खुल गया राज! क्यों दिया धनखड़ ने त्यागपत्र

 

देश में इस समय उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रक्रिया अंतिम चरण में है। 9 सितम्बर को मतदान है। उस दिन देश को नया उपराष्ट्रपति मिल जायेगा। सत्ताधारी राजग ने सी.पी. राधाकृष्णन को तथा विपक्षी गठबंधन ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने इस बार प्रार्थी के चयन में दूध का जला छाछ भी पीने में फूंक-फूंक कर कदम उठाने वाली कहावत चरितार्थ की है। निवर्तमान उपराष्ट्रपति के चयन में हुई ‘ गलती ‘ को सुधारते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले तथा लम्बे अर्से तक भाजपा के साथ रहे राधाकृष्णन को चुना है। वैसे तो संख्या बल के हिसाब से राजग का पलड़ा भारी है। परन्तु आजकल राजनीति के खेल बड़े निराले हैं। ऊंट कब किस करवट बैठ जाय, कहना मुश्किल है और परिणाम कुछ भी हो सकता है। वैसे तो इस चुनाव से आम जनता का प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना-देना नहीं है और ना ही अतीत में कभी यह चुनाव दिलचस्पी या चर्चा में रहा है। इसके मतदाता भी संसद के दोनों सदनों अर्थात लोकसभा व राज्यसभा के सदस्य होते हैं। पर इस बार का चुनाव राजनीतिक हल्कों के अलावा आम जनता में काफी चर्चित है तथा मीडिया में सुर्खियाँ भी बटोर रहा है। मजे की बात यह है कि इसका मुख्य कारण चुनाव नहीं बल्कि वह कारण है, जिसके फलस्वरूप यह चुनाव समय से बहुत पहले हो रहा है। वह है- जगदीप धनखड़ द्वारा गत 21 जुलाई को सबको चौंकाते हुए अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना। तबसे इस त्यागपत्र को लेकर मीडिया विशेषकर सोशल मीडिया में तरह-तरह के कयास सामने आये हैं, पर मैं कुछ तथ्यों के साथ आपके सामने इस्तीफे के कारण पर प्रकाश डालना चाहता हूं।
सबसे पहले इस्तीफा के उस मज़मून पर चर्चा, जिसमें धनखड़ ने कहा है कि स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वे त्यागपत्र दे रहे हैं। पर यह बात किसी के भी गले नहीं उतर रही कि जिस शख्स ने उस दिन अर्थात 21 जुलाई को सारे दिन राज्यसभा के सभापति के रूप में अपनी भूमिका सक्रिय रुप से निभायी हो, शाम होते ही अचानक तबियत इतनी ज्यादा खराब हो गयी कि रात तक इस्तीफा ही देना पड़ जाय। थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाय कि ऐसा हो गया तो या तो वे डाक्टर को दिखा कर आराम करते या फिर अस्पताल में भर्ती होते। इस्तीफा क्यों। इस घटना के बाद यह लेख लिखे जाने तक न तो वे सार्वजनिक तौर पर सामने आये हैं और ना ही किसी भी रूप में अपने इस्तीफे की व्याख्या की है। हां उन्होंने अपना सरकारी आवास खाली कर अस्थायी रूप से एक फार्म हाउस में रहने चले गये है। इसके अलावा उन्होंने राजस्थान में बतौर विधायक पेंशन पाने के लिए आवेदन किया है, जिसके वे हकदार हैं। परन्तु सार्वजनिक तौर पर सामने न आने के फलस्वरूप तरह-तरह की अफवाहें फैल रही है तथा त्यागपत्र के कारणों पर कयास लगाये जा रहे हैं। कोई कहता है कि इनकी कुछ गतिविधियाँ सरकार को परेशानी में डाल रही थीं। इसलिये इनसे इस्तीफा देने को कहा गया। कोई कहता है कि जयपुर के पास करोड़ों की लागत से मालूम बनवाने में व्यस्त हैं तो कोई कहता है कि घर में आराम कर रहे हैं तथा टेनिस वगैरह खेल कर समय बिता रहे हैं। त्यागपत्र देने की 21 तारीख को ही दिन में करीब 12.30 बजे कुछ विशेष मुद्दों पर आयोजित बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक की इन्होंने अध्यक्षता की, जिसमें सरकार की ओर से किरण रिजुजू तथा जे पी नड्ढा भी मौजूद थे। कोई निर्णय न होने के कारण यह बैठक अपराह्न 4.30 बजे पुनः बुलायी गयी, पर आश्चर्यजनक