ममता बनर्जी के लिए उपलब्धियों से भरा रहा साल 2021

 

कोलकाता : कोरोना की असहनीय पीड़ा और कई कटु यादें देकर लौट रहा वर्ष 2021 भले ही कई मामलों में पूरी दुनिया के लिए अभिशाप रहा हो लेकिन बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य के लिए बेहद खास रहा है। खासकर सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए। अग्नि कन्या के उपनाम से जानी जाने वाली इस लड़ाकू नेत्री के लिए वर्ष 2021 उनके जीवन का सबसे सुखद साल रहा है क्योंकि इस बार उनके द्वारा स्थापित पार्टी तृणमूल राज्य में न केवल तीसरी बार सबसे बड़ी जीत हासिल करने में सफल रही बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी पार्टी का चार राज्यों में विस्तार हुआ है।

37 साल पहले एक गैर राजनीतिक परिवार से बिना वित्तीय समर्थन मैदान में कूदी 29 वर्षीय युवा कांग्रेस नेत्री के रूप में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के राजनीतिक मानचित्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी जब उन्होंने माकपा के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त दी थी। तब से लेकर आज तक सफेद साड़ी, हवाई चप्पल और सामान्य से जीवन जीने वाली इस महिला ने लगभग अकेले ही अपने दम पर इस अति राजनीति वाले राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है।
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महज 23 सालों में तृणमूल का सुनहरा सफर
– दिसंबर 1997 में कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस का गठन करने वाली ममता बनर्जी के तेवर इतने लड़ाकू थे कि उस समय के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने उनका साथ दिया और पार्टी में शामिल हो गए। महज एक दशक की राजनीतिक यात्रा में ही पार्टी ने राज्य में 33 सालों तक शासन करने वाली अति शक्तिशाली वाममोर्चा सरकार को 2011 में उखाड़ फेंका था। यह उनके जीवन की पहली सबसे बड़ी खुशी थी। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी ने महज दो सीटों से बढ़कर राज्य की 42 में से 18 सीटों पर कब्जा जमा लिया था तब ऐसा लग रहा था जैसे 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता को सत्ता से बेदखल कर देगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वैश्विक पटल पर दिग्गज नेताओं में शामिल नरेन्द्र मोदी से लेकर अमित शाह तक और राजनाथ सिंह से लेकर जेपी नड्डा तक, भाजपा के बड़े-बड़े धुरंधरों ने अपनी पूरी ताकत लगा ली लेकिन 2021 में ममता ने सभी को अपने दम पर ऐसी धूल चटाई कि 50 दशक पहले अपने स्थापना काल से लेकर आज तक बंगाल में सत्ता हासिल करने के भाजपा के सबसे बड़े सपने को आने वाले 1एक दशक के लिए धुलिसात कर दिया है।
इतना ही नहीं इसी साल अप्रैल-मई महीने में संपन्न हुए इस बहुचर्चित चुनाव में 294 में से 213 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली तृणमूल राज्य के इतिहास में अब तक सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली पार्टी बनी। उसके बाद सितंबर से अक्टूबर के बीच हुए उपचुनाव में तीनों सीटें भी जीतने में सक्षम रही है।
उसके बाद दिसंबर महीने के अंतिम सप्ताह में संपन्न हुए कोलकाता नगर निगम चुनाव में भी 90 फ़ीसदी से अधिक सीटें जीतकर तृणमूल ने रिकॉर्ड कर दिया है। तृणमूल कांग्रेस के स्थापना के महज 23 साल बीते हैं और वर्ष 2021 ममता के लिए राजनीतिक उपलब्धि का ऐसा साल रहा कि आज वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोम, जर्मनी, फ्रांस, ईटली, नेपाल समेत अन्य देशों से वैश्विक मंच पर संबोधन के लिए आमंत्रित हो रही हैं।
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चार राज्यों में मजबूत राजनीतिक अस्तित्व वाली पार्टी बनी तृणमूल
– इसके अलावा इसी साल गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुइजिन्हो फलेरियो, मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा, असम की दिग्गज कांग्रेस नेत्री देवस्मिता देव और त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी रही कांग्रेस के सभी प्रमुख विधायकों ने तृणमूल कांग्रेस की सदस्यता ले ली है। कुल मिलाकर कहें तो आज बंगाल में सत्ता हासिल करने के साथ ही तृणमूल कांग्रेस त्रिपुरा, असम, मेघालय और गोवा में मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई है जो भारत की कोई भी दूसरी क्षेत्रीय पार्टी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नहीं कर पाई है। देश को आजादी दिलाने वाली सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के सामने एक अकेली महिला ने 2021 में अपने राजनीतिक सफर का सबसे ऊंचा मुकाम हासिल किया है।
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भाजपा को मायूस करने वाला रहा साल

