
पिछले दिनों महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा को मिली शानदार जीत के बाद दिल्ली के पार्टी मुख्यालय में आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कांग्रेस को परजीवी पार्टी यानी कि दूसरी पार्टियों के वोटों पर जीतने वाली पार्टी बताया था। इस बात में कुछ हद तक सच्चाई दिख रही है। तभी तो इंडिया अलायंस में भी कांग्रेस को छोड़कर अन्य सभी दलों को यह महसूस होने लगा है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में 53 से 99 सीटों पर पहुंची तो उसमें अहम भूमिका कांग्रेसी वोटरों की नहीं बल्कि उन पार्टियों के वोटरों की थी, जिन्होंने गठबंधन धर्म निभाते हुए कांग्रेस के लिए वोट किया था। इसमें अब कोई शक नहीं कि कांग्रेस की चुनावी स्थिति को देखते हुए अब इंडिया अलायंस के तमाम सहयोगियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात समझ में आने लगी है कि कांग्रेस एक परजीवी पार्टी बन चुकी है जो अपने सहयोगियों के वोटरों को हजम कर अपनी जीत सुनिश्चित कर रही है। जबकि उसके खुद का जनाधार तेजी से सिमट रहा है।
उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से एक अहम राज्य है जहां से सत्ता प्राप्त करने का रास्ता निकलता है। इस राज्य में लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस को मात्र एक सीट पर जीत हासिल हुई थी जो कांग्रेस की दयनीय स्थिति को ही दर्शाती है। इस लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन के तहत 80 में से 78 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जबकि मात्र अमेठी और रायबरेली की सीटें कांग्रेस को दी गई थी। इनमें से अमेठी सीट पर राहुल गांधी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे इस दृष्टि से महत्वपूर्ण थे कि 2014 में जहां भाजपा ने अपने दम पर 282 सीटें जीती थीं, वहीं इस चुनाव में भाजपा ने खुद अपने दम पर 303 सीटें जीतकर एक इतिहास रच दिया था।
कांग्रेस पार्टी जो 1947 के बाद से लगातार सत्ता पर काबिज रही, उसकी 2019 में इतनी बुरी पराजय बेहद शर्मनाक कही जा सकती है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन ने कांग्रेस को इसलिए शामिल नहीं किया था कि कांग्रेस के वोट दूसरी पार्टियों को स्थानांतरित नहीं होते, जबकि दूसरी पार्टियों के वोट कांग्रेस को स्थानांतरित हो जाते हैं। हालांकि परिणाम की दृष्टि से 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए भी निराशाजनक ही रहे। इसमें बहुजन समाज पार्टी को 10 तो वहीं समाजवादी पार्टी को 5 सीटों से संतोष करना पड़ा था। 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश में उसे बेहद अच्छे परिणाम देखने को मिले। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी को जहां 80 में से 37 सीटें मिली तो वहीं कांग्रेस को मात्र 6 सीटों पर सफलता मिली जो स्पष्ट करती है कि कांग्रेस को यह 6 सीटें भी खुद के दम पर नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी के वोटों का कांग्रेस में स्थानांतरित होने से प्राप्त हुई। सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस की वर्तमान लोकसभा में जो 99 सीटें मिली हैं, उसके पीछे दूसरे सहयोगी दलों का योगदान सर्वाधिक है।
इसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र विधानसभा में चुनाव में रही। महाराष्ट्र में 2024 में महाविकास आघाड़ी के नाम से कांग्रेस ने शिवसेना (उद्धव) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद) से गठबंधन किया जिसमें 48 सीटों वाले राज्य में कांग्रेस को 13 सीटों पर सफलता मिली जबकि शिवसेना (उद्धव) को 9 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा। यहां भी कांग्रेस को दोनों सहयोगी दलों के वोटों के स्थानांतरण से सीटों में इजाफा हो गया जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महाराष्ट्र में एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में इस बार 13 सीटें मिल जाने का एकमात्र कारण दोनों सहयोगी दलों के वोटों का कांग्रेस में स्थानांतरित होना था। निश्चित ही 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इंडिया अलायंस उत्साहित करने वाला रहा, क्योंकि कांग्रेस की ताकत 2014 और 2019 में जहां मात्र 44 और 53 सीटों की थी वहीं 2024 में बढ़कर 99 सीटों की हो गई। जो यह स्पष्ट करती है कि कांग्रेस अपने दम पर इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकती थी। अब 2024 के जम्मू-कश्मीर के विधानसभा नतीजों पर नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि कांग्रेस का प्रदर्शन यहां भी उत्साहजनक नहीं रहा।
