संस्था में कोई व्यक्ति शीर्ष पद पर वर्षों से कुंडली मार कर सिर्फ इसलिए बैठा है कि वह उस संस्था की करोड़ों की सम्पत्ति धीरे-धीरे आत्मसात करता रहे, तो ऐसे लोगों के लिए मेरी एक नेक सलाह है। देखिये कोई
भी व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि उसके कर्म अच्छा या बुरा होते हैं। अत: भलाई इसी में है कि आप रत्नाकर की भूमिका छोड़ कर बाल्मीकि बन जाओ। कहने का अर्थ यह है कि अब तक जो लूटा- खसोटा, उसे छोड़ कर सही मायने में सेवा कार्य करो। लूट का जो भी पैसा बचा हो, उसे उसी संस्था मे वापस लगा दो। याद रखिये पाप की इस कमाई का उपयोग तो आपके घरवाले कर लेंगे, पर आपके पाप के भागीदार नहीं बनेंगे। हो सकता है, सही राह अपनाने के सिलसिले में बात उजागर होने पर आपको कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़े, फिर भी आपके दिल पर पड़ा पाप का बोझ हल्का होगा । आप अपनी नजर में उंचे हो जायेंगे। रात को शांति से अच्छी नींद आयेगी और यदि आपने बाल्मीकि जैसा कुछ कर दिया तो पौ बारह। फिर आपके रत्नाकर वाले रूप को कोई भी याद नहीं करेगा। मुझे जो सलाह देनी थी, दे दी। मानना न मानना आपकी मर्जी। पर एक बात याद रखियेगा। अगर किसी दूसरे ने आपका मुखौटा उतारा तो फिर आपका हाल उन जैसा होगा, जो कभी रुपयों के पहाड़ पर सोते थे, आज जमीन पर सो कर जेल की सूखी रोटी खा रहे हैं। खैर, वे तो राजनीतिज्ञ हैं, जिनकी चमड़ी मोटी होती है। पर आप तो सफेदपोश धार्मिक व दानदाता का मुखौटा लगाये हुए हो और पतली चमड़ी वाले हो, कष्ट सह पाओगे तो !
नोट- आलेख बड़ा हो जाने के कारण सोसाइटी व अस्पताल के कई प्वाइंटों को कवर नहीं कर पाया। अत: इस पर फिर कभी