उत्तर बंगाल में बाढ़ से बिगड़ रहे हालात, केंद्र से हस्तक्षेप की मांग

 

कोलकाता, 19 जुलाई । उत्तर बंगाल में बहने वाली नदियों में भुटान से पानी छोड़े जाने के बाद बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। राज्य के हिस्से में कई जगह सड़कों पर नदियों का पानी बहने लगा है और जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर है। इसे लेकर राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है। राज्य के कृषि मंत्री पार्थ भौमिक ने कहा है कि मामला भूटान से जुड़ा हुआ है इसलिए केंद्र सरकार को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए। उन्होंने अलीपुर से सांसद और केंद्रीय मंत्री जॉन बार्ला और मदारीहाट से भाजपा विधायक तथा विधानसभा में पार्टी के चीफ व्हिप मनोज टिग्गा का नाम लेकर कहा कि इन्हें तुरंत केंद्र सरकार से बात कर हस्तक्षेप के लिए कहना चाहिए। वे अपनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकते जब उत्तर बंगाल के लोग भारत का सामना कर रहे हैं।

राज्य सचिवालय के एक सूत्र ने बुधवार सुबह बताया है कि सबसे अधिक कूचबिहार और अलीपुरद्वार जिला प्रभावित है। यहां के जयगांव और कालचीनी में बाढ़ की वजह से लोग अलग-अलग जगहों पर पलायन करने लगे हैं। इसके अलावा धुपगुड़ी और बीरभूम के कुछ हिस्से भी बाढ़ की चपेट में हैं। राज्य सिंचाई विभाग के सूत्रों ने बताया है कि उत्तर बंगाल में बहने वाली नदियों के गाद को निकालने का काम अगले साल किया जाएगा जिससे इनकी गहराई बढ़ेगी और बाढ़ के खतरे से निपटा जा सकता है।
हालांकि हर साल जब बारिश के समय उत्तर बंगाल में बाढ़ आती है तब राज्य सिंचाई विभाग इसी तरह की बातें करता है। राज्य के सिंचाई मंत्री भौमिक ने कहा कि 40 साल पहले यहां एक नहर बनाई गई है जो नदियों के जल को चैनेलाइज करने में मददगार रही है। इसकी भी गहराई बढ़ाई जाएगी। हालांकि उनसे जब पूछा गया कि पहले क्यों नहीं बढ़ाई गई तो उन्होंने कहा कि वाममोर्चा शासन के दौरान इस नहर का निर्माण किया गया था। उसके बाद 33 सालों के दौरान कभी इसकी और किसी ने पलटकर नहीं देखा। हम लोग निश्चित तौर पर इस पर काम करेंगे।
उन्होंने कहा, “जिन नदियों में बाढ़ जैसे हालात हैं वे भूटान से आती हैं और मानसून के दौरान हमारे राज्य के कुछ क्षेत्रों में अचानक बाढ़ का कारण बनती हैं। चूंकि भूटान इसमें शामिल है इसलिए हमारा मानना है कि केंद्र को इस मुद्दे के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। यहां तक कि प्रधानमंत्री (नरेन्द्र मोदी) को भी इसे पड़ोसी देश के साथ उठाना चाहिए और उत्तर बंगाल में इन नदियों से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए योजना बनानी चाहिए।”

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