रूप से सत्ता पक्ष के ये दोनों सज्जन नहीं आये। तभी लोगों को यह महसूस हो गया था कि कुछ गड़बड़ है। किसी ने कहा कि कांग्रेसी सांसद कपिल सिब्बल के साथ मिलकर ये ‘ षड़यंत्र ‘ कर रहे थे तथा उसी दिन जस्टिस वर्मा के खिलाफ विपक्ष समर्थित महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा में स्वीकार कर लेना चाहते थे, जबकि सरकार कुछ अनिवार्य कारणों से पहले इसे लोकसभा में लाना चाहती थी। अतीत में इनके कुछ बयानों ने मोदी सरकार की किरकिरी की थी। पर सत्ता पक्ष सहन किये जा रहा था। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाकर इन्होंने उसे सुप्रीम संसद तक कह डाला। केजरीवाल को बुला कर उनसे मिलने और उन्हें चन्द्रबाबू नायडू से भेंट करने की सलाह देने जैसी बातें भी प्रकाश में आयीं। सूत्रों के अनुसार उस दिन (21 जुलाई को) इन्तहां हो गयी थी। चूंकि दूसरे दिन प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर जानेवाले थे और धनखड़ ने दिन में ही करीब 4 बजे 22 जुलाई को जयपुर में आयोजित होनेवाले एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति के रूप में उपस्थित रहने की अधिकृत स्वीकृति दे दी थी। अत: सरकार को भय हुआ कि कहीं वहां जाकर कोई ऐसी बात न कह दें , जो सरकार के गले की फांस बन जाये। अतः इन्हें और समय न देते हुए तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने को कह दिया गया, ताकि मोदी निश्चिंत होकर विदेश यात्रा कर सकें और सरकार किसी अनावश्यक परेशानी में पड़ने से बच जाय। ये सारी बातें मीडिया में आ चुकी हैं। मैने तो इन जानकारियों से अनभिज्ञों को सिर्फ बताने के लिए हवाला दिया है। आगे मैं उन बातों पर प्रकाश डालूंगा, जो अभी तक मेरी नजर में कहीं भी सामने नहीं आयी हैं और मेरे अनुसार इस्तीफा का कारण हैं।


मूल बात कहने से पहले मैं कुछ पृष्ठभूमि बताना चाहूँगा, ताकि मेरी बात को आप समझ पायें। जहां तक स्वास्थ्य का सवाल है, ये बीच-बीच में अस्वस्थ होते रहे हैं। पिछले मार्च में ही एम्स में भर्ती भी हुए थे। पर किसान परिवार व जाट समुदाय में राजस्थान की वीर धरती पर 1951 में पैदा हुआ यह लाल अपनी हिम्मत के बल पर किसी भी शारीरिक अस्वस्थता से जूझ लेता है। इनका विवाह 1979 में सुदेश धनखड़ से हुआ। ग्रामीण परिवेश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय वनस्थली विद्यापीठ से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर डा. सुदेश धनखड़ सामाजिक कार्यों, जैविक खेती, बाल शिक्षा वगैरह में गहरी रूचि रखती हैं। अपने से करीब 5 वर्ष छोटी धर्मपत्नी को जगदीप धनखड़ न सिर्फ बेहद प्यार करते हैं, बल्कि जटिल मसलों पर उनकी राय का सम्मान भी करते हैं। पत्नी का किसी भी रूप में अपमान हो, वे कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते। राजस्थान विश्वविद्यालय से 78-79 में एलएलबी पास करने के बाद जगदीप धनखड़ ने वकालत शुरू की। हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में अपना सिक्का जमाया। तर्क शक्ति असाधारण थी। कहते हैं अभिनेता सलमान खान को एक जटिल मामले में इन्होंने काफी राहत दिलायी थी। बताया जाता है कि गुजरात सरकार के खिलाफ एक मामले में इनकी अकाट्य तर्क शक्ति से अमित शाह की नजरों में ये चढ़ गये थे। वैसे शुरू में राजनीतिक गलियारे में इनका प्रोफाइल कोई खास नहीं रहा। 1989 में अपने गृह जिले झुंझनूं से लोकसभा के लिए चुने गये। 90-91 में चन्द्रशेखर सरकार में मंत्री रहे। 