भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि पर समाजसेवी कृष्णा प्रसाद ने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया

 

आसनसोल। आसनसोल शिल्पांचल के विशिष्ट समाजसेवी सह व्यवसायी कृष्णा प्रसाद के द्वारा सामाजिक धार्मिक कार्यों में अपने आप को समर्पित कर दिन पर दिन उनकी समाज में ख्याति बढ़ती जा रही है। जात पात से ऊपर उठकर सभी वर्ग के समुदाय में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे है। इसी क्रम में रविवार कृष्णा प्रसाद ने काली पहाड़ी स्थित आदिवासियों के भगवान माने जाने वाले बिरसा मुंडा की 123वीं पुण्यतिथि का पालन किया। उन्होंने उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हे श्रद्धा सुमन अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। वहीं मौके पर आदिवासी समाज के महिला और पुरुषों ने कृष्णा प्रसाद का भव्य रूप से सम्मानित कर सम्मान दिया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कृष्णा प्रसाद ने कहा कि बिरसा मुंडा ने महज 25 साल की कम उम्र में ही अंग्रेजों को खौफजदा कर दिया था। उन्होंने कहा कि ब्रिटिशों ने भारत पर 200 सालों तक राज किया, लेकिन उनके लिए यह समय इतना आसानी से नहीं गुजरा था। भारत के ऐसे कई क्रांतिकारी रहे हैं, जिन्होंने ब्रिटिशों की नाक में दम कर रखा था। उन्हीं में से एक थे बिरसा मुंडा। वह एक स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता थे। इतना ही नहीं आदिवासी समुदाय के लोग तो उन्हें भगवान मानते थे। ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशक्‍त विद्रोह किए जाने वाले बिरसा मुंडा की आज 123वीं पुण्यतिथि पूरा देश पालन कर रहा है। बिरसा मुंडा ने न केवल आजादी में योगदान दिया था, बल्कि उन्होंने आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए भी कई कार्य किए थे। भले ही बिरसा मुंडा बहुत कम उम्र में शहीद हो गए थे, लेकिन उनके साहसिक कार्यों के कारण वह आज भी अमर हैं। जेल में जाने से पहले उन्होंने अंग्रजों के खिलाफ लड़ने का बिगुल फूंक दिया था। भले ही उनकी गिरफ्तारी हो गई थी, लेकिन लोगों के लिए वह तब भी भगवान के समान थे। जेल में जाने के बाद दिन पर दिन उनकी तबीयत खराब होती चली गई थी। जेल में बिरसा को बिल्कुल एकांत में रखा गया था। कृष्णा प्रसाद ने कहा कि उन्हें किसी से भी मिलने नहीं दिया जाता था। उन्हें बस एक घंटे के लिए कोठरी से बाहर निकाला जाता था। ऐसे में उनकी हालत बिगड़ती चली गई और 9 जून, 1900 को बिरसा ने सुबह 9 बजे दम तोड़ दिया। हालांकि, उनके दोस्तों का दावा है कि उन्हें अंग्रेजी हुकुमत ने मारने के लिए जहर दिया था। लेकिन अंग्रेजों ने उनकी बीमारी का कारण हैजा बताया था, हालांकि हैजा के कोई भी साक्ष्य नहीं मिले थे। बिरसा मुंडा के पुण्यतिथि कार्यक्रम में कृष्णा प्रसाद शामिल होकर आदिवासी समाज में भी अपनी पकर बना ली।

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