बर्धमान यूनिवर्सिटी घोटाला : हेराफेरी मामले में पूर्व कुलपति निमाईचंद्र साहा को सीआईडी का समन

 

कोलकाता, 18 जून ।बर्धमान विश्वविद्यालय के बैंक खातों से लगभग ₹1.93 करोड़ की वित्तीय गड़बड़ी के मामले में पश्चिम बंगाल सीआईडी ने विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. निमाईचंद्र साहा को पूछताछ के लिए तलब किया है। इस फर्जीवाड़े में विश्वविद्यालय के वित्तीय अधिकारियों के हस्ताक्षर और सलाह पत्र (एडवाइज़्ड नोट) की नकल कर फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़कर पैसे निकालने का आरोप है।

बुधवार सुबह सीआईडी की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, यह वित्तीय अनियमितता डॉ. निमाईचंद्र साहा के कार्यकाल के अंतिम चरण में सामने आई। उस समय विश्वविद्यालय के तीन फिक्स्ड डिपॉजिट खातों से ₹1.93 करोड़ की राशि निकाल ली गई थी। फाइनेंस ऑफिसर और रजिस्ट्रार के फर्जी हस्ताक्षर कर फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़े गए और राशि को दूसरे बैंक खातों में स्थानांतरित कर दिया गया।

इस घोटाले की शुरुआत वर्ष 2024 में हुई, जब बर्धमान के एक सरकारी बैंक में ₹21.55 लाख के फिक्स्ड डिपॉजिट को तोड़ने की कोशिश की गई। बैंक अधिकारियों को हस्ताक्षर की पुष्टि करते समय संदेह हुआ और उन्होंने पाया कि विश्वविद्यालय की ओर से ऐसा कोई एडवाइज़्ड नोट जारी ही नहीं किया गया था। इसके बाद बैंक प्रबंधन ने बर्धमान थाने में एफआईआर दर्ज कराई।

इस सूचना के आधार पर विश्वविद्यालय ने अन्य बैंकों से भी अपने खातों की स्थिति की जानकारी मांगी। तब यह सामने आया कि जेलखाना मोड़ स्थित एक शाखा से तीन फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़कर ₹1.93 करोड़ की राशि निकाल ली गई है। इसके बाद तत्कालीन रजिस्ट्रार सुजीत कुमार चौधुरी ने पुलिस में शिकायत दी। मामला सीआईडी को सौंपे जाने के बाद कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया।

एक अधिकारी के अनुसार, अब इस मामले में पूछताछ के लिए पूर्व कुलपति डॉ. निमाईचंद्र साहा को बुधवार सुबह 10:30 बजे तक बर्धमान स्थित सीआईडी कार्यालय में उपस्थित होने के लिए कहा गया है।

इस मामले को लेकर सत्तारूढ़ और विपक्षी छात्र संगठन भी मुखर हो गए हैं। एसएफआई की पूर्व बर्धमान जिला सचिव ऊषषी राय चौधुरी ने कहा, “हम शुरू से इस मुद्दे पर आंदोलन कर रहे हैं। केवल पूर्व कुलपति ही नहीं, जो भी इसमें शामिल हैं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए।” तृणमूल छात्र परिषद के विश्वविद्यालय यूनिट अध्यक्ष आकाश गड़ाई ने भी दोषियों को सख्त सजा देने और विश्वविद्यालय की राशि वापस लाने की मांग की है।

इस घोटाले को उजागर करने वाले विश्वविद्यालय के पूर्व सहायक रजिस्ट्रार देबमाल्य घोष ने सवाल उठाया कि क्या कुलपति की जानकारी के बिना इतनी बड़ी रकम निकाली जा सकती है? उन्होंने यह भी कहा कि अगर जांच ठीक से हो तो कई और वित्तीय अनियमितताएं उजागर हो सकती हैं।

 

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