पूरी पत्रकार बिरादरी ही बारूद के ढेर पर : संजय सिन्हा

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर विशेष बातचीत

नई दिल्ली: ‘ राष्ट्र के निर्माण में या राष्ट्र के सुनियोजित संचालन में, देश की संरचना गढ़ने में या देश की व्यवस्थाओं में, लोकतंत्र की स्थापना में या सुचारू समन्वय में, सत्ता पर नियंत्रण में या सत्ता के क्रियान्वयन में, व्यवस्था के पैनेपन में अथवा अव्यवस्था के आघात में, जन की जागरुकता में या जन के मुखर होने में, हर भूमिका में प्रेस यानी मीडिया का अपना अतुलनीय महत्त्व है, जिसके साथ ही वैश्विक लोकतंत्र की असल स्थापना निहित है।’ ये कहना है मीडिया पर्सनेलिटी और सोशल एक्टिविस्ट संजय सिन्हा का।शुक्रवार को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर अपने दिल्ली कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत के क्रम में उन्होंने बेबाक अंदाज में आगे कहा कि ‘ वैश्विक रूप से हर राष्ट्र का अपना एक मीडिया अनुशासन है, मीडिया की स्वीकार्यता भी है और आवश्यकता भी। किंतु बीते कुछ दशकों में मीडिया की सुरक्षा भी चिंता का विषय बनी हुई है और उस पर होने वाले हमलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ़ जर्नलिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार ड्यूटी के दौरान मारे गए मीडिया पेशेवरों की नवीनतम सूची के मुताबिक वर्ष 2023 में 68 मीडिया कर्मचारी मारे गए थे। इनमें से बहुत कम मामलों की जांच की गई है।’ एक सवाल के जवाब में इंटरनेशनल इक्विटेबल ह्यूमन राइट्स सोशल काउंसिल के चेयरमैन संजय सिन्हा ने कहा कि ‘ एक आंकड़े के मुताबिक 2022 – 23 में कम से कम 395 पत्रकार और मीडियाकर्मी सलाखों के पीछे गए । पत्रकारों के लिए चीन तो दुनिया के सबसे बड़े जेलर के रूप में उभरा है। ये आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि पूरी दुनिया में पत्रकारों की स्वतंत्रता कहीं न कहीं बाधित है। चाहे चीन में मीडिया पर हो रहे लगातार हमले हों, या हांगकांग पर बाधित होती मीडिया की स्वतंत्र हो।भारत में हो रही पत्रकारों की हत्याओं का ज़िक्र किया जाए, तो सभी जगह एक बात ही सामने आती है कि पत्रकार और प्रेस विश्व भर में खतरों से खेल रहे हैं पर असुरक्षित रहकर।मीडिया और पत्रकारों की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं। आज पूरी पत्रकार बिरादरी ही बारूद के ढेर पर खड़ी है। ‘ श्री सिन्हा ने संजीदा होकर कहा कि ‘ बात यदि भारत की करें तो आज पूरे भारत में मीडिया की सुरक्षा और स्वतंत्रता को कहीं न कहीं कटघरे में खड़ा करने वाले हालात ही हैं, बावजूद इसके, रात के बाद सुबह आएगी, उसकी उम्मीद नहीं छूटती। सरकारों से भी यही उम्मीद बनी रहती है कि मीडिया को स्वतंत्र करें, सुरक्षित करें। क्योंकि इसको करने से राष्ट्र की उत्तरोत्तर प्रगति सरल, सहज और सर्वमान्य होगी। ‘

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Open chat
1
Hello
Can we help you?