93-98 में राजस्थान में विधायक रहे। ये पहले जनता दल, बाद में कांग्रेस तथा अन्तोतगत्वा भाजपा में आये। इनका अचानक उत्थान तब हुआ, जब इन्हें बंगाल का राज्यपाल बनाया गया। इस पद पर ये 30 जुलाई 2019 से 18 जुलाई 2022 तक रहे। इस अवधि की एक घटना बताता हूं। ममता सरकार गत कुछ वर्षों से दुर्गा पूजा कार्निवल कर रही है। दसमी को मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के बाद रेड रोड (कोलकाता ) पर अत्यंत भव्य एवं आकर्षक कार्यक्रम में प्रायः सभी प्रमुख पंडालों की प्रतिमाओं की झांकियां निकाली जाती हैं, जिसमें मुख्य रूप से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उपस्थित रहती हैं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में राज्यपाल धनखड़ सपत्नीक उपस्थित थे। मैं प्रति वर्ष इस कार्यक्रम को पत्रकार के रूप में कवर करने जाया करता हूं। उस दिन भी मौजूद था। पूरे कार्यक्रम को जगह- जगह लगे विशाल परदों पर दिखाया जाता है। मैंने उस दिन पाया कि राज्यपाल के आगमन के शुरुआती कुछ समय को छोड़ कर उनका चेहरा दिखायी नहीं पड़ा, जबकि मुख्यमंत्री का चेहरा बार-बार दिखाया जा रहा था। पत्रकारिता के लम्बे अनुभव के कारण यह बात मुझे खटक रही थी, क्योंकि संवैधानिक व्यवस्था के तौर पर राज्यपाल का पद मुख्यमंत्री से ऊंचा होता है, भले ही प्रशासनिक रूप से मुख्यमंत्री कितना ही बलशाली क्यों न हो। मैंने यह बात पास ही बैठे सूचना व संस्कृति विभाग के एक अफसर से पूछा कि राज्यपाल चले गये हैं क्या? वे भी उत्तर नहीं दे पाये। बाद में पता चला कि वे सपत्नीक मौजूद थे और एक तरह से उनका बायकाट किया गया था। अब यह जान बुझ कर किया गया था या फिर कोई तकनीकी गड़बड़ी थी, यह पता नहीं, पर इतना जरूर कह सकता हूं कि इसके बाद ममता सरकार पर धनखड़ के प्रहार काफी तेज हो गये थे। बताया जाता है कि राज्यपाल की नजर में उस दिन उनकी धर्मपत्नी भी अपमानित हुई थी, जिसे वे बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। इसके बाद धनखड़ को मोदी ने एक लम्बी छलांग लगवा दी और सीधे उपराष्ट्रपति पद पर बिठवा दिया। हालांकि ममता, उनके मंत्री तथा टीएमसी पार्टी ने सीधे आरोप लगाया कि तृणमूल सरकार को दिनरात परेशान करने के ईनाम स्वरूप केन्द्र ने धनखड़ को यह पद दिया है। टीएमसी ने तो धनखड़ को राज्यपाल की जगह ‘ पद्दोपाल ‘ कहना शुरू कर दिया था। कमल को बंगला मे पद्दो कहा जाता है अर्थात धनखड़ को एक तरह से भाजपाई कहा जाने लगा था। उन्होंने 11 अगस्त 2022 को उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली तथा बीच में ही गत 21 जुलाई को त्यागपत्र देकर चलते बने। बताया जाता है कि इस पद पर रहते हुये एक बार उन्होंने सरकारी खर्च पर अपनी पत्नी का जन्मदिन मनाया था, जिसकी दबे जबान से आलोचना भी उन्हें सहन नहीं हुई। युवराज चार्ल्स के महाराज बनने के समारोह में भी ये सपत्नीक ब्रिटेन गये थे। एक बात और। श्री धनखड़ प्रचार-प्रसार के बड़े शौकीन हैं। इसके लिए वे हमेशा कुछ न कुछ करते रहते थे और ऐसा करते वक्त उनसे ‘गलतियाँ ‘ भी हो जाती थी या फिर कुछ ऐसा हो जाता था, जो सरकार के लिए असहज हो जाता था। एक बार उन्होंने केन्द्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में ही एक समारोह में कह डाला कि सरकार किसानों की भलाई के लिए क्यों नहीं कुछ करती। वे बीच बीच में कुछ ऐसी मांगें भी कर देते, जिसे पूरा करना सरकार के लिए संभव नहीं होता।
अब मैं एक अन्य घटना बताता हूं। धनखड़ के एक बहुत पुराने मित्र है। नाम है- जगदीश चन्द्रा। दोनों में 50 वर्षों से भी अधिक समय से पहचान है। दोनों ने एक कार्यक्रम में इसे स्वीकार भी किया है। धनखड़ का कहना है कि जब भी मुझे बात करने की इच्छा होती तो मैं जगदीश के जयपुर स्थित आवास पर चला जाता तथा उनके पीछे वाले गार्डेन में बैठ कर हम लोग बातें करते रहते। गत 1 दिसम्बर 2024 की बात है। श्री चन्द्रा के नेशनल न्यूज चैनल में वुमेन एम्पावरमेंट पर एक कार्यक्रम था। मुख्य अतिथि जगदीप धनखड़ थे। साथ में धर्मपत्नी भी मौजूद थीं। इस अवसर पर श्री चन्द्रा ने कहा कि श्री धनखड़ हर कार्य में अपनी पत्नी को आगे रखते हैं। इसलिये वुमेन एम्पावरमेंट के वे सबसे बड़े ब्रांड एम्बेसेडर हैं। श्री धनखड़ ने कहा- मैं जगदीश चन्द्रा को 50 सालों से जानता हूँ। ये हर साल जवान होते जा रहे हैं। उन अरबपतियों को, जो अपनी उम्र पर कन्ट्रोल रखना चाहते हैं, उन्हें श्री चन्द्रा को गुरू बना लेना चाहिए। इस घटना से धनखड़ का पत्नी के प्रति अथाह प्रेम व विश्वास की झलक मिलती है।
अब लौट आइये 21 जुलाई पर। उस दिन जब दिन भर के घटनाक्रम से परेशान धनखड़ ने सायंकाल थोड़ा सोचना शुरू किया तो पत्नी को अपनी मनःस्थिति बताते हुए सलाह मांगी । पत्नी ने सपाट शब्दों में कहा- क्यों किसी की बातों पर विचार कर अपनो बुढ़ापो खराब करनो। आपाने अब के चाहिये। महत्वाकांक्षा की बात को अब कोई मायने कोनी। सरकार से ऐसो संबंध कोनी कि राष्ट्रपति बना देवे। और दूजा में ऐसी कोई ताकत नहीं। बाद बाकी पिसा (धन) को तो कोई सवाल कोनी। एक ही बेटी है, जो ब्याही गयी। अपने पास भगवान का दिया बहुत कुछ है। फिर बेकार में टेंशन क्यूँ लेनो। थारी तबियत भी खराब चाले है। टेंशन में और खराब होगी। कुछ उल्टी बात हो गयी तो सरकार भी परेशान कर सके है। तो मेरे विचार में चुपचाप त्यागपत्र देने में ही भलाई है। बाद बाकी थाने (आपको) जो चोखो लागे, वा करो। अब धनखड़ को एक रास्ता मिल गया था। पर पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए पत्नी की सलाह पर किसी से विचार भी नहीं कर सकते थे। मोदी से मिलना संभव नहीं था। अत: और कोई उपाय नहीं देख कर बिना किसी प्रोटोकॉल के राष्ट्रपति भवन पहुँचे। शायद इस आशा में कि महिला होने के नाते उनकी पत्नी की सलाह पर राष्ट्रपति से कोई मार्गदर्शन मिले। वहां क्या हुआ , पता नहीँ। परन्तु श्री धनखड़ ने अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को सौंपा। साथ ही एक अनहोनी करते हुए मीडिया में अपना इस्तीफा सर्कुलेट भी कर दिया और अन्तर्धान हो गये। यह लेख लिखे जाने तक उनके बारे में कोई अधिकृत जानकारी नहीं है। इसने अफवाहों को भी जन्म दिया है। सबसे ज्यादा चिन्तित तो वह विपक्ष है, जिसने गत वर्ष 10 दिसम्बर को उपराष्ट्रपति धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था। विपक्ष ने तो यहां तक आरोप लगा डाला था कि सरकार ने उन्हें गृहबन्दी बना रखा है या फिर वे लापता हो गये हैं। अतः सरकार उनकी तलाश कर सही जानकारी दे। मजे की बात यह है कि सरकारी तौर पर औपचारिक ही सही, कोई बिदायी समारोह नहीं किया गया। हां, विपक्ष इसके लिए काफी उत्साहित है, पर श्री धनखड़ की ओर से स्वीकृति का कोई संकेत नहीं है। अब या तो देर -सबेर सच्चाई सामने आ सकती है या फिर कतिपय अनिवार्य कारणों से फिलहाल इस पर पर्दा ही पड़ा रह सकता है। बात चाहे जो हो, ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वे जहां कहीं भी हों, स्वस्थ रहें, खुशहाल रहें। मित्रों मैने श्री धनखड़ के त्यागपत्र के कारण के बारे में जो कुछ भी कहा, वह कुछ कड़ियों को जोड़ कर पत्रकारिता के 51 वर्षों के अनुभव के आधार पर है। हर किसी बात का सबूत नहीं होता। अत: आप चाहें तो इसे कयास भी मान सकते हैं, क्योंकि वास्तविकता तो स्वयं जगदीप जी धनखड़ ही बता सकते हैं या फिर उनके अत्यंत कोई करीबी।

वरिष्ठ पत्रकार सीताराम अग्रवाल

सम्पर्क- 7980288763
Email- sragcal@gmail.com
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