– ठीक इसी तरह से भारतीय जनता पार्टी के लिए यह साल मायूस करने वाला रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतने के बाद 2021 की शुरुआत में भाजपा बंगाल में एक ऐसी ताकत के रूप में खड़ी थी जो ममता बनर्जी के शासन को उखाड़ फेंकने के करीब थी। शुभेंदु अधिकारी जैसे ममता के सदियों पुराने विश्वासपात्र को पार्टी अपने खेमे में करने में सक्षम रही थी। तृणमूल के कई बड़े नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ले ली थी और ऐसा लग रहा था जैसे इस बार सत्ता परिवर्तन तय है लेकिन ऐसा हुआ नहीं। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की नींव रखी, उनके राज्य में राजनीतिक शक्ति हासिल करने की कवायद में जुटी भारतीय जनता पार्टी को विधानसभा चुनाव में करारा झटका लगा और पार्टी महज 77 सीटों पर सिमट गई। उनमें से भी पांच विधायक तृणमूल कांग्रेस में वापस जा चुके हैं।
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अपनी हार के रूप में ममता के लिए भी यादगार रहेगा साल
– ऐसा नहीं है कि वर्ष 2021 केवल भारतीय जनता पार्टी के लिए झटका रहा है बल्कि ममता को भी हल्का झटका दे गया है। भले ही इस साल वह राजनीतिक तौर पर देश की सबसे मजबूत नेत्री के तौर पर उभरी हैं लेकिन अपने ही राज्य में उनके राजनीतिक जीवन की सबसे अहम जगह नंदीग्राम से उन्हें हार का भी मुंह देखना पड़ा। वह भी अपने ही सिपहसालार शुभेंदु अधिकारी के हाथों। ममता के राजनीतिक जीवन में राजनीतिक ताकत हासिल करने वाले आंदोलनों में से सबसे महत्वपूर्ण नंदीग्राम आंदोलन वाली जगह से इस बार विधानसभा चुनाव में ममता अपने कैबिनेट के पूर्व सहयोगी शुभेंदु से हार गई थीं। हालांकि ममता की यह व्यक्तिगत हार उन्हें राष्ट्रीय पटल पर सबसे ताकतवर नेता के रूप में उभारा है। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए ममता आज विपक्ष का मुख्य चेहरा नजर आ रही हैं। इस मौके को भी वह बखूबी समझती हैं इसलिए वह बंगाल से बाहर खासकर उन भाजपा शासित राज्यों में तृणमूल की ताकत विस्तार कर रही हैं जहां विपक्ष कमजोर है।
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प्रशांत किशोर की भी भूमिका बड़ी
– साल 2021 में बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने और राष्ट्रीय स्तर पर ममता को उभारने में राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की भी भूमिका बड़ी रही है। उन्होंने बंगाल में बिहार वाली जातिगत, भाषागत और क्षेत्रवार राजनीति का बीज बोया जिसकी वजह से विधानसभा चुनाव में भाजपा बंगाल के मूल निवासियों के बीच बाहर वालों की पार्टी बनकर रह गई। इसके अलावा उन्होंने तृणमूल छोड़ने वाले दिग्गज नेताओं की घरेलू राजनीति को भी ममता सरकार के बेहतरीन कार्यों को लोगों तक पहुंचा कर नाकाम किया। यह प्रशांत किशोर की रणनीति ही है कि चुनाव संपन्न होने के बाद तृणमूल कांग्रेस के साथ देश भर के दिग्गज नेता जुड़ रहे हैं जिनमें कांग्रेस,भाजपा और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के कद्दावर नेता शामिल रहे हैं। हाल ही में तृणमूल कांग्रेस में पवन वर्मा को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी मिली है जो जदयू के बहुचर्चित नेता रहे हैं।
कुल मिलाकर देखें तो 2021 साल ममता के लिए ऐसा रहा है कि वह राज्य में कहीं भी कमजोर नजर नहीं आई हैं और हर चुनाव में भाजपा को करारी शिकस्त देकर लगातार ताकतवर होकर उभरी हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी बंगाल में खुद को स्थापित करने से अपने बहुप्रतीक्षित सपने से दूर हुई है।

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