कांग्रेस का यहां भी नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन था जिसके अनुसार कुल 90 सीटों में से नेशनल कांफ्रेंस ने लगभग 50 सीटों पर और कांग्रेस ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि सीपीएम और एक अन्य सहयोगी दलों ने 1-1 पर और 6 सीटों पर दोस्ताना मुकाबला हुआ। नतीजों के अनुसार नेशनल कांफ्रेंस को जहां 42 सीटों पर जीत हासिल हुई, वहीं कांग्रेस को मात्र 6 सीटों पर ही जीत मिल सकी।
नेशनल कांफ्रेंस ने जहां अधिकांश सीटें घाटी में लड़ी और जीती वहीं कांग्रेस ने जम्मू में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ा और वहां उसे हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को यहां भी 6 सीटें भी नेशनल कांफ्रेंस के वोटों के बदौलत ही मिल सकी। यदि कांग्रेस यहां भी अपने बलबूते चुनाव लड़ती तो उसे शायद एक भी सीट नहीं मिलती। इस तरह कांग्रेस का जनाधार पूरे भारत में दयनीय स्थिति में है। अब यदि हाल में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें तो कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने का परिणाम रहा कि उसे इस बार भी सत्ता से वंचित रहना पड़ा।
साल 2014 से लेकर 2024 तक जितने भी चुनाव हुए, चाहे वे लोकसभा के हों या विधानसभा के, सभी के नतीजे स्पष्ट करते हैं कि कांग्रेस लगातार जनता का आशीर्वाद खोती जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में 99 सीटें उत्साह की वजह तो बनी, किंतु यह भी स्पष्ट हो गया कि उसकी यह जीत खुद की नहीं बल्कि सहयोगी दलों की उदारता का नतीजा है। यदि ऐसा नहीं होता तो झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के पहले क्षेत्रीय दल उसे आंखें ना दिखाते। दरअसल, इंडिया अलायंस के सभी दल अब अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि कांग्रेस निश्चित ही एक परजीवी पार्टी बन गई है, जो सहयोगी दलों के वोटों को पाकर ही ठीक-ठाक प्रदर्शन कर पाती है। इसीलिए वे अपनी शर्तों पर कांग्रेस को बाध्य करने लगे हैं अथवा उससे अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला करने लगे हैं।
उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से एक अहम राज्य है जहां से सत्ता प्राप्त करने का रास्ता निकलता है। इस राज्य में लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस को मात्र एक सीट पर जीत हासिल हुई थी जो कांग्रेस की दयनीय स्थिति को ही दर्शाती है। इस लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन के तहत 80 में से 78 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जबकि मात्र अमेठी और रायबरेली की सीटें कांग्रेस को दी गई थी। इनमें से अमेठी सीट पर राहुल गांधी को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे इस दृष्टि से महत्वपूर्ण थे कि 2014 में जहां भाजपा ने अपने दम पर 282 सीटें जीती थीं, वहीं इस चुनाव में भाजपा ने खुद अपने दम पर 303 सीटें जीतकर एक इतिहास रच दिया था।
कांग्रेस पार्टी जो 1947 के बाद से लगातार सत्ता पर काबिज रही, उसकी 2019 में इतनी बुरी पराजय बेहद शर्मनाक कही जा सकती है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन ने कांग्रेस को इसलिए शामिल नहीं किया था कि कांग्रेस के वोट दूसरी पार्टियों को स्थानांतरित नहीं होते, जबकि दूसरी पार्टियों के वोट कांग्रेस को स्थानांतरित हो जाते हैं। हालांकि परिणाम की दृष्टि से 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के लिए भी निराशाजनक ही रहे। इसमें बहुजन समाज पार्टी को 10 तो वहीं समाजवादी पार्टी को 5 सीटों से संतोष करना पड़ा था। 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा और उत्तर प्रदेश में उसे बेहद अच्छे परिणाम देखने को मिले। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी को जहां 80 में से 37 सीटें मिली तो वहीं कांग्रेस को मात्र 6 सीटों पर सफलता मिली जो स्पष्ट करती है कि कांग्रेस को यह 6 सीटें भी खुद के दम पर नहीं बल्कि समाजवादी पार्टी के वोटों का कांग्रेस में स्थानांतरित होने से प्राप्त हुई। सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस की वर्तमान लोकसभा में जो 99 सीटें मिली हैं, उसके पीछे दूसरे सहयोगी दलों का योगदान सर्वाधिक है।
इसी तरह की स्थिति महाराष्ट्र विधानसभा में चुनाव में रही। महाराष्ट्र में 2024 में महाविकास आघाड़ी के नाम से कांग्रेस ने शिवसेना (उद्धव) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद) से गठबंधन किया जिसमें 48 सीटों वाले राज्य में कांग्रेस को 13 सीटों पर सफलता मिली जबकि शिवसेना (उद्धव) को 9 और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को 8 सीटों पर संतोष करना पड़ा। यहां भी कांग्रेस को दोनों सहयोगी दलों के वोटों के स्थानांतरण से सीटों में इजाफा हो गया जबकि 2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महाराष्ट्र में एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में इस बार 13 सीटें मिल जाने का एकमात्र कारण दोनों सहयोगी दलों के वोटों का कांग्रेस में स्थानांतरित होना था। निश्चित ही 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इंडिया अलायंस उत्साहित करने वाला रहा, क्योंकि कांग्रेस की ताकत 2014 और 2019 में जहां मात्र 44 और 53 सीटों की थी वहीं 2024 में बढ़कर 99 सीटों की हो गई। जो यह स्पष्ट करती है कि कांग्रेस अपने दम पर इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकती थी। अब 2024 के जम्मू-कश्मीर के विधानसभा नतीजों पर नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि कांग्रेस का प्रदर्शन यहां भी उत्साहजनक नहीं रहा।
कांग्रेस का यहां भी नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन था जिसके अनुसार कुल 90 सीटों में से नेशनल कांफ्रेंस ने लगभग 50 सीटों पर और कांग्रेस ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि सीपीएम और एक अन्य सहयोगी दलों ने 1-1 पर और 6 सीटों पर दोस्ताना मुकाबला हुआ। नतीजों के अनुसार नेशनल कांफ्रेंस को जहां 42 सीटों पर जीत हासिल हुई, वहीं कांग्रेस को मात्र 6 सीटों पर ही जीत मिल सकी।
नेशनल कांफ्रेंस ने जहां अधिकांश सीटें घाटी में लड़ी और जीती वहीं कांग्रेस ने जम्मू में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ा और वहां उसे हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को यहां भी 6 सीटें भी नेशनल कांफ्रेंस के वोटों के बदौलत ही मिल सकी। यदि कांग्रेस यहां भी अपने बलबूते चुनाव लड़ती तो उसे शायद एक भी सीट नहीं मिलती। इस तरह कांग्रेस का जनाधार पूरे भारत में दयनीय स्थिति में है। अब यदि हाल में संपन्न हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम को देखें तो कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने का परिणाम रहा कि उसे इस बार भी सत्ता से वंचित रहना पड़ा।
साल 2014 से लेकर 2024 तक जितने भी चुनाव हुए, चाहे वे लोकसभा के हों या विधानसभा के, सभी के नतीजे स्पष्ट करते हैं कि कांग्रेस लगातार जनता का आशीर्वाद खोती जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में 99 सीटें उत्साह की वजह तो बनी, किंतु यह भी स्पष्ट हो गया कि उसकी यह जीत खुद की नहीं बल्कि सहयोगी दलों की उदारता का नतीजा है। यदि ऐसा नहीं होता तो झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के पहले क्षेत्रीय दल उसे आंखें ना दिखाते। दरअसल, इंडिया अलायंस के सभी दल अब अच्छी तरह से समझ चुके हैं कि कांग्रेस निश्चित ही एक परजीवी पार्टी बन गई है, जो सहयोगी दलों के वोटों को पाकर ही ठीक-ठाक प्रदर्शन कर पाती है। इसीलिए वे अपनी शर्तों पर कांग्रेस को बाध्य करने लगे हैं अथवा उससे अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला करने लगे हैं।
क्रांति कुमार पाठक
उपसंपादक दैनिक एक